पाकिस्तान के नेता भले ही बड़ी-बड़ी धमकियां दे रहे हों, लेकिन वे अनजाने में ही तुर्किए और ईरान की कठपुतली बन गए हैं. ये दोनों देश पाकिस्तान का मुद्दा भुनाकर खुद को मुस्लिम दुनिया का खलीफा साबित करना चाहते हैं.
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद सीमा पार क्या चल रहा है, यह जानना बेहद जरूरी है. पिछले 48 घंटों में ईरान और तुर्किए ने पाकिस्तान के नाम पर कुछ गतिविधियाँ की हैं.
दो दिन पहले ईरान ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता कराने का प्रस्ताव दिया था. सोमवार को खबर आई कि तुर्किए का एक मिलिट्री कार्गो विमान पाकिस्तान में उतरा है. ईरान ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव से बड़ा नुकसान हो सकता है.
पाकिस्तान में यह खबर वायरल हुई कि तुर्किए ने इस विमान के जरिए हथियार और गोला बारूद भेजे हैं. हथियार भेजने की खबर फैलने का पहला कारण शहबाज शरीफ का पहलगाम हमले से ठीक पहले तुर्किए जाना था. दूसरा बड़ा कारण तनाव के बीच शहबाज और तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोआन की बातचीत थी.
हालांकि, तुर्किए ने तुरंत हथियार भेजने की खबर का खंडन कर दिया है, लेकिन एर्दोआन पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों को लेकर उनके चरित्र पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं. भूराजनीति के जानकारों का मानना है कि वे भरोसे के लायक नहीं हैं.
तुर्किए किसी का सगा नहीं है. 2019 में तुर्की ने सीरिया में दखल दिया था और सीरियाई सरकार के खिलाफ इस्लामिक स्टेट को हथियारों और पैसे की मदद दी थी, जिसकी वजह से आखिरकार सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद का तख्तापलट हो गया था.
इसी तरह, 2020 में आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच युद्ध चल रहा था, तब एर्दोआन ने ही अचानक अजरबैजान को ड्रोन सप्लाई करने का ऐलान किया था, जिसके बाद युद्ध में आर्मीनिया की हार हो गई थी और आर्मीनियाई क्षेत्र पर अजरबैजान का कब्जा हो गया था.
2024 में जब बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ तो तुर्किए से बांग्लादेश को ड्रोन सप्लाई किए गए थे. एक तरफ एर्दोआन ने अजरबैजान, सीरिया और बांग्लादेश में कथित इस्लामी ताकतों को मजबूत किया, तो दूसरी तरफ कथित तौर पर मुस्लिम उम्मा का नाम लेकर ईरान ने इजरायल के खिलाफ हमास, हिज्बुल्ला और हूती आतंकियों को पाला-पोसा.
यानी दोनों का मकसद एक ही है: किसी भी जंग या टकराव में दखल देना, मुस्लिमों की हिमायत और इस्लाम का हवाला देना और इस्लामिक दुनिया पर अपना प्रभाव स्थापित करना. ईरान से भारत के संबंध बेहतर हैं, लेकिन अगर तुर्किए ने वाकई पाकिस्तान को हथियारों से मदद दी है तो यह पीठ में छुरा भोंकने वाली हरकत से कम नहीं माना जाएगा.
2023 में तुर्किए में बड़ा भूकंप आया था. रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 7.8 मापी गई थी. भूकंप की वजह से तुर्किए का तकरीबन हर बड़ा शहर तबाह हो गया था. भूकंप आते ही तुर्किए को मदद भेजने वाला पहला देश भारत ही था. ऑपरेशन दोस्त के तहत भारत ने NDRF और भारतीय सेना की रेस्क्यू यूनिट भेजी थीं, जिन्होंने भूकंप प्रभावित इलाकों में फील्ड अस्पताल लगाए थे. साथ ही भारत ने तकरीबन 7 करोड़ रुपए के उपकरण भी तुर्किए भेजे थे.
भारत ने तुर्किए को दोस्त माना, लेकिन पिछले कुछ समय में जिस तरह एर्दोआन का पाकिस्तान प्रेम छलका और अब हथियारों की खेप से जुड़ी खबर सामने आई, उसके बाद भारत के लोग भी कह रहे हैं कि एर्दोआन और उनका तुर्किए कतई भरोसे के लायक नहीं हैं.
#DNAWithRahulSinha | पाकिस्तान के नाम पर..नया खलीफा वॉर ... तुर्किए Vs ईरान...पाकिस्तान पर नया संग्राम !
— Zee News (@ZeeNews) April 28, 2025
पाकिस्तान पर सक्रिय हैं ईरान, तुर्किए.. ईरान दे चुका है मध्यस्थता का ऑफर, कहा- हम भारत-पाक जंग नहीं चाहते #TukdeTukdePakFlag पर दीजिए अपनी राय#DNA… pic.twitter.com/HQMEnmSmMO
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