वक्फ संशोधन बिल पर सुप्रीम कोर्ट में टकराव: कानून की वैधता पर उठे सवाल
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वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अब तक 6 याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। इन याचिकाओं में कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है और मामले की जल्द सुनवाई की मांग की गई है।

मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है, जिसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया है। सिब्बल ने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद और अन्य संगठनों की ओर से दाखिल याचिकाएं महत्वपूर्ण हैं और इन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

इन याचिकाओं में इस्लामिक धर्मगुरुओं के संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, आम आदमी पार्टी के नेता अमानतुल्लाह खान, कांग्रेस सांसद जावेद मोहम्मद, AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी और एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की याचिकाएं शामिल हैं।

याचिका में वक्फ कानून को अनुच्छेद 26 के तहत संरक्षित मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया गया है। यह तर्क दिया गया है कि इस कानून के लागू होने से मुस्लिम समुदाय वक्फ संपत्तियों से वंचित हो जाएगा और अपनी पसंद के अनुसार वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार खो देगा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस कानून को मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की साजिश बताया है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन का तर्क दिया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह विधेयक धार्मिक मामलों के प्रबंधन में स्वतंत्रता को प्रभावित करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को दी गई है।

वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान और सरकार को वक्फ संपत्तियों पर अधिक नियंत्रण देने की व्यवस्था को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप माना जा रहा है।

इन याचिकाओं में यह भी दावा किया गया है कि यह विधेयक समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह केवल मुस्लिम समुदाय से संबंधित वक्फ संपत्तियों को लक्षित करता है। अन्य धर्मों के ट्रस्ट या धार्मिक संस्थानों के लिए समान प्रावधान लागू नहीं किए गए हैं।

विधेयक में वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण और प्रबंधन के लिए सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाने के प्रावधानों को संपत्ति के अधिकार के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कम करता है।

कुछ याचिकाओं में यह सवाल उठाया गया है कि यह विधेयक अल्पसंख्यक समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को कमजोर करता है, जो संविधान के तहत संरक्षित है। विधेयक में जिला कलेक्टर जैसे सरकारी अधिकारियों को वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण और विवादों को निपटाने का अधिकार देना भी विवाद का कारण बना है।

संसद के दोनों सदनों से पारित वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई है। इस संबंध में गजट अधिसूचना जारी होने के साथ ही वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, इम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट (उम्मीद) अधिनियम, 1995 हो गया है।

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