ट्रंप का रोडमैप: भारत के खिलाफ ट्रैप ? दोस्ती या दुश्मनी, अमेरिकी राष्ट्रपति के मन में क्या है?
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डोनाल्ड ट्रंप के भारत को लेकर लगातार बदलते सुरों का विश्लेषण करना आवश्यक है. कभी वे भारत पर हाई टैरिफ का एलान करते हैं, धमकाते हैं जैसे भारत दुश्मन बन गया हो, तो कभी उसे अमेरिका का अच्छा दोस्त बताते हैं. कभी दावा करते हैं कि अमेरिका ने भारत की दोस्ती खो दी, तो कभी कहते हैं कि रिश्तों में आई तल्खी कुछ दिनों की बात है.

पिछले दो दिनों में ट्रंप ने जिस तरह यूटर्न मारा है, सवाल उठ रहे हैं कि कहीं वे भारत को फंसाने की कोशिश तो नहीं कर रहे. क्या उनका अचानक उमड़ रहा प्यार और दोस्ती की भावनाएं किसी साजिश का हिस्सा हैं? क्या वे वाकई बदल गए हैं या यह बदलाव उनके किसी बड़े प्लान का हिस्सा है?

ट्रंप ने कहा कि भारत के रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीदने पर उन्हें निराशा हुई. उन्होंने भारत पर पचास प्रतिशत टैरिफ लगाया, लेकिन भारत ने उन्हें स्पष्ट कर दिया है कि वह रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करने वाला है. ट्रंप को सबसे बड़ी समस्या इसी बात से है, जबकि भारत को समस्या अमेरिका के टैरिफ से है. तो सवाल उठता है, ट्रंप भारत के साथ रिश्तों को रीसेट कैसे करेंगे?

अगर वे रिश्तों को रीसेट नहीं कर सकते, तो भारत के प्रधानमंत्री को अपना दोस्त बताने और संबंधों को विशेष बताने के पीछे उनका मकसद क्या है? क्या ट्रंप भारत-चीन-रूस की दोस्ती की खबरों से विचलित हो गए हैं? क्या उन्हें लग रहा है कि यह दोस्ती उनके लिए खतरनाक है और अमेरिका के अंदर भारत-चीन की दोस्ती करवाने का ठीकरा बाद में उनके ऊपर ही फोड़ा जाएगा? क्या इसीलिए ट्रंप ऐसी चाल चल रहे हैं जिससे भारत और चीन के बीच पिघल रही बर्फ को पूरी तरह पिघलने से रोका जा सके और भारत और चीन में फूट डालकर दुनिया में राज करने के प्लान पर अमल किया जा सके.

जिस तरह अमेरिका के टैरिफ के खिलाफ चीन ने खुलकर भारत के पक्ष में बयान दिया और जिस तरह एससीओ समिट में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत के साथ कारोबारी साझेदारी को बढ़ाने वाले कदम उठाने का एलान किया, अगर एक बार फिर से भारत अमेरिका की तरफ जाता है, तो चीन को इससे धक्का लग सकता है और चीन भारत के रिश्तों मे अविश्वास बढ़ सकता है. इसीलिए सवाल उठ रहा है कि ट्रंप के बदले हुए सुर कहीं भारत-चीन के बीच सुधर रहे रिश्तों में ब्रेक लगाने की कोशिश तो नहीं है.

क्या डोनाल्ड ट्रंप चीन को भारत से दूर करके उस चौराहे पर खड़ा करना चाहते हैं, जहां भारत के लिए ना माया मिले ना राम वाली स्थिति हो जाए? यानि चीन से सुधर रहे रिश्ते भी खराब हो जाएं और बाद में ट्रंप फिर से भारत पर अपनी शर्तें लादने लगें.

भारत में आम धारणा है कि चीन पर भरोसा करने से ज्यादा आसान अमेरिका पर भरोसा करना है. आम अमेरिकी और अमेरिका की राजनीतिक पार्टियां भारत में एक मित्र को देखती हैं, जो भविष्य में चीन से मुकाबला करने के लिए उनके लिए जरूरी हैं. इसलिए भारत भी फिलहाल अमेरिका के साथ इस तनाव को एक हद से ज्यादा नहीं बढ़ाना चाहता.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ट्रंप की भावनाओं और रिश्तों के सकारात्मक मूल्यांकन की गहराई से सराहना की है और उनका पूर्ण समर्थन करते हैं.

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी डोनाल्ड ट्रंप के बयान पर प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि भारत अमेरिका को दुश्मन नहीं मानता और अमेरिका से रिश्ते भी खराब नहीं करना चाहता. ये रिश्ते सुधर सकते हैं, लेकिन सही नीयत के साथ अमेरिका को अपनी गलतियां सुधारनी होंगी.

अगर ट्रंप वाकई जो कुछ कह रहे हैं, वह करना चाहते हैं, तो उन्हें अपने दरबारियों की जुबान पर भी ताला लगाना होगा, जो भारत और अमेरिका के संबंधों को बिगाड़ने वाले बयान दे रहे हैं.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की समर्थक लॉरा लूमर ने दावा किया है कि राष्ट्रपति ट्रंप अब अमेरिकी आईटी कंपनियों को भारत की कंपनियों से अपना काम आउटसोर्स करने से रोकने पर विचार कर रहे हैं. अगर ट्रंप वाकई ऐसा सोच रहे हैं तो भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते और ज्यादा बिगड़ सकते हैं.

भारत का आईटी सेवाओं का कुल बाजार लगभग 250 अरब डॉलर का है और अमेरिका भारतीय आईटी उद्योग के लिए सबसे बड़ा बाजार है. भारत के कुल आईटी निर्यात का 60 से 70% अमेरिका को होता है और भारतीय आईटी उद्योग अमेरिका से सालाना 100 अरब डॉलर से ज्यादा की कमाई करता है.

अगर अमेरिकी कंपनियों को भारतीय कंपनियों से आउटसोर्सिंग करने से रोक दिया जाता है, तो भारतीय कंपनियों के लिए वित्तीय संकट पैदा हो सकता है. ये कंपनियां लाखों डॉलर के अनुबंध खो सकती हैं, जिससे भारत में बेरोजगारी बढ़ सकती है.

लेकिन अमेरिका के लिए भारत से आउट सोर्सिंग पर प्रतिबंध लगाने की बात सोचना आसान है, लेकिन इसे लागू करना इतना आसान नहीं है. अमेरिकी कंपनियां कॉल सेंटर, डेटा प्रोसेसिंग, सॉफ़्टवेयर डिवेलपमेंट जैसे कार्यों के लिए भारतीय कंपनियों पर निर्भर हैं. अगर भारतीय कंपनियों पर बैन लगा तो उनके प्रोडक्ट की कीमत अमेरिका में अधिक हो जाएगी यानि अमेरिका मे महंगाई बढ़ जाएगी.

अगर अमेरिकी कंपनियां अपने काम को भारत से बाहर ले जाती हैं, तो नए देशों में काम करने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे कर्मचारियों का वेतन ज्यादा हो सकता है. नए इंफ्रास्ट्रक्चर और उपकरण की लागत बढ़ सकती है. इससे अमेरिकी कंपनियों के व्यवसाय की कुल लागत बढ़ जाएगी इसलिए भारत से बाहर काम करना उनके लिए सस्ता और आसान नहीं होगा.

अमेरिका में जिस सॉफ्टवेयर डेवलपर का औसत वेतन करीब 70,000 डॉलर से 1 लाख 20 हजार डॉलर सालाना होगा, वहीं भारत में उसी सॉफ्टवेयर डेवलपर का औसत वेतन करीब 8,000 डॉलर से 15,000 हजार डॉलर सालाना होता है यानि अमेरिकी कंपनियों की लागत 5 से 10 गुना ज्यादा हो जाएगी.

अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक ने भारत को भड़काने वाला बयान देते हुए कहा है कि एक या दो महीने में भारत बातचीत की मेज पर होगा, माफी मांगेगा और ट्रंप के साथ समझौता करने की कोशिश करेगा क्योंकि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया तो उसे मोटा टैरिफ भरना होगा.

लुटनिक ने भारत को BRICS समूह को छोड़कर अमेरिका को सपोर्ट करने की धमकी भी दी है.

जबकि भारत पहले ही साफ कर चुका है कि वह रूस से तेल भी खरीदेगा और अपने किसानों और व्यापारियों के हितों से समझौता भी नहीं करेगा.

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