देश का पहला AI आधारित ट्रांसलेटर आदि वाणी लॉन्च, जनजातीय भाषाओं का होगा संरक्षण!
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जनजातीय कार्य मंत्रालय ने सोमवार को भारत के पहले एआई-आधारित ट्रांसलेटर प्लेटफॉर्म आदि वाणी का बीटा वर्जन लॉन्च कर दिया है। यह पहल जनजातीय सशक्तिकरण और भाषायी संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

यह आयोजन नई दिल्ली के डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में जनजातीय गौरव वर्ष के तहत किया गया। जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उइके, मंत्रालय के सचिव विभु नायर और आईआईटी दिल्ली के डायरेक्टर रंजन बनर्जी सहित कई गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।

केंद्रीय मंत्री उइके ने कहा कि भाषा सांस्कृतिक पहचान का आधार है और आदि वाणी दूर-दराज के जनजातीय समुदायों के बीच कम्युनिकेशन गैप को कम करेगी, युवाओं को डिजिटल रूप से सशक्त बनाएगी, और अंतिम छोर तक सेवाओं की आपूर्ति में मदद करेगी।

मंत्रालय के सचिव विभु नायर ने आदि वाणी को किफायती नवाचार बताते हुए कहा कि इसे कमर्शियल प्लेटफॉर्म की लागत के दसवें हिस्से में तैयार किया गया है। यह अत्याधुनिक तकनीक को राज्य जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) द्वारा एकत्रित प्रामाणिक भाषायी आंकड़ों के साथ जोड़ती है।

आईआईटी दिल्ली के डायरेक्टर प्रो. रंजन बनर्जी ने कहा कि आदि वाणी दिखाता है कि कैसे AI का इस्तेमाल भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए किया जा सकता है।

संयुक्त सचिव अनंत प्रकाश पांडे ने कहा कि भाषा के नष्ट होने से संस्कृति और विरासत का क्षरण होता है। आदि वाणी केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और तकनीकी संस्थानों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों का नतीजा है।

आदि वाणी सिर्फ एक ट्रांसलेशन टूल नहीं है, बल्कि समुदायों को जोड़ने और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने का एक प्लेटफॉर्म है। यह लुप्त हो रही भाषाओं के डिजिटलाइजेशन, मातृभाषा में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को बेहतर बनाएगा।

आदि वाणी को आईआईटी दिल्ली के नेतृत्व में बिट्स पिलानी, आईआईआईटी हैदराबाद, आईआईआईटी नवा रायपुर और विभिन्न राज्यों के जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से तैयार किया गया है।

आदि वाणी - AI टूल वेब पोर्टल (https://adivaani.tribal.gov.in) पर उपलब्ध है और ऐप का बीटा वर्जन जल्द ही प्ले स्टोर और iOS पर मिलेगा। फिलहाल, यह संथाली, भीली, मुंडारी और गोंडी भाषाओं को सपोर्ट करता है, जबकि कुई और गारो भाषाओं पर भी काम चल रहा है।

भारत में अनुसूचित जनजातियों द्वारा 461 जनजातीय भाषाएं और 71 विशिष्ट जनजातीय मातृभाषाएं बोली जाती हैं। इनमें से 81 भाषाएं संवेदनशील और 42 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं।

आदि वाणी का उद्देश्य आदिवासी भाषायी विरासत का डिजिटलाइजेशन और संरक्षण करना है। यह डिजिटल इंडिया, एक भारत श्रेष्ठ भारत, प्रधानमंत्री जनमन और अन्य अभियानों के अनुरूप है और 2047 तक एक समावेशी, ज्ञान-संचालित विकसित भारत के निर्माण में मदद करेगा।

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