राजघरानों से बॉर्डर तक: क्यों खास हैं रामपुर और मुधोल हाउंड, भारत की ये देसी नस्लें?
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भारत की सीमाओं की सुरक्षा में अब विदेशी नहीं, बल्कि देसी नस्ल के कुत्ते दिखाई देंगे. आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाते हुए सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने पहली बार दो स्वदेशी नस्ल के कुत्तों, रामपुर हाउंड और मुधोल हाउंड को अपने ऑपरेशनल दस्ते में शामिल किया है. 150 से अधिक भारतीय नस्ल के कुत्ते अब पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं सहित नक्सल प्रभावित इलाकों में भी तैनात किए गए हैं.

अब तक सीमा की रक्षा के लिए विदेशी नस्ल के कुत्ते डोबर्मन पिंसर, डच शेफर्ड, बेल्जियन शेफर्ड, जर्मन शेफर्ड और लैब्राडोर नस्ल के हाई ग्रेड कुत्तों पर भरोसा किया जाता था, लेकिन अब हमारे देश के दो नस्ल के कुत्तों ने यह जिम्मेदारी संभाल ली है. इन कुत्तों की ताकत, फुर्ती और बुद्धिमानी किसी विदेशी नस्ल से कम नहीं है.

ये कुत्ते सिर्फ चौकीदारी नहीं कर रहे, बल्कि असली कमांडो की तरह हेलीकॉप्टर से स्लिदरिंग, नदी में राफ्टिंग और सर्च ऑपरेशन जैसे कठिन मिशनों में हिस्सा ले रहे हैं.

सीमा पर पहली बार स्वदेशी नस्लों की कमांडो ट्रेनिंग मध्य प्रदेश के टेकनपुर में स्थित नेशनल ट्रेनिंग सेंटर फॉर डॉग्स (NTCD) में इन दोनों नस्ल के कुत्तों को खास ट्रेनिंग दी जा रही है. यहां ये कुत्ते अपने हैंडलर्स के साथ मिलकर कठिन हालात में काम करना सीख रहे हैं. इसमें हेलीकॉप्टर से नीचे उतरना, नदी पार करना या दुश्मनों की तलाश में जंगलों में दौड़ लगाना शामिल हैं.

BSF के एक अधिकारी ने बताया कि करीब एक दर्जन भारतीय नस्ल के कुत्ते पहली बार कमांडो ऑपरेशनों के लिए तैयार किए जा रहे हैं. वे हेलीकॉप्टर से उतरकर सीधे युद्ध क्षेत्र में जाएंगे . BSF न केवल इन कुत्तों को प्रशिक्षित कर रहा है बल्कि अपने K9 ट्रेनिंग सेंटर्स पर इन नस्लों का प्रजनन भी कर रहा है, ताकि आने वाले समय में और ज्यादा भारतीय नस्ल के कुत्तों को सुरक्षा बलों में शामिल किया जा सके.

मुधोल हाउंड, जिसे कारवां हाउंड भी कहा जाता है, कभी भारतीय राजाओं की सेना का हिस्सा हुआ करता था. कहा जाता है कि कर्नाटक के मुधोल (जिला बागलकोट) के राजा मलोजीराव घोरपडे ने इस नस्ल को तैयार किया था. उन्होंने इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम को इस नस्ल के कुत्ते भेंट किए थे, जिसके बाद इनका नाम मुधोल हाउंड पड़ा.

मुधोल हाउंड बेहद तेज दौड़ सकता है. इसके साथ ही इसकी सूंघने की क्षमता और नजर बहुत तेज होती है. इसका शरीर पतला, मजबूत और लचीला होता है. यह लंबी दूरी तक दौड़ सकता है और मुश्किल रास्तों में भी बेहतरीन प्रदर्शन करता है. 2016 में भारतीय सेना ने मेरठ के रिमाउंट एंड वेटरिनरी कोर (RVC) सेंटर में पहली बार मुधोल हाउंड को ट्रेनिंग दी थी.

हाल ही में लखनऊ में आयोजित ऑल इंडिया पुलिस ड्यूटी मीट 2024 में BSF की मुधोल हाउंड रिया ने इतिहास रचा था. उसने 116 विदेशी नस्लों को पछाड़ते हुए बेस्ट डॉग ऑफ द मीट और बेस्ट इन ट्रैकर ट्रेड दोनों खिताब अपने नाम किए थे.

रामपुर हाउंड नस्ल की शुरुआत उत्तर प्रदेश के रामपुर रियासत में करीब 300 साल पहले हुई थी. कहा जाता है कि नवाबों ने इसे अफगान हाउंड और इंग्लिश ग्रेहाउंड को क्रॉस कराकर तैयार किया था. यह नस्ल पहले शिकार के लिए मशहूर थी और अब सुरक्षा के लिए इन्हें तैनात किया जा रहा है.

रामपुर हाउंड की खासियत इसकी स्पीड, ताकत और फुर्ती है. यह 40 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है. यह बेहद वफादार, निडर और अनुशासित होता है. इनका शरीर लंबा और मांसल होता है, जिससे यह आसानी से पहाड़ी या रेतीले इलाकों में गश्त कर सकता है.

BSF के अधिकारियों के अनुसार, रामपुर और मुधोल हाउंड्स दोनों ही भारत की जलवायु और भूगोल के अनुरूप हैं. ये कम देखभाल में भी फिट रहते हैं और बीमारियों से जल्दी प्रभावित नहीं होते.

भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों में कुत्तों की भूमिका सिर्फ पहरेदारी तक सीमित नहीं है. ये बारूदी सुरंगों की पहचान, विस्फोटकों की खोज, लापता लोगों की तलाश और दुश्मनों की गतिविधियों का पता लगाने जैसे बेहद कठिन काम करते हैं. जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाकों में सेना के कुत्ते आतंकवाद विरोधी अभियानों में फर्स्ट रिस्पॉन्डर की भूमिका निभाते हैं. किसी भी ऑपरेशन से पहले ये इलाके की सुरक्षा जांच करते हैं.

मेरठ के RVC ट्रेनिंग सेंटर में कुत्तों को करीब 10 महीने की सख्त ट्रेनिंग दी जाती है. हर कुत्ते का एक हैंडलर होता है जो उसे रोजाना प्रशिक्षित करता है और साथ ही उसकी मानसिक और शारीरिक फिटनेस का ध्यान रखता है. सेना में वर्तमान में लगभग 30 से ज्यादा कैनाइन यूनिट्स हैं, जिनमें औसतन 24 से 25 कुत्ते शामिल रहते हैं. सेवा पूरी होने के बाद इन्हें रिटायर किया जाता है और पुनर्वास केंद्रों में रखा जाता है.

रामपुर और मुधोल दोनों ही मजबूत और फुर्तीले हैं, लेकिन उनके स्वभाव और ट्रेनिंग में थोड़ा फर्क है. रामपुर हाउंड स्वभाव से गंभीर और अनुशासित होता है. यह अपने मालिक के प्रति बहुत वफादार होता है, लेकिन अजनबियों से दूरी बनाकर रखता है. यह गार्डिंग और सुरक्षा के काम में बेहद भरोसेमंद है. मुधोल हाउंड इसके विपरीत ज्यादा चंचल, सतर्क और सामाजिक होता है. इसकी सूंघने और ट्रैकिंग की क्षमता बहुत तेज होती है, इसलिए इसे सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन में ज्यादा उपयोगी माना जाता है. दोनों नस्लों को फिट रहने के लिए नियमित व्यायाम और मानसिक प्रशिक्षण की जरूरत होती है. रामपुर को संयम और अनुशासन सिखाया जाता है, जबकि मुधोल को विविध गतिविधियों में व्यस्त रखा जाता है ताकि उसका उत्साह बना रहे.

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