वैसे तो हम सब नें रामायण देखी है, लेकिन हम में से बहुत कम लोग ही जानते होंगे रावण के छिपे हुए रहस्य | आज हम आपको बताएँगे रावण के वो रहस्य जो न तो आपने टीवी पर देखें होंगे और न हि कहीं पढ़ें होंगे -
जी हाँ रावण जन्म से एक ऋषि पुत्र था भगवान विष्णु द्वारा राक्षसों के विनाश से दुःखी होकर राक्षसों के मुखिया सुमाली (रावण का नाना ) ने अपनी पुत्री कैकसी से कहा कि पुत्री! राक्षस वंश के कल्याण के लिये मैं चाहता हूँ कि तुम परम पराक्रमी महर्षि विश्रवा से विवाह करो और अपने पुत्रों में राक्षसी प्रेरणाएं उत्पन्न करो तभी हम राक्षसों की रक्षा हो सकती है | जब कैकसी ने महर्षि से संतान हेतु मिलन का समय चुना, उस समय भयंकर आँधी चल रही थी। आकाश में मेघ गरज रहे थे। कैकसी जानती थी कि कुबेला में उत्पन्न गर्भ से एक विनाशी संतान ही उत्पन्न हो सकती है| तभी तो एक ब्रह्मवादी महात्मा का पुत्र होने के बाद भी अपनी राक्षसी माता की प्रेरणा से रावण राक्षस हुआ |
रावण कोई नाम नहीं था बल्कि यह एक पद था , राक्षसों के महाराजा को रावण पद से अलंकृत क्या जाता है, रावण का असली नाम दशग्रीव था, क्यों कि वह दस सरों वाला असाधारण बालक था | रावण छह दर्शन और चार वेदों का ज्ञाता था इसलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता है|
कहते हैं रावण अपने विजय अभियान को लेकर यम लोक तक पहुँच गया था , जहां उसने यमराज तक को बंदी बना लिया था, वह प्रकृति के नियम बदलना चाहता था | वह चाहता था मृत्यु जैसी अवस्था का अंत कर दिया जाए मगर ये संभव न हो सका |
रावण एक प्रकांड पंडित था, वह रसायन और भौतिक शास्त्र का अलौकिक ज्ञाता था, वह धरती पर जन्मा प्रथम वैज्ञानिक था | कुबेर से पाये पुष्पक विमान में भी उसने कई प्रयोग किये थे रावण को चारों वेदों का ज्ञाता कहा गया है। रावण को चारों वेदों का ज्ञाता कहा गया है। संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। वीणा बजाने में रावण सिद्धहस्त था। उसने एक वाद्य यंत्र बनाया भी था, जो आज के बेला या वायलिन का ही मूल और प्रारम्भिक रूप है ,जिसे अब रावण हत्था कहा जाता है।
रावण भगवान शंकर का अनन्य भक्त था , वह चाहता था कि संसार में वह ही शिव का सबसे बड़ा भक्त कहलाये , इसलिए उसने भगवान के निवास स्थल कैलाश पर्वत को उठा कर अपनी लंका में ले जाने की चेष्टा की| उसने अपनी पूरी शक्ति से पर्वत उठा लिया | किन्तु शिव जी नहीं चाहते थे कि उनके भक्तों में कोई तुलना की जाए इसलिए वे रावण के हठ से क्रुद्ध हो गए और कैलाश को अपने अंगूठे से दबा दिया, रावण उसमें दब जाने ही वाला था कि उसने तुरंत क्षमा याचना करते हुए एक अति सुंदर काव्य रचना की , जिसमें शिवजी के तांडव नृत्य का वर्णन किया गया है | वह अलौकिक काव्य रचना आज "शिव तांडव स्रोत्त" के नाम से जानी जाती है |
सीता जी को लंका ले जाने के बाद, उसने उन्हें महल में नहीं रखा, क्यों कि वह जानता था कि सीता जी वनवास पर हैं , और महल में रहने पर उनके व्रत का अपमान होगा | साथ ही उसने कभी भी सीता जी को स्पर्श नहीं किया, राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम-भाव नहीं रखती तो मैं तुम्हें स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अ-कामा सीता को स्पर्श न करके रावण ने शास्त्रोचित मर्यादा का ही आचरण किया|
जब लंका पर पुल बाँधने के बाद , सेतु पूजन हेतु श्रीराम ने रामेश्वरम महादेव की स्थापना की , तब जामवंत ने सुझाया कि शिवलिंग की स्थापना की है प्रभु तो किसी बड़े पंडित से पूजन करवाइये | इस पर राम ने रावण को आमंत्रित किया और रावण सहर्ष पूजन हेतु आया | किन्तु पूजन के समय रावण ने कहा : हे राम आप विवाहित हैं , और विवाहित पुरुष कभी पत्नी के बिना कोई शुभ कार्य नहीं कर सकते, यह शास्त्रोचित मर्यादा है | फिर राम की विवशता देख रावण ने सीता माता को पूजन में प्रकट किया और पूजन सम्पन्न किया |
रावण अति अभिमानी था वह हर बलवान व्यक्ति को चुनौती दे डालता था , एक बार उसने किष्किन्धा नरेश वानर राज बाली को युद्ध के लिए ललकारने की भूल कर दी | जिस पर बाली ने रावण को अपनी कांख में दबोच लिया | और तप करने के लिए निकल पड़े , लगभग दस माह तक रावण को बाली ने दबोचे रखा और कई समुद्रों की यात्रा की, उसके बाद रावण ने भय से बाली के सामने मित्रता का प्रस्ताव रख दिया|
संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। वीणा बजाने में रावण सिद्धहस्त था। उसने एक वाद्य बनाया भी था जिसे जो आज के बेला या वायलिन का ही मूल और प्रारम्भिक रूप है जिसे अब रावण हत्था कहा जाता है।
रावण स्वप्न दृष्टा था और अभिमानी भी , वह स्वर्ग , यमलोक, सभी को जीत चुका था इसलिए उसने भूमि विस्तार को कभी महत्व नहीं दिया, वह स्वर्ग तक सीढ़ियां बनाना चाहता था ताकि राक्षसों को स्वर्ग तक जाने में अधिक कष्ट ना करना पड़े | मगर वह कल पर टालता रहा | रावण उस जाति से था जो समुद्र की रक्षा करती है , यह भी कारण था कि उसने समुद्र को छोड़ कर कहीं और जाने पर विचार नहीं किया |
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