जाति-धर्म की राजनीति छोड़ो, वरना... - गडकरी के बयान से सियासी भूचाल, आखिर किससे नाराज हैं मोदी के मंत्री?
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केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नागपुर में एक कार्यक्रम में जाति और धर्म आधारित राजनीति पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि राजनीति में व्यक्ति की पहचान उसके काम और चरित्र से होनी चाहिए, न कि उसकी जाति, धर्म, भाषा या लिंग से।

गडकरी ने सेंट्रल इंडिया ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के दीक्षांत समारोह में कहा कि उन्हें वोट मिले या न मिलें, वे जातिगत राजनीति का हिस्सा कभी नहीं बनेंगे। लोग जाति का हवाला देकर समर्थन मांगते हैं, लेकिन वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हैं।

गडकरी ने कहा, मैं राजनीति में हूं और ये सब चलता रहता है, लेकिन मैं इससे इनकार करता हूं, भले ही इससे मुझे वोट मिलें या न मिलें। उन्होंने एक प्रसंग का जिक्र करते हुए कहा, मैंने 50,000 लोगों से कहा - जो करेगा जात की बात, उसे कस के मारूंगा लात । मेरे दोस्तों ने कहा कि ऐसा कहकर मैंने खुद का नुकसान कर लिया। लेकिन मुझे इसकी परवाह नहीं। चुनाव हार जाने से जिंदगी खत्म नहीं होती। मैं अपने सिद्धांतों पर अटल रहूंगा।

नागपुर में महानुभाव पंथ के सम्मेलन में गडकरी ने नेताओं से धार्मिक गतिविधियों से दूर रहने की अपील की। उन्होंने कहा, धर्म को अगर सत्ता में बैठे लोगों के हाथों में सौंप दिया गया तो उसका नुकसान समाज को उठाना पड़ेगा। धर्म, समाजसेवा और राजनीति-तीनों को अलग-अलग रखना जरूरी है। उन्होंने कहा कि कई बार नेता धर्म का गलत इस्तेमाल करते हैं, जिससे विकास और रोजगार जैसे अहम मुद्दे पीछे छूट जाते हैं।

गडकरी के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर अटकलें तेज हैं कि आखिर वे किससे नाराज हैं। लोग अनुमान लगा रहे हैं कि वे भाजपा के किसी नेता या किसी मुख्यमंत्री से नाराज हैं। एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा, नितिन गडकरी किस मुख्यमंत्री से इतना नाराज हैं? बस नाम नहीं ले पा रहे हैं!

इस बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने जाति जनगणना को संवेदनशील मुद्दा बताया है। अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने कहा कि हिंदू समाज में जाति और जातिगत रिश्ते एक संवेदनशील विषय हैं और इसे चुनावी राजनीति के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार जरूरत पड़ने पर पिछड़े वर्गों की भलाई के लिए आंकड़े जुटा सकती है, लेकिन इसे राजनीतिक हथियार न बनाया जाए।

गडकरी ने चक्रधर स्वामी की शिक्षाओं को जीवन के लिए प्रेरणादायी बताते हुए तीन अहम संदेश दिए: 1. सच बोलना कठिन है, लेकिन यह ही वास्तविक नेतृत्व है। 2. जो जनता को बेहतर तरीके से मूर्ख बना सके, वही सफल नेता बनता है। 3. शॉर्टकट कभी मंजिल तक नहीं पहुंचाता। धैर्य और मेहनत ही सफलता की असली कुंजी है।

नितिन गडकरी के इन बयानों ने न सिर्फ राजनीतिक हलकों में चर्चा छेड़ दी है, बल्कि जाति और धर्म की राजनीति पर भी नए सिरे से बहस शुरू कर दी है।

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