म्याँमार में दस दिन पहले आए विनाशकारी भूकंप से सबसे अधिक बच्चे प्रभावित हुए हैं. कई बच्चों ने अपने घर, अपने स्कूल और कई मामलों में तो अपने पूरे परिवार को ही खो दिया है.
इस आपदा से हुई तबाही के बाद, लोग अब भी सदमे में हैं और उन्हें फिर से भूकंप के झटके आने की चिंता लगातार बनी हुई है.
28 मार्च को स्थानीय समयानुसार 1 बजे से ठीक पहले आया 7.7 तीव्रता का यह भूकंप, हाल के वर्षों का सबसे शक्तिशाली भूकंप था. क्षेत्र में भूकंप पश्चात झटके अभी भी जारी हैं.
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने आगाह किया है कि दोबारा भूकंप आने के डर से बच्चे, अत्यधिक गर्मी व साफ़-सफ़ाई की कमी के बीच खुले में सोने को मजबूर हैं. इससे क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी आपातस्थिति पैदा हो सकती है.
नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, भूकंप में 3500 से अधिक लोगों की जान चली गई है, लगभग 5000 घायल हुए हैं और 200 अभी भी लापता हैं.
म्यांमार में जवाबी कार्रवाई का जायज़ा लेने गए, संयुक्त राष्ट्र के राहत सहायता प्रमुख ने ज़रूरतमंद समुदायों की हर संभव मदद करने की संगठन की प्रतिबद्धता को दोहराया.
संयुक्त राष्ट्र आपातकालीन राहत समन्वयक टॉम फ्लैचर ने राजधानी नेपीडॉ में आपदा से तबाह हुए क्षेत्रों का दौरा करते हुए कहा, संयुक्त राष्ट्र यहाँ मौजूद है - हम यहीं रहकर उन्हें सहायता प्रदान करना जारी रखेंगे. लेकिन हम चाहते हैं कि इसमें दुनिया भी हमारा साथ दे. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इस समुदाय को अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने के लिए हर संभव मदद मिले.
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा सहायता में वृद्धि करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इसका सबसे अधिक प्रभाव सबसे कमजोर समुदायों पर पड़ा है.
उन्होंने कहा, एक बात जिसने मुझे सबसे ज़्यादा अचम्भित किया, वो ये है कि आम तौर पर आपको यह लगता है कि भूकंप से सभी लोगों पर एक समान प्रभाव पड़ता है. लेकिन वास्तव में निर्धनतम समुदाय पर इसका सबसे ज़्यादा असर होता है, क्योंकि उनके पास जवाबी कार्रवाई करने, घर बदलने, अन्य स्थानों पर जाने या फिर पुनर्निर्माण के लिए संसाधन नहीं होते.
भूकंप से, म्याँमार की पहले से ही कमज़ोर शिक्षा व्यवस्था को गहरा झटका लगा है. सरकार से प्राप्त जानकारी के अनुसार, कम से कम 1,824 स्कूल क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गए हैं, जिससे हज़ारों बच्चे शिक्षा से महरूम हो गए हैं.
मलबे में तब्दील हुए स्कूलों को देखकर यह चिंता बढ़ गई है कि अनगिनत बच्चे, ख़ासतौर पर ग़रीब समुदाय के बच्चे, अपनी पढ़ाई में पिछड़ जाएँगे - या शायद फिर कभी स्कूल वापस नहीं लौट पाएँगे.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने चेतावनी दी है कि इससे उबरने का कोई त्वरित या आसान तरीक़ा नहीं है.
म्यांमार में यूनीसेफ़ की संचार प्रमुख, एलियाना ड्राकोपोलोस ने कहा, कई बच्चों ने अपने माता-पिता, अपने दोस्तों को खो दिया है और उन्हें एक ऐसे स्थान की ज़रूरत है जहाँ उन्हें मनोवैज्ञानिक सहायता मिल सके तथा हालात सामान्य होने का अहसास मिल सके.
घरों, अस्पतालों और स्वच्छता सुविधाओं की तबाही के साथ-साथ, सप्ताह के अंत में हुई भारी वर्षा से बीमारियाँ फैलने का ख़तरा बढ़ गया है.
संयुक्त राष्ट्र विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नेतृत्व वाले स्वास्थ्य समूह के अनुसार, 65 से अधिक स्वास्थ्य सुविधाएँ क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है. चिकित्सा आपूर्ति की कमी के कारण, घायल व बीमार बच्चों की जान को जोखिम बढ़ गया है.
बच्चे, शारीरिक चोटों के अलावा, आपदा के मनोवैज्ञानिक आघात से भी जूझ रहे हैं. इनमें से कई घर के अन्दर सोने से डरने लगे हैं. उन्हें यह भय सताता रहता है कि कहीं फिर भूकंप न आ जाए.
भूकंप से हुई तबाही से विकलांग व्यक्ति असमान रूप से प्रभावित हुए हैं. शारीरिक चोटों, विस्थापन और आवश्यक सेवाओं में व्यवधान के कारण, वो बेहद संवेदनशील स्थिति में हैं.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए प्रारंभिक मूल्यांकन के अनुसार, कई विकलांगों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ा है. आपदा के कारण भी कुछ लोग विभिन्न प्रकार की विकलांगता का शिकार हुए हैं, जिससे सीमित संसाधनों पर दबाव बढ़ा है.
प्रारंभिक रिपोर्ट से पता चलता है कि विकलांग व्यक्तियों के परिवारों को भी गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. इसमें उनके घरों का ढहना, स्वच्छता सुविधाओं जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का विनाश और आजीविकाओं की हानि शामिल हैं.
एक विकलांग महिला ने बताया, “मुझे शौचालय जाने में भी डर लगने लगा है. मुझे लगता है कि मेरे अन्दर जाते ही कहीं दोबारा भूकम्प न आ जाए.
“मुझे लगातार चिंता लगी रहती है - क्या होगा, अगर मैं क्षतिग्रस्त घर के अन्दर हूँ और फिर से भूकम्प आ जाए? डर और चिंता ख़त्म ही नहीं होती.
The devastation is real. The loss is real.
— Tom Fletcher (@UNReliefChief) April 7, 2025
Earthquakes don’t hit everyone equally—they hit the poorest hardest. They lack the resources to survive and to rebuild their lives.
We need the world to be on the side of the communities I met in Myanmar. pic.twitter.com/A5IDKMOrYx
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