केरल: कक्षाओं में दीवारें! वीडियो ने खोली कट्टरता की पोल
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केरल में एक वायरल वीडियो ने शिक्षा के भीतर पनप रही सांप्रदायिक और लैंगिक असमानता का भयावह सच उजागर किया है। वीडियो में बुर्का पहने छात्राओं को पुरुष सहपाठियों से दीवार के ज़रिए अलग किया गया है। यह दृश्य जेंडर भेदभाव पर सवाल उठाता है और केरल में बढ़ते इस्लामिक कट्टर प्रभाव को दर्शाता है।

हाल ही में सामने आए इस वीडियो में कुछ कॉलेजों और स्कूलों में बुर्का पहनी छात्राओं को कक्षाओं या कार्यक्रमों के दौरान पुरुष छात्रों से अलग बैठाया गया है। यह विभाजन पर्दे, या दीवार के ज़रिए किया गया है, ताकि लड़के और लड़कियाँ एक-दूसरे को देख न सकें। सोशल मीडिया पर इस वीडियो के सामने आते ही लोगों ने इसे शरिया आधारित शिक्षा मॉडल कहकर आलोचना की।

यह मामला केवल जेंडर सेपरेशन का नहीं है, बल्कि एक बड़े सामाजिक और वैचारिक संकट की ओर इशारा करता है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने चिंता जताई है कि यह प्रवृत्ति शिक्षा संस्थानों को धर्म के प्रभाव में ले जा रही है, जो संविधान द्वारा दिए गए धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांतों के विरुद्ध है।

वीडियो के वायरल होने के बाद यह भी खुलासा हुआ कि कुछ इस्लामिक संगठनों को सऊदी अरब और खाड़ी देशों से आर्थिक सहायता मिल रही है। ये संगठन कथित रूप से धार्मिक शिक्षा के नाम पर आधुनिक शिक्षण संस्थानों में इस्लामिक परंपराएँ लागू करने का प्रयास कर रहे हैं। यह रुझान केरल के कुछ हिस्सों में तेजी से फैल रहा है।

केरल लंबे समय से शिक्षा, सामाजिक प्रगति और साक्षरता के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में जिस तरह धार्मिक संगठनों ने शिक्षा व्यवस्था में दखल बढ़ाया है, उसने राज्य के मॉडल ऑफ एजुकेशन को चुनौती दी है। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति महिलाओं को सशक्त करने के बजाय उन्हें और सीमित करने का प्रयास है।

बुर्का या हिजाब पहनना यदि व्यक्तिगत पसंद है तो उसका सम्मान होना चाहिए, लेकिन जब यह सामाजिक या धार्मिक दबाव का हिस्सा बन जाता है, तब यह स्वतंत्रता का नहीं बल्कि संकीर्णता का प्रतीक बन जाता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ स्थानीय कॉलेजों में पुरुष और महिला छात्रों को न केवल बैठने से रोका जा रहा है, बल्कि बातचीत और समूह प्रोजेक्ट्स में भी अलग-अलग रखा जाता है। यह प्रवृत्ति महिलाओं की शिक्षा और करियर के अवसरों पर नकारात्मक असर डाल सकती है, खासकर उन इलाकों में जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक है।

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