नेपाल में तख्तापलट: क्या पड़ोसी देश श्रीलंका और बांग्लादेश के रास्ते पर?
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पिछले 48 घंटों से नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में है। नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल का पुराना इतिहास रहा है, लेकिन इस किस्म की हिंसा और जानलेवा हमले पहले कभी नहीं देखे गए थे। प्रदर्शनों को देखकर लगता है, मानो बांग्लादेश और श्रीलंका वाली स्क्रिप्ट काठमांडू की सड़कों पर भी लिखी गई है।

श्रीलंका में जब राष्ट्रपति भवन में प्रदर्शनकारी घुसे थे, तो लूटपाट शुरू हो गई थी। बांग्लादेश में भी छात्रों ने शेख हसीना के घर में लूटपाट की। नेपाल में भी सरकारी इमारतों में लोग घुसे और नारेबाजी करते हुए निकले, किसी के हाथ में फर्नीचर तो किसी के हाथ में दूसरा कीमती सामान था।

श्रीलंका में प्रदर्शनकारियों का सामना राजपक्षे के दल के सांसदों से हुआ था, तो टकराव में एक सांसद की मौत हो गई थी। बांग्लादेश में भी शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के नेताओं को चुन चुनकर निशाना बनाया गया था। सैकड़ों कार्यकर्ताओं की हत्या तक कर दी गई थी। इसी तरह नेपाल में भी वरिष्ठ नेताओं के घर में घुसकर उन पर हमला किया गया है।

प्रदर्शनकारियों का रोष, प्रदर्शनों का तरीका और प्रदर्शन का परिणाम नेपाल में सबकुछ श्रीलंका और बांग्लादेश जैसा नजर आ रहा है। अराजकता से शुरू हुआ सफर और अस्थिरता का दौर नेपाल के भविष्य को लेकर सवाल खड़े कर रहा है।

बांग्लादेश में एक साल पहले हुए तख्तापलट में कथित छात्र क्रांति की मांग थी कि 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाला कोटा बंद होना चाहिए, नौजवानों के लिए रोजगार के ज्यादा संसाधन बनाए जाएं, देश में आर्थिक तरक्की हो और सरकारी विभागों में फैला भ्रष्टाचार खत्म हो। 5 अगस्त 2024 को अराजकता और आगजनी से शेख हसीना का तख्तापलट किया गया। अंतरिम सरकार लाकर यूनुस को कुर्सी पर बैठा दिया गया।

शेख हसीना के दौर में बांग्लादेश की महंगाई दर 6.97% थी, जो तख्तापलट के बाद 9.5 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। बेरोजगारी दर 4.6 प्रतिशत थी, जो आज 5.08 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। भ्रष्टाचार के इंडेक्स पर बांग्लादेश को 100 में से 24 अंक मिले थे, जो यूनुस के जमाने में घटकर 23 पहुंच चुके हैं।

यूनुस ने उन कट्टरपंथी और आतंकी तत्वों को रिहा कर दिया जिन्हें शेख हसीना ने काबू किया था। पाकिस्तान और उसकी फौज को भी बांग्लादेश में दोबारा एंट्री दे दी गई है। चुनाव के जरिए लोकतांत्रिक सरकार चुनने का वादा आज एक साल बाद भी अधूरा है।

वर्ष 2022 में श्रीलंका की महंगाई दर 49.72 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, जो आज 6 से 7 प्रतिशत के बीच आ गई है। बेरोजगारी दर 5.2 प्रतिशत थी, जो घटकर 3.8 प्रतिशत तक पहुंच गई है। तख्तापलट से पहले श्रीलंका में पेट्रोल, बिजली और दवाओं की किल्लत थी, जो आज ना के बराबर मानी जाती है।

श्रीलंका में तख्तापलट के बाद पहले हालात काबू किए गए और फिर ऐसे राजनीतिक दल चुनावी मैदान में उतरे जिन्हें राजनीति का अनुभव था, जबकि बांग्लादेश में सीधे यूनुस की कमान में सरकार बना दी गई। श्रीलंका में तख्तापलट के बाद आईं दोनों सरकारों ने आर्थिक सुधारों पर ध्यान दिया। शेख हसीना के बाद आए मोहम्मद यूनुस ने विदेशी कर्ज के जरिए अर्थव्यवस्था को संभालने की कोशिश की।

तख्तापलट के बाद श्रीलंका ने स्वतंत्र विदेश नीति की तरफ कदम बढ़ाए। यूनुस ने पाकिस्तान, चीन और अमेरिका जैसे देशों पर बांग्लादेश की निर्भरता बढ़ा दी, जिसके चलते भारत और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से बांग्लादेश के रिश्ते खराब होते गए।

नेपाल में ओली सरकार ने इस्तीफा दे दिया है। अब यह नेपाल की जनता और कथित ज़ेन ज़ी प्रदर्शनकारियों के ऊपर है कि वे श्रीलंका की तरह एक अनुभव वाली राजनीतिक व्यवस्था को चुनेंगे, या फिर यूनुस जैसे किसी अनुभवहीन चेहरे को। उनका यही चुनाव तय करेगा कि इस तख्तापलट से आगे जाकर नेपाल की दशा और दिशा क्या होगी।

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