पहलगाम आतंकी हमला: NYT को अमेरिकी संसद ने लगाई फटकार, उग्रवादी नहीं, आतंकवादी कहो!
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पहलगाम में हुए दर्दनाक आतंकी हमले, जिसमें 28 निर्दोष लोगों की जान चली गई, पर वैश्विक मीडिया की कवरेज सवालों के घेरे में है। खास तौर पर, न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा पर अमेरिकी संसद की हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी ने कड़ी आपत्ति जताई है।

कमेटी ने NYT को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि अखबार ने हमले को उग्रवादियों द्वारा किया गया हमला बताया, जो कि सरासर गलत है। कमेटी ने जोर देकर कहा कि यह एक स्पष्ट आतंकवादी हमला था, और चाहे भारत हो या इजरायल, आतंकवाद के मामले में NYT वास्तविकता से बहुत दूर है।

पहलगाम में हुए हमले में आतंकियों ने क्रूरता की हदें पार कर दी थीं। पीड़ितों के अनुसार, हमलावरों ने पुरुषों की पैंट खोलकर यह जांचा कि उनका खतना हुआ है या नहीं। जिनका खतना नहीं हुआ, उन्हें हिंदू समझकर गोली मार दी गई। पीड़ितों से उनके पहचान पत्र भी मांगे गए और उनसे उनका धर्म पूछा गया।

इस हमले में 28 लोगों की जान गई, हालांकि NYT ने मृतकों की संख्या 24 बताई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हमले को क्षेत्र में नागरिकों पर सालों में हुआ सबसे भयानक हमला बताते हुए इसे आतंकी हमला करार दिया और दोषियों को सजा दिलाने का वादा किया।

गौरतलब है कि अल जजीरा, बीबीसी, वाशिंगटन पोस्ट और पाकिस्तानी मीडिया डॉन जैसे कई बड़े संस्थानों ने भी आतंकियों को आतंकवादी कहने से परहेज किया। अल जजीरा ने आतंकियों को सशस्त्र व्यक्ति और बंदूकधारी कहा, जबकि आतंकी हमला शब्द को संदेह के साथ डबल कोट में लिखा।

पाकिस्तानी मीडिया डॉन ने जम्मू कश्मीर को भारत अधिकृत कश्मीर कहकर भारत का हिस्सा मानने से इनकार किया और पहलगाम को मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र बताया। साथ ही, हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन कश्मीर रेजिस्टेंस को लिटिल नोन ग्रुप कहकर छोटा दिखाने की कोशिश की।

वाशिंगटन पोस्ट ने भी आतंकियों को बंदूकधारी कहा और लिखा कि हमला बिना किसी भेदभाव के किया गया, जबकि पीड़ितों ने स्पष्ट रूप से बताया कि हमला धर्म के आधार पर किया गया था। बीबीसी ने भी जम्मू कश्मीर को भारत प्रशासित कश्मीर लिखा और आतंकवाद को अलगाववादी विद्रोह कहकर हल्का करने का प्रयास किया।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों द्वारा आतंकवाद को कम करके आंकने का यह पहला मामला नहीं है। यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि कुछ मीडिया संस्थान आतंकवाद को सही तरीके से पेश करने से हिचकते हैं और अपने निहित स्वार्थों को प्राथमिकता देते हैं।

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