ट्रंप का अमेरिका: शांतिदूत से युद्ध विभाग की ओर?
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ट्रंप सरकार ने एक चौंकाने वाला फैसला लिया है, जिससे उनकी शांतिदूत की छवि सवालों के घेरे में आ गई है। ऐसा क्यों कहा जा रहा है, ये समझने के लिए ट्रंप के युद्ध मोड को देखना होगा।

अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप अमेरिका के रक्षा विभाग का नाम बदलने जा रहे हैं। डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस अब डिपार्टमेंट ऑफ वॉर यानी युद्ध विभाग कहलाएगा। माना जा रहा है कि जल्द ही ट्रंप इस फैसले पर हस्ताक्षर कर देंगे।

किसी विभाग का नाम बदलने से क्या फर्क पड़ता है, ये सवाल उठना स्वाभाविक है। लेकिन यह सिर्फ नाम बदलने का मामला नहीं है, बल्कि इसके पीछे छिपी आक्रामक भावना है। इसे समझने के लिए रक्षा सचिव पीटर हेगसेथ के बयान पर ध्यान देना होगा।

अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने 1789 में युद्ध विभाग की स्थापना की थी। दूसरे विश्वयुद्ध तक रक्षा मामले इसी विभाग के अंतर्गत आते थे। 1949 में थलसेना, वायुसेना और नौसेना को पेंटागन के अंतर्गत लाया गया और विभाग का नाम बदलकर डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस किया गया।

अब 76 साल बाद, ट्रंप दोबारा रक्षा विभाग को युद्ध विभाग बना रहे हैं। माना जा रहा है कि इससे ट्रंप ये संदेश देना चाहते हैं कि अमेरिका युद्ध के दौर में प्रवेश कर रहा है, और उसकी नीतियां अब सुरक्षा से नहीं, बल्कि आक्रामकता से चलेंगी।

इस आक्रामक रवैये की झलक हाल ही में वेनेजुएला के नजदीक अमेरिकी नेवी के जहाजों द्वारा वेनेजुएला की एक नाव पर रॉकेट हमले में दिखी, जिसमें 11 लोग मारे गए थे। अमेरिकी नेवी ने दावा किया कि नाव में तस्कर थे, लेकिन वेनेजुएला सरकार ने इसे मानने से इनकार कर दिया।

ट्रंप को लगा था कि वेनेजुएला डर जाएगा, लेकिन वेनेजुएला के राष्ट्रपति मादुरो ने अमेरिकी जहाजों के ऊपर लड़ाकू विमानों को भेजकर चुनौती दी। पेंटागन ने इसे उकसावे वाली कार्रवाई करार दिया और वेनेजुएला को चेतावनी दी।

यह अमेरिकी नीतियों का पुराना हिस्सा है: पहले आरोप लगाना, फिर उकसाना और अंत में हमला कर देना। ट्रंप इसी दादागीरी वाली नीति को फिर से हवा दे रहे हैं।

ऐसा लगता है कि शांति का नोबेल पुरस्कार और युद्धविराम की बातें सिर्फ दिखावा थीं। ट्रंप के अंदर अमेरिकी सामरिक शक्ति का दंभ भरा है, जो अब आक्रामक रूप ले रहा है।

ट्रंप न केवल सामरिक शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि उन मित्र देशों को भी धमकाने की कोशिश कर रहे हैं, जो दशकों से अमेरिका के साथ खड़े रहे हैं। उन्होंने यूरोपीय यूनियन के सदस्य देशों को रूस से तेल और गैस न खरीदने का निर्देश दिया है, और चीन पर आर्थिक दबाव बनाने के लिए कहा है।

ट्रंप ने यूरोपीय देशों की आलोचना करते हुए कहा है कि यूक्रेन युद्ध में उनका सहयोग कम रहा है। इससे पहले उन्होंने EU से भारत पर भी आर्थिक दबाव बनाने के लिए कहा था।

यूरोपीयन यूनियन के वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत की है और कहा है कि यूक्रेन-रूस युद्ध खत्म करने में भारत की भूमिका अहम हो सकती है।

ट्रंप ने भी संभावित युद्धविराम के लिए पुतिन को अलास्का बुलाया था। लेकिन उनकी ये कोशिश नाकाम होती दिख रही है, क्योंकि पुतिन से मिलने के बाद यूक्रेन पर हमले और तेज हो गए हैं।

ट्रंप अब कह रहे हैं कि युद्धविराम कराना आसान नहीं है। यूक्रेन को नाटो की सदस्यता का लालच देकर जेलेंस्की ने पुतिन से दुश्मनी मोल ली, और अब ट्रंप कह रहे हैं कि युद्धविराम आसान नहीं है।

पेरिस में जेलेंस्की ने कहा कि रूस हर मुमकिन कोशिश कर रहा है, जिससे युद्धविराम टाला जाए। उन्होंने युद्धविराम के प्रयासों के लिए ट्रंप को धन्यवाद दिया, लेकिन सुरक्षा से जुड़ी गारंटी पर यूरोपीय साथियों पर भरोसा जताया।

शायद यही वजह है कि ट्रंप अब रूस, चीन, भारत और यूरोपीय यूनियन से भी जलने लगे हैं, और उन पर सवाल उठाने लगे हैं।

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