पश्चिम बंगाल की धरती पर एक ऐसा राजनीतिक प्रयोग हुआ है, जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल था। यह एक ऐसा चमत्कार है, जो धरती और आसमान को मिलाने जैसा है।
देश की दो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियां, बीजेपी और कांग्रेस, क्या कभी हाथ मिला सकती हैं? शायद नहीं। लेकिन बंगाल में कुछ ऐसा ही हुआ है। बीजेपी, कांग्रेस और लेफ्ट, तीनों दल एक साथ आए और तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन बनाया।
यह मामला पश्चिम बंगाल के नदिया जिले का है। नकाशीपाड़ा थाने की कांचकुली सहकारी समिति के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी, कांग्रेस और लेफ्ट ने लोकतांत्रिक गठबंधन बनाया और उसे हरा दिया।
सहकारी समिति में कुल 9 सीटें थीं और 772 मतदाता थे। चुनाव के नतीजे आए तो लोकतांत्रिक गठबंधन ने 5 सीटें जीतीं, जबकि तृणमूल कांग्रेस को 4 सीटें मिलीं। यह चुनाव स्वतंत्रता दिवस के अगले दिन यानी 16 अगस्त को हुआ था।
यानी तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए सभी विपक्षी पार्टियां एक हो गईं। जबकि केंद्र की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और लेफ्ट एक हैं और INDIA गठबंधन के जरिए तीनों पार्टियों का लक्ष्य बीजेपी को सत्ता से हटाना है।
बंगाल की राजनीति की बात करें तो लेफ्ट और कांग्रेस एक साथ हैं, लेकिन दोनों ही पार्टियां बीजेपी का भी विरोध करती हैं। बीजेपी और लेफ्ट के नेताओं का कहना है कि गठबंधन के आरोप गलत हैं। उनके मुताबिक तृणमूल के खिलाफ बंगाल में गुस्सा है, जिसकी वजह से ऐसे नतीजे आए हैं।
हालांकि ममता बनर्जी अक्सर यह आरोप लगाती रही हैं कि उनके खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट है। मार्च 2023 में सागरदिघी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस से अपनी पार्टी की हार के बाद ममता बनर्जी ने दोनों के बीच अनैतिक गठबंधन का आरोप लगाया था। यही आरोप लगाकर उन्होंने 2024 में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला लिया था।
बंगाल में सहकारी समिति के चुनाव में ममता के खिलाफ विरोधी पार्टियों का साथ आना वाकई हैरान करता है, लेकिन 2 घोर विरोधी पार्टियों के साथ आने के और भी कई उदाहरण हैं।
आज बिहार में कांग्रेस और आरजेडी का गठबंधन है, लेकिन आरजेडी के संस्थापक लालू प्रसाद यादव की राजनीति में एंट्री कांग्रेस के विरोध से हुई थी। इसी तरह यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन है, लेकिन एक जमाने में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी घोर कांग्रेस विरोधी थे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो पिछले 12 वर्षों में इतनी बार दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को दोस्त बनाया है कि लोग गिनती भूल गए हैं और उन्हें मौजूदा समय की राजनीति का पलटूराम कहा जाता है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी का गठन ही कांग्रेस सरकार के विरोध में हुआ था, लेकिन बाद में उसी कांग्रेस के सहारे अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे।
महाराष्ट्र में शरद पवार ने 1999 में सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस छोड़ी थी, लेकिन बाद में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया।
तमिलनाडु में कांग्रेस और डीएमके अच्छे दोस्त हैं, राज्य सरकार में साझेदार हैं, लेकिन 1997 में इंद्र कुमार गुजराल सरकार से डीएमके के मंत्रियों को हटाने की मांग को लेकर कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था, जिससे गुजराल सरकार गिर गई थी।
कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। दोस्त कब दुश्मन बन जाए और दुश्मन कब दोस्त बन जाए, कहा नहीं जा सकता। मिलते-जुलते हित के लिए 2 पार्टियां साथ आती हैं और जब दोनों के हित टकराते हैं तो वे अलग हो जाती हैं।
दोस्त बनाने का मकसद आम तौर पर सिर्फ सत्ता हासिल करना होता है, लेकिन जिस दिन दोस्त खुद भी सत्ता चाहने लगता है, उस दिन यह दोस्ती खत्म हो जाती है।
चूंकि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी, कांग्रेस और लेफ्ट कमजोर हैं, इसलिए वे साथ आ गए, लेकिन जिस दिन इनकी ताकत बढ़ेगी, उस दिन इनके रास्ते भी अलग हो जाएंगे।
#DNAWithRahulSinha | BJP+कांग्रेस+लेफ्ट = राजनीतिक चमत्कार . बंगाल में दीदी के खिलाफ विपक्ष का खेला !
— Zee News (@ZeeNews) August 19, 2025
प. बंगाल के नदिया में TMC के खिलाफ गठबंधन। BJP, कांग्रेस, लेफ्ट ने मिलकर लड़ा चुनाव, सहकारी समिति के चुनाव में तीनों पार्टियों का गठबंधन#DNA #WestBengal #BengalPolitics… pic.twitter.com/UXy2lngjgs
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