चिराग पासवान ने बीजेपी-जदयू को 9 के फेर में फंसाया, बात तो हुई मगर बनी नहीं!
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बिहार में चुनाव की तारीख नजदीक है, लेकिन एनडीए गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा। चिराग पासवान के तेवरों ने सत्तारूढ़ गठबंधन में सीट शेयरिंग का मामला उलझा दिया है। बीजेपी के नेता एलजेपी(आर) के मुखिया को मनाने में जुटे हैं, लेकिन चिराग के संकेतों से बीजेपी-जदयू की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

चिराग पासवान ने अपने पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को पुण्यतिथि पर याद करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, जुर्म करो मत, जुर्म सहो मत। जीना है तो मरना सीखो, कदम-कदम पर लड़ना सीखो। इस मैसेज की टाइमिंग को महत्वपूर्ण माना जा रहा है और इसके राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।

चिराग की पार्टी के यूथ प्रदेश अध्यक्ष वेद प्रकाश पांडे ने साफ शब्दों में कहा कि चिराग फैक्टर बिहार की दिशा तय करता है। उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी अकेले लड़ने की हिम्मत रखती है और अकेले लड़कर 137 सीटों पर 6% से ज्यादा वोट लाए हैं।

कहा जा रहा है कि चिराग पासवान को पसंद की सीटों पर मामला फंसा हुआ है। चिराग हर राजनीतिक परिस्थिति के लिए तैयार हैं। सवाल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान की नाराजगी की वजह क्या है।

बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और बीजेपी महासचिव विनोद तावड़े ने दिल्ली में चिराग से मुलाकात की थी। बताया जा रहा है कि चिराग को 25 सीटों का ऑफर दिया गया, लेकिन चिराग को सीटों की संख्या से ज्यादा पसंद की सीटों पर आपत्ति है।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल के अनुसार, चिराग पासवान के पास उन सीटों की लिस्ट है, जिन पर बीजेपी पहले से उम्मीदवार तय कर चुकी है। उन्होंने 9 ऐसी सीटों की लिस्ट दी है, जहां से जेडीयू और बीजेपी भी दावा कर रहे हैं। इनमें वैशाली जिले की लालगंज, महुआ और राजापाकड़, बेगुसराय जिले की मटिहानी और साहेबपुर कमाल, बक्सर जिले की ब्रह्मपुर, पश्चिमी चंपारण जिले की गोविंदगंज और शेखपुरा विधानसभा सीट शामिल हैं।

चिराग पासवान, लालगंज, महुआ, ब्रह्मपुर, मटिहानी और गोविंदगंज सीट को लेकर समझौते के मूड में नहीं दिख रहे हैं। लालगंज से वे वैशाली के पूर्व सांसद रामा सिंह को, ब्रह्मपुर से हुलास पांडेय को, गोविंदगंज से राजू तिवारी को और महुआ से संजय कुमार सिंह को चुनाव लड़ाना चाहते हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में मटिहानी एकमात्र सीट थी जो चिराग पासवान की पार्टी ने जीती थी। हालांकि, उनके विधायक राजकुमार सिंह बाद में जेडीयू में शामिल हो गए। अब चिराग एक बार फिर से इस सीट पर दावा कर रहे हैं, जबकि जेडीयू सीटिंग विधायक को चुनाव लड़ाना चाहती है।

लालगंज और गोविंदगंज विधानसभा सीट से बीजेपी के सिटिंग विधायक हैं, जबकि महुआ से पिछली बार जेडीयू की आफशां परवीन दूसरे नंबर पर रही थीं। ब्रह्मपुर से चिराग की पार्टी से हुलास पांडेय दूसरे स्थान पर रहे थे।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान गठबंधन की राजनीति में माहिर हो चुके हैं। लगभग पांच प्रतिशत पासवान वोटर उनके पीछे खड़े हैं और युवा वोटरों में भी उनकी अपील है।

चिराग पासवान पर बीजेपी और एनडीए पर दबाव बनाकर अपनी ज्यादा से ज्यादा मांगें मनवाने का आरोप लग रहा है। एनडीए गठबंधन में सीट बंटवारे की जिम्मेदारी बीजेपी पर है। 7 अक्टूबर को बीजेपी के बड़े नेताओं ने चिराग के साथ बात की और चिराग ने अपनी मांगें रखीं।

चिराग पासवान की पार्टी के फिलहाल पांच सांसद हैं, इसलिए उन्होंने 30 सीटों की लिस्ट तैयार की थी। मगर मसला कुल सीट से ज्यादा पसंद की सीटों पर फंसा है।

चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की पुण्यतिथि मनाने के लिए पटना में हैं। बीजेपी के चुनाव प्रभारी और राज्य प्रभारी भी पटना पहुंच चुके हैं। ऐसे में आज चिराग के साथ सीट शेयरिंग पर आखिरी फैसला हो सकता है।

मनोज मुकुल का मानना है कि जिन सीटों पर बात फंस रही है, उस पर बीच का रास्ता निकाला जा सकता है। यानी कुछ सीटों पर बीजेपी और जेडीयू पीछे हट सकती हैं और कुछ सीटों पर चिराग को दावेदारी छोड़नी होगी। इसके बदले उन्हें दूसरी सीट ऑफर की जा सकती है। वहीं, कुछ सीटों पर बीजेपी उनके प्रत्याशियों को अपना सिंबल दे सकती है।

इस पूरे एपिसोड ने एनडीए गठबंधन को कमजोर दिखाया, क्योंकि बीजेपी महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर तंज कर रही थी। अब स्पष्ट है कि चीजें केवल बीजेपी की शर्तों पर तय नहीं होंगी और चिराग के हितों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर बीजेपी ने जल्द ही मामले में सुलह नहीं कराई तो स्थिति 2015 की तरह हो सकती है, जब नॉमिनेशन के समय तक एनडीए गठबंधन में प्रत्याशी तय नहीं हो पाए थे।

चिराग पासवान के गठबंधन से बाहर जाने की भी अटकलें हैं, लेकिन यह फैसला चिराग के लिए आसान नहीं होगा। वर्तमान में, बीजेपी और जेडीयू के बीच अच्छी समझदारी दिख रही है और चिराग केंद्रीय मंत्री हैं। लोकसभा चुनाव में पार्टी के पांचों सांसद जीते, जिसमें बीजेपी और जेडीयू के समर्थकों की अहम भूमिका रही।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हवा का रुख भी एनडीए के खिलाफ नहीं है और महागठबंधन में भी सीटों के लिए मारामारी चल रही है। ऐसे में, रामविलास पासवान के बेटे और राजनीतिक उत्तराधिकारी एनडीए से अलग होने का जोखिम उठाएंगे इसकी संभावना कम है। फिलहाल सारी लड़ाई अपनी ज्यादा से ज्यादा मांग मनवाने की ही दिख रही है।

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