दुनिया भर के मुस्लिम देश एक ऐसी सेना बनाने की योजना बना रहे हैं, जो इस्लामिक देशों के हितों की रक्षा करेगी और इजरायल जैसे देशों का मुकाबला करेगी. इस पर 50 से अधिक इस्लामिक देश विचार कर रहे हैं.
दोहा में चल रहे इस्लामिक अरब समिट की तस्वीरें सामने आई हैं जिनमें सऊदी अरब, यूएई, तुर्किए, इजिप्ट, कतर और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों के राष्ट्र अध्यक्षों को देखा जा सकता है. इस समिट में 50 से अधिक मुस्लिम देशों के राष्ट्र अध्यक्ष शामिल हुए हैं.
कतर पर इजरायल के हमले के बाद कई देश नाराज हैं और मिलकर यह योजना बना रहे हैं कि इजरायल को कैसे जवाब दिया जाए. इसके लिए एक इस्लामिक सेना तैयार करने का विचार भी सामने आया है.
यह संभावित इस्लामिक नाटो मिडिल ईस्ट की रणनीति को बदल सकता है और इसका असर सिर्फ इजरायल पर नहीं, बल्कि उसके सहयोगी अमेरिका पर भी पड़ेगा. अगर दुनिया के ताकतवर मुस्लिम देश मिल गए तो क्या इनकी सेना दुनिया के सबसे बड़े सैन्य गठबंधन नाटो से भी मजबूत हो जाएगी?
इजरायल पर कतर के हमले के बाद सभी बड़े और ताकतवर इस्लामिक देशों ने इसे कतर की संप्रभुता पर हमला बताया. लेकिन अमेरिकी सेना की कतर में मौजूदगी के बावजूद जिस तरह ये हमला हुआ, उससे अमेरिका की सुरक्षा छतरी में खुद को सुरक्षित समझने वाले प्रभावशाली अरब देशों का आत्मविश्वास हिल गया.
इन देशों ने इस हमले के बाद अमेरिका की प्रतिक्रिया को इजरायल के खिलाफ बहुत नरम पाया, जिससे उन्हें लगने लगा कि आज कतर पर हमला हुआ है तो कल उनकी बारी भी आ सकती है और अमेरिका उनके हितों की रक्षा नहीं कर पाएगा.
इसके बाद मिस्र ने इस्लामिक सेनाओं के गठबंधन बनाने के विचार को फिर से अरब देशों के सामने रख दिया है. मिस्र के पास अरब देशों में सबसे बड़ी सेना है और वही इस्लामिक सेना के निर्माण में बड़ी भूमिका निभा रहा है.
मिस्र ने इस्लामिक नाटो बनाने का जो प्रस्ताव रखा है, वह न केवल अरब देशों की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए है बल्कि यह संभावित सैन्य गठबंधन इजरायल के खिलाफ एक सामूहिक सैन्य प्रतिक्रिया के लिए भी तैयार किया जाएगा.
यह इस्लामिक नाटो, यूए-नाटो गठबंधन जैसा होगा. यानी इजरायल इस गठबंधन में शामिल किसी भी देश पर हमला करेगा तो पूरा इस्लामिक नाटो मिलकर जवाब देगा. नाटो (North Atlantic Treaty Organization) सोवियत संघ के खिलाफ तैयार किया गया था, लेकिन इस्लामिक नाटो का निशाना इजरायल होगा.
मिस्र के प्रस्ताव के मुताबिक, यह इस्लामिक सैन्य संगठन उन अरब देशों का नाटो होगा जिनसे इजरायल का सीधा विवाद होता रहता है. इसे अरब यूनिफाइड आर्मी के नाम से जाना जा सकता है.
मिस्र, जिसके पास अरब देशों में सबसे बड़ी सेना है, इस आर्मी के कमांडर-इन-चीफ की भूमिका निभाएगा. मिस्र ने पहले ही 20,000 सैनिकों को इस फोर्स में शामिल करने की बात की है. इसके अलावा सऊदी अरब, कतर, यूएई और कुवैत जैसे दूसरे खाड़ी देशों को भी इसमें अहम स्थान मिलेगा.
मिस्र के प्रस्तावित अरब नाटो में सऊदी अरब या किसी दूसरे खाड़ी देश को इसका उप प्रमुख बनाया जाएगा. इसके अलावा मोरक्को और अल्जीरिया जैसे देशों को भी इस योजना में शामिल किया जा सकता है.
ये सभी देश मिलकर एक इंटीग्रेटेड कमांड बनाएंगे, जिसमें सभी देशों की आर्मी, नेवी, एयरफोर्स और एयर डिफेंस सिस्टम शामिल होंगे. इसमें मिस्र की सबसे बड़ी सेना के साथ-साथ खाड़ी देशों के अत्याधुनिक हथियार शामिल होंगे. इजरायल के किसी अरब देश पर हमला करते ही इंटीग्रेटेड कमांड एक्टिवेट हो जाएगी और इजरायल के हमले का जवाब दिया जाएगा.
मिस्र द्वारा प्रस्तावित अरब यूनिफाइड आर्मी में पाकिस्तान और तुर्किए जैसे देशों को शामिल करने की योजना सामने नहीं आई है. लेकिन पाकिस्तान भी इजरायल के खिलाफ इस्लामिक गठबंधन बनाने के लिए उत्सुक है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इस्हाक डार ने इजरायल के खिलाफ 7 सूत्रीय प्रस्ताव पेश किया, जिसमें कहा गया है कि युद्ध अपराधों के लिए इजरायल को जवाबदेह ठहराया जाए और इजरायल के खिलाफ ज्वाइंट अरब-इस्लामी टास्क फोर्स का गठन हो. पाकिस्तान इजरायल की संयुक्त राष्ट्र सदस्यता भी निलंबित करवाना चाहता है.
इसी के साथ पाकिस्तान के प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के जरिए कैदियों की अदला-बदली, गाजा में स्थायी युद्धविराम, लोगों तक बेरोकटोक मानवीय पहुंच और टू-स्टेट सोल्यूशन से फिलीस्तीन मुद्दे को हल करने की बात शामिल है.
अगर कतर में हो रही दोहा समिट में इजरायल को कतर पर हमले के बाद जवाब देने की योजना बनाई जाती है तो पाकिस्तान भी इसका रणनीतिक समर्थन करेगा.
आज दोहा में बुलाई गई आपातकालीन इस्लामिक अरब समिट में 50 मुस्लिम देश शामिल हुए हैं. इजरायल के दुश्मन नंबर 1 ईरान ने भी इजरायल के खिलाफ इस्लामिक सेना तैयार करने की मांग की है.
हालांकि, अभी इस्लामिक देशों की संयुक्त सेना का विचार सामने आया है और इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है.
अगर दोहा में जुटे इस्लामिक देशों का नाटो गठबंधन तैयार हो जाता है, तो इनकी सम्मिलित आर्मी में जवानों की संख्या लगभग 50 लाख हो जाएगी, जबकि अमेरिका की अगुवाई वाले नाटो देशों की आर्मी 35 लाख की होगी.
इस्लामिक देशों के पास टैंकों की संख्या 13 हजार 600 जबकि नाटो देशों के पास 11 हजार 495 है. इस्लामिक देशों के पास अर्टिलरी की संख्या लगभग 15 हजार है जबकि नाटो के पास सिर्फ 10 हजार.
इस्लामिक देशों की वायुसेना में फाइटर जेट, हेलीकॉप्टर और दूसरे मिशन विमानों की संख्या लगभग 7 हजार है जबकि नाटो देशों के पास 22 हजार से ज्यादा आधुनिक विमानों का बेड़ा है. इस्लामिक देशों के पास 300 से ज्यादा युद्धपोत हैं जबकि नाटो देशों के पास इनकी संख्या 2 हजार से भी ज्यादा है.
इस्लामिक देशों का रक्षा बजट 300 अरब डॉलर है जबकि नाटो देशों का रक्षा बजट लगभग डेढ़ हजार अरब डॉलर है. इस्लामिक देशों में सिर्फ पाकिस्तान के पास 140 परमाणु बम हैं, जबकि नाटो देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस परमाणु शक्ति से लैस हैं और इनके परमाणु हथियारों की संख्या साढ़े 5 हजार से ज्यादा है.
सैनिकों की संख्या और कुछ संसाधनों में इस्लामिक नाटो को बढ़त मिल सकती है, लेकिन तकनीक, लॉजिस्टिक्स, एयर पावर, नौसेना क्षमता और कमांड संरचना में नाटो बहुत आगे है. लेकिन अगर ये सभी इस्लामिक देश एकजुट होते हैं, तो यह इजरायल के लिए एक बड़ा खतरा बन सकते हैं.
इजरायल के पास आधुनिक सेना है, लेकिन इस्लामिक देशों का गठबंधन एकजुट हुआ तो उन्हें अकेले संभालना आसान नहीं होगा. अमेरिका की भूमिका यहां अहम होगी. क्या कतर पर इजरायल के हमले ने इस्लामी नाटो के निर्माण की नींव रख दी है?
कतर पर हमले के बाद इस्लामिक सेना का विचार एक बार फिर से सामने आया है, लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है.
अब तक इस्लामिक सेना नहीं बन पाने की सबसे बड़ी वजह मुस्लिम देशों के बीच राजनीतिक टकराव है. यूएई, सऊदी, कतर और तुर्की जैसे प्रमुख देशों के बीच कभी कभी राजनयिक टकराव होता रहता है, जो इस तरह के गठबंधन को मुश्किल बनाता है.
इसके अलावा किस देश को इस गठबंधन की कमान सौंपी जाए, यह भी एक बड़ा मुद्दा है. सैन्य ताकत के मामले में अरब देशों के बीच बहुत अंतर है. अमेरिकी सैन्य सहायता पर निर्भर अरब देश अक्सर इस तरह के गठबंधनों से हिचकते हैं क्योंकि इससे अमेरिका और इजरायल से उनके संबंधों पर असर पड़ सकता है.
इसके अलावा इस्लामिक दुनिया में सुन्नी और शिया जैसे धार्मिक विभाजन हैं, जिससे ईरान और सऊदी जैसे देश साथ नहीं आ पाते. वहीं तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों का भी अपनी विदेश नीति पर जोर होता है, जो इस्लामिक सहयोग को प्रभावित कर सकता है.
कुल मिलाकर, इस्लामिक सेना कागज पर तो बहुत मजबूत नजर आ रही है, लेकिन जमीन पर इसका उतरना इतना आसान नहीं है.
इसके अलावा, इजरायल के निर्माण के बाद से अरब देशों से इजरायल के तीन बड़े युद्ध हो चुके हैं, जिसमें अरब देशों की संयुक्त सेनाओं ने इजरायल पर हमला किया, लेकिन हर बार इजरायल से अरब सेनाओं को मुंह की खानी पड़ी.
इजरायल ने 1948, 1967 और 1973 के युद्धों में अरब सेनाओं को परास्त किया. युद्ध संयुक्त सेनाएं या संख्याबल से नहीं जीते जाते बल्कि जीतने के लिए रणनीति और युद्ध का समन्वय जरूरी होता है, जिसमें इजरायल से टकराने के लिए संभावित इस्लामिक नाटो को भी काफी अभ्यास करना होगा.
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— Zee News (@ZeeNews) September 15, 2025
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