ट्रंप और जिनपिंग में शर्तों का खेल : ताइवान पर अटकी बातचीत?
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अमेरिका और चीन के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है, और इस बार इसकी वजह है - शर्तें। ट्रंप और जिनपिंग के बीच तेरी शर्त बनाम मेरी शर्त का संघर्ष चल रहा है। बातचीत के टेबल पर पहुंचने के लिए जिनपिंग ने ट्रंप के सामने क्या नई शर्त रखी है?

अमेरिका के मशहूर अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स का दावा है कि मुलाकात के दौरान जिनपिंग, ट्रंप के साथ ताइवान पर बातचीत करना चाहते हैं। अखबार ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि ताइवान को अमेरिकी समर्थन जिनपिंग को कबूल नहीं है। इसलिए चीन चाहता है कि अमेरिका द्विपक्षीय मुलाकात में ताइवान के मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करे।

ट्रंप और जिनपिंग 30 अक्टूबर को दक्षिण कोरिया की राजधानी बुसान में मिलेंगे। इस मीटिंग को लेकर दोनों देशों के राजनयिक तैयारी कर रहे हैं। अगर चीन ने ताइवान का मुद्दा उठाया तो यह मीटिंग में दोनों पक्षों के बीच एक दीवार खड़ी कर सकता है।

ट्रंप अमेरिकी मीडिया के सामने कह चुके हैं कि ताइवान के मुद्दे पर बातचीत नहीं होगी। इसी वजह से आशंका जताई जा रही है कि कहीं यह शर्त मुलाकात को खतरे में न डाल दे। चीन क्यों ताइवान को मीटिंग का मुद्दा बनाना चाहता है? इसका कारण है ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में ताइवान को दी जा रही मदद में बढ़ोतरी।

अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप सरकार ने ताइवान को कुल 18.3 बिलियन डॉलर की मदद की थी। दूसरे कार्यकाल में पहले 10 महीनों के अंदर ही यह आंकड़ा 18.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका से ताइवान को हथियारों की सीधी बिक्री नहीं की गई थी, लेकिन दूसरे कार्यकाल में ट्रंप सरकार ने ताइवान के साथ 400 मिलियन डॉलर के हथियारों का सौदा कर लिया है।

ट्रंप के पहले कार्यकाल में ताइवान ने अपने रक्षा बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की थी। लेकिन दूसरे कार्यकाल में ताइवान ने अमेरिकी मदद के भरोसे के चलते अपने डिफेंस बजट को जीडीपी का 3 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है। चीन को यह समझ आ चुका है कि ट्रंप की एंटी चाइना नीति को ताइवान भुना रहा है।

ट्रंप 2.0 में अमेरिका ने ताइवान के प्रति जो रुख अपनाया है, वह संकेत देता है कि ताइवान के मुद्दे पर ट्रंप कुछ हद तक आक्रामक हुए हैं। अमेरिका हमेशा वन चाइना पॉलिसी का सम्मान करता नजर आया है, लेकिन उसने कभी इसे पूर्ण मान्यता नहीं दी है। अमेरिका ने चीन की सरकार को ही वन चाइना की सरकार माना है।

दूसरी तरफ अमेरिका और ताइवान के बीच सालों से संबंध मजबूत होते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका कहता आया है कि चीन और ताइवान के बीच विवाद का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से होना चाहिए, तो दूसरी तरफ अमेरिका ने कई मौकों पर ताइवान की संप्रभुता का भी जिक्र किया है।

जिन दोहरी नीतियों के आधार पर अमेरिका सालों से ताइवान के मुद्दे पर चीन को गोल-गोल घुमा रहा था, वही नीतियां अब ट्रंप के लिए गले की हड्डी साबित हो सकती हैं।

फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होते ही चीन ने ताइवान के इर्द-गिर्द सामरिक तैनाती और सक्रियता बढ़ा दी थी जो अब तक जारी है। 2022 से लेकर अब तक चीन ने ताइवान के इर्द-गिर्द 6 बड़े युद्धाभ्यास किए हैं। पिछले तीन सालों में तकरीबन रोजाना चीन ने ताइवान की हवाई सीमा या फिर समंदरी सीमा का उल्लंघन किया है।

23 अक्टूबर को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की महासभा हुई थी। इस महासभा में जिनपिंग ने कहा था कि ताइवान का मुद्दा सुलझाना और चीन का एकीकरण करना हमारे संघर्षों में सबसे बड़ी प्राथमिकता है। अगर चीन के राष्ट्रवाद का पुर्नउद्धार करना है तो ताइवान को चीन का हिस्सा बनाना आवश्यक है।

आक्रामक बर्ताव और आक्रामक संवाद ये दोनों पहलू बताते हैं कि ताइवान के मुद्दे पर जिनपिंग कोई समझौता नहीं करना चाहते। इसी वजह से ये अनुमान लगाया जा रहा है कि ट्रंप चाहे या ना चाहें जिनपिंग के साथ मुलाकात में ताइवान का मुद्दा जरूर उठेगा।

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