अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ आगामी बैठक को लेकर महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने भारत की भूमिका पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि भारत धीरे-धीरे रूस से तेल खरीद कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि भारत वर्ष के अंत तक रूस से लगभग 40% कम तेल खरीदेगा। उन्होंने भारत के इस फैसले की प्रशंसा भी की।
ट्रंप का यह बयान वैश्विक तेल बाजार और रूस-यूक्रेन युद्ध की राजनीति से सीधा जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि रूस और चीन की वर्तमान दोस्ती असली नहीं है। यह दोस्ती अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों ओबामा और बाइडेन की नीतियों के कारण बनी है, जिन्होंने दोनों देशों को करीब ला दिया।
ट्रंप ने माना कि रूस और चीन का रिश्ता मजबूरी का है, लेकिन फिर भी वे उम्मीद करते हैं कि दोनों देशों के बीच शांति और सकारात्मक सहयोग बना रहे। अमेरिका की चिंता यह है कि यदि रूस और चीन का रिश्ता और मजबूत होता है, तो यह दुनिया में रणनीतिक संतुलन को बदल सकता है।
ट्रंप शी जिनपिंग से अपनी बैठक में इस मुद्दे पर सीधे बात करना चाहते हैं और युद्ध को समाप्त करने के लिए तेल और ऊर्जा से जुड़े समाधान खोजना चाहते हैं। उनका मानना है कि शी इस पर खुलकर चर्चा कर सकते हैं।
भारत की ओर देखें तो, रूस से तेल खरीद के मामले में पिछले कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव आया है। 2019-20 में भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 1.7% थी। लेकिन युद्ध शुरू होने और रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध लगने के बाद, रूस ने सस्ता तेल बेचना शुरू किया। भारत ने इसका लाभ उठाया और 2023-24 में रूस से तेल की हिस्सेदारी बढ़कर लगभग 40% हो गई।
अब रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है। इसका मतलब है कि भारत के कुल तेल आयात का लगभग एक-तिहाई हिस्सा रूस से आता है। इससे भारत को आर्थिक लाभ तो हुआ, लेकिन पश्चिमी देशों को यह पसंद नहीं आया। अमेरिका चाहता है कि भारत धीरे-धीरे रूस से तेल खरीद कम करे ताकि युद्ध को कमजोर किया जा सके।
ट्रंप के बयान से स्पष्ट होता है कि अमेरिका अब भारत पर उम्मीद से ज्यादा ध्यान दे रहा है।
ट्रंप ने यह भी दावा किया कि उन्होंने टैरिफ (आयात कर) के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को रुकवाया। उन्होंने कहा कि उन्होंने दोनों देशों को भारी टैरिफ लगाने की धमकी दी, जिसके बाद उन्होंने युद्ध न करने का फैसला किया।
भारत फिलहाल रूस से तेल खरीदना पूरी तरह से नहीं रोक रहा है, लेकिन धीरे-धीरे कटौती कर रहा है। जुलाई से सितंबर तक रूस से तेल आयात में थोड़ी गिरावट आई थी, लेकिन अक्टूबर में निजी कंपनियों, जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी, ने फिर से खरीद बढ़ा दी है। वहीं, सरकारी रिफाइनर कंपनियों ने खरीद थोड़ी कम की।
इससे पता चलता है कि भारत सावधानी से काम ले रहा है। वह सस्ता तेल भी खरीद रहा है और वैश्विक दबाव को भी संभाल रहा है। भारत के लिए तेल केवल ऊर्जा नहीं है, बल्कि अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण आधार है। इसलिए, वह अपने हितों से समझौता करने के मूड में नहीं है। भारत की नीति स्पष्ट है कि देश की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पहले है, और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति बाद में।
ट्रंप की चीन के साथ बातचीत में तेल और ऊर्जा पर जोर इस बात का संकेत है कि आज की दुनिया में ऊर्जा संसाधन सबसे मजबूत हथियार हैं। जो देश इन पर नियंत्रण रखता है, वही आर्थिक और सैन्य रूप से शक्तिशाली बनता है।
ट्रंप का रुख यह भी दिखाता है कि आने वाले महीनों में अमेरिका, रूस, चीन और भारत के बीच राजनीतिक समीकरण नए मोड़ ले सकते हैं। भारत फिलहाल एक संतुलित स्थिति में है। वह रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है, लेकिन साथ ही अमेरिका और पश्चिमी देशों से भी संबंध बनाए रख रहा है।
#WATCH | Washington DC | Regarding his upcoming meetign with Chinese President Xi, US President Donald Trump says, India, as you know, has told me they are going to stop...it s a process. You can t just stop (buying oil from Russia). By the end of the year, they ll be down to… pic.twitter.com/XXdL1ETOZf
— ANI (@ANI) October 22, 2025
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