चीन का भारत विरोधी प्रोपेगेंडा: कैसे भारत ने काटी षड्यंत्र वाली पाइपलाइन?
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चीन का चरित्र अवसरवाद और अफवाह के ईर्द-गिर्द घूमता है, जिसमें शी जिनपिंग के नेतृत्व में, भारत विरोधी दुष्प्रचार फैलाया जा रहा है।

शी जिनपिंग के विशेष दूत और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दिल्ली में 24 घंटे के अंदर तीन बड़ी बैठकें कीं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की, और एनएसए अजीत डोवल के साथ सीमा पर शांति को लेकर बातचीत हुई। इससे पहले, उन्होंने विदेश मंत्री एस जयशंकर से भी मुलाकात की, जिसमें चीन ने रेयर अर्थ, फर्टिलाइजर और सुरंग बोरिंग उपकरण के निर्यात का वादा किया।

इन भेंट-मुलाकातों के बीच, चीन ने अपने विदेश मंत्रालय के माध्यम से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें दावा किया गया कि एस जयशंकर ने एक चीन एक नीति को स्वीकार किया और ताइवान को चीन का हिस्सा बताया। इस बयान को चाइनीज मीडिया ने प्रोपेगेंडा बनाकर प्रसारित करना शुरू किया, ताकि भारत मान ले कि ताइवान चीन का हिस्सा है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा शुरू हुई, लेकिन भारत ने तुरंत इस अफवाह पर विराम लगा दिया। भारत ने स्पष्ट किया कि वन चाइना पॉलिसी या ताइवान को लेकर नई दिल्ली की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। ताइवान के साथ भारत का आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ता जारी रहेगा।

भारत ने चीन की षड्यंत्र वाली पाइपलाइन को काट दिया। इससे स्पष्ट हो गया कि मौकापरस्ती में चीन का कोई सानी नहीं है। हिंदी-चीनी भाई-भाई के नए संस्करण की लॉन्चिंग से पहले उसका कपट सामने आ गया।

टैरिफ को लेकर भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में थोड़ी खटास आई है, जिसमें ड्रैगन को मौका दिख रहा है। उसे लगा रहा है कि संबंधों को सृदृढ़ करने की आड़ में वह भारत से सौदा कर सकता है।

ताइवान पर कब्जा करना चीन का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। चीन किसी भी कीमत पर ताइवान को हथियाना चाहता है। चीन सिर्फ इसलिए ताइवान को नहीं कब्जाना चाहता है कि वह कभी उसका हिस्सा हुआ करता था, बल्कि ड्रैगन को पता है कि ताइवान की भोगौलिक स्थिति प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर के बीच एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बिंदू पर है।

भारत और ताइवान के बीच आधिकारिक तौर पर राजनयिक संबंध नहीं हैं, मगर दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ते बहुत ही मधुर हैं।

पिछले कुछ सालों में भारत और ताइवान के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बहुत अधिक मजबूत हुए हैं। ताइवान की न्यू साउथबाउंड पॉलिसी और भारत की एक्ट ईस्ट नीति एक-दूसरे को करीब लाती है।

भारत ने कभी नहीं माना कि ताइवान चीन का हिस्सा है। चीन की वन चाइना पॉलिसी पर भी भारत चुप्पी साधकर ही रहा है।

2008 के बाद से, चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर अपनी नापाक नज़र डाली और उसे एक चीन नीति का हिस्सा बताने लगा। 2010 में, चीन ने जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए स्टेपल्ड वीजा जारी करना शुरू किया, जिससे यह संदेश गया कि चीन, जम्मू-कश्मीर को भारत के हिस्से के रूप में पूरी तरह स्वीकार नहीं करता।

इसके बाद भारत ने साफ कर दिया कि जब तक एक भारत की नीति है, तब तक वन चाइना पॉलिसी का समर्थन नहीं हो सकता है।

संबंध मजबूत करने की आड़ में, ड्रैगन ने वही किया जो उसकी फितरत रही है। जैसे ही अवसर मिला, अपना हित साधने के लिए दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया, जिससे भारत और ताइवान के रिश्ते प्रभावित हो सकें।

वांग यी का पाकिस्तान दौरा, जब आतंकवाद पर पाकिस्तान बेनकाब है, चीन के चरित्र को दर्शाता है। चीन के चरित्र से परिचित भारत सतर्क है, और उसने चीन को यह संदेश दे दिया है कि ड्रैगन के जाल में भारत नहीं फंसने वाला है। भारत हर दोस्ती को स्वीकार करेगा, मगर किसी की शर्तों पर नहीं।

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