प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री को हटाने वाले बिल पर विपक्ष का तीखा वार, ममता ने बताया सुपर आपातकाल
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने इसे देश में लोकतंत्र को हमेशा के लिए खत्म करने वाला कदम बताया है।

ममता बनर्जी ने इस विधेयक को सुपर-आपातकाल से भी बड़ा कदम करार दिया है। उनका आरोप है कि सरकार इस कानून के जरिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खत्म करना चाहती है।

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बिल की आलोचना करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र पर एक बड़ा हमला है।

ममता बनर्जी ने लिखा, मैं भारत सरकार द्वारा आज पेश किए गए 130वें संविधान संशोधन विधेयक की कड़ी निंदा करती हूं। मैं इसे एक सुपर-आपातकाल से भी बढ़कर मानती हूं, जो भारत के लोकतांत्रिक युग को हमेशा के लिए समाप्त करने की दिशा में एक कदम है।

उन्होंने आरोप लगाया कि विधेयक का उद्देश्य एक व्यक्ति-एक पार्टी-एक सरकार की प्रणाली को मजबूत करना है। ममता बनर्जी ने कहा, यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे को रौंदने वाला है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे न्यायपालिका की आजादी खतरे में पड़ सकती है। यह विधेयक अब हमारी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को समाप्त करना चाहता है। हम जो देख रहे हैं वह पहले कभी नहीं हुआ है।

उन्होंने इस विधेयक को भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर हिटलरी हमले के समान बताया। ममता बनर्जी का मानना है कि यह न्यायपालिका को उसकी संवैधानिक भूमिका से वंचित करना चाहता है।

अदालतों को कमजोर करना जनता को कमजोर करना है। उन्हें न्याय पाने के अधिकार से वंचित करना, उन्हें लोकतंत्र से वंचित करना है, ममता ने कहा। हमें इस खतरनाक कदम का विरोध करना ही होगा। संविधान सत्ताधारियों की संपत्ति नहीं है। यह भारत की जनता का है।

इससे पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में विपक्ष के विरोध और हंगामे के बीच संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 , संघ राज्य क्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2025 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 पेश किए।

संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 में प्रधानमंत्री, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को गंभीर अपराध के आरोपों में पद से हटाने का प्रावधान है।

विधेयक में यह भी कहा गया है कि पांच साल या उससे अधिक की सजा वाले गंभीर अपराधों के आरोपों में अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी अन्य मंत्री को 30 दिन की हिरासत में रखा जाता है, तो इसके अगले दिन ही उन्हें पदमुक्त समझा जाएगा। हालांकि, हिरासत से छूटने के बाद ऐसे व्यक्ति को फिर से पद दिया जा सकता है।

विधेयक को संसद की संयुक्त समिति को भेजने का प्रस्ताव किया गया, जिसे ध्वनि मत से स्वीकार कर लिया गया। समिति को संसद के अगले सत्र के पहले दिन अपनी रिपोर्ट सदन में पेश करने के लिए कहा गया है।

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