पीएम-सीएम बिल से डरे नायडू और नीतीश, संजय राउत का दावा!
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संसद में पेश तीन नए विधेयकों को लेकर सियासी सरगर्मी तेज है। शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

राउत का कहना है कि सरकार इन विधेयकों के ज़रिये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर दबाव बनाना चाहती है, ताकि वे एनडीए सरकार से समर्थन वापस लेने का विचार त्याग दें।

राउत ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मोदी-शाह ने मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को गिरफ्तार करने और बर्खास्त करने के लिए संसद में विधेयक पेश किया है। उनका दावा है कि नायडू और नीतीश सबसे ज्यादा चिंतित हैं, क्योंकि मोदी सरकार को डर है कि वे समर्थन वापस ले सकते हैं।

गौरतलब है कि गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक और संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक पेश किए थे। विपक्ष ने इनका पुरजोर विरोध किया, जिसके बाद विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया है।

राउत ने इन विधेयकों को विपक्षी दलों को डराने का हथियार बताया है। उन्होंने कहा कि अगर गंभीर अपराधों के आरोपों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को गिरफ्तार किया जाता है, तो उन्हें पद से हटाने का प्रावधान करने वाले विधेयक का उद्देश्य विपक्षी दलों की सरकारों को आतंकित करना है।

उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और शिवसेना के मंत्रियों पर भी निशाना साधा और कहा कि अगर यह कानून लागू हो गया, तो उन्हें हर दिन जेल जाना पड़ेगा।

राउत ने आरोप लगाया कि ये नए कानून तानाशाही के प्रतीक हैं और सरकार का दावा है कि राजनीति में नैतिकता होनी चाहिए, लेकिन पिछले 10 वर्षों में सरकार ने इसका पालन नहीं किया।

विधेयकों का विरोध करते हुए एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत का उल्लंघन है और जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकारों को कमजोर करता है।

कांग्रेस सांसद के.सी. वेणुगोपाल ने भी विधेयकों को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया और भाजपा पर निशाना साधा।

जवाब में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए थे और गिरफ्तारी से पहले उन्होंने नैतिक आधार पर इस्तीफा दिया था। उन्होंने कहा कि अदालत द्वारा निर्दोष घोषित किए जाने तक उन्होंने कोई संवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया।

संसद में विधेयकों पर गरमागरम बहस जारी है और फिलहाल यह मामला संयुक्त समिति के पास भेजा गया है। विपक्ष इसे सत्ता पक्ष की राजनीतिक साजिश बता रहा है, जबकि सरकार इसे राजनीति में नैतिकता बहाल करने की पहल कह रही है।

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