ममता बनर्जी: क्या बार-बार हिंदू त्योहारों को निशाना बना रही हैं?
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पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान है. 2021 में यूनेस्को ने इसे अमूर्त सांस्कृतिक विरासत कहा था. लेकिन आरोप है कि वहां की सरकार इस विरासत और सनातनियों की श्रद्धा से खिलवाड़ कर रही है.

आरोप है कि मुख्यमंत्री और उनके विधायक दुर्गा पंडाल में खड़े होकर देश के सौ करोड़ हिंदुओं की आस्था पर चोट कर रहे हैं. जहां देवी स्तुति होनी चाहिए, वहां इस्लामिक प्रतीकों का गान हो रहा है.

नवरात्र के दौरान, जब हर हिंदू मां देवी की आराधना कर रहा है, कोलकाता के भवानीपुर में ममता बनर्जी की पार्टी के विधायक ने दुर्गा पंडाल में मक्का-मदीना को याद कर गाना गाया. विधायक मदन मित्रा ने पंडाल में कहा कि उनके हृदय में काबा है, आंख में मदीना है, और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ताली बजा रही थीं.

आलोचकों का कहना है कि दुर्गा पंडाल में देवी स्तुति के बदले काबा और मदीना को याद करना धर्मनिरपेक्षता नहीं है, बल्कि मुस्लिम वोटबैंक को साधने का प्रयास और सनातन आस्था का अनादर है.

उत्तर 24 परगना जिले में टीएमसी के एक और विधायक रफिकुर रहमान ने दुर्गा पूजा के दौरान इस्लामी फरमान जारी कर कहा कि नमाज के वक्त पूजा मंडप के माइक बंद रखें. मस्जिद कमेटी ने भी इस संबंध में पत्र जारी किया. सवाल है कि क्या यह सनातनियों की आस्था पर सांस्कृतिक आक्रमण नहीं है?

याद दिला दें, 2017 में ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा की जगह मोहर्रम को तरजीह दी थी, विसर्जन रोक दिया था. हाईकोर्ट ने इसे शक्तियों का गलत इस्तेमाल बताया था. 2014 में मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद में दुर्गा पंडाल बनाने पर रोक लगा दी गई थी. 2023 में रामनवमी की शोभा यात्रा पर रोक लगी थी.

आरोपों के अनुसार, ममता बनर्जी ऐसा मुस्लिम वोट बैंक को तुष्ट करने के लिए करती हैं, खासकर अगले साल पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनाव को देखते हुए, जहां 121 सीटों पर 20 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं.

बीजेपी का आरोप है कि ममता बनर्जी सनातन धर्म को कुचलकर पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश बनाना चाहती हैं. पूजा पंडालों को सरकारी फंडिंग मिलती है, ऐसे में अगर दुर्गा पूजा में किसी दूसरे धर्म का प्रचार होता है तो यह संविधान के सेक्युलर ढांचे पर सवाल खड़े करता है.

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