भारत ने एशिया में एक बड़ा कदम उठाते हुए अफ़गानिस्तान पर निगाहें जमाए अमेरिका, चीन और पाकिस्तान को चौंका दिया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात के बाद अफगानिस्तान के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध बहाल करने का ऐलान किया है। काबुल में भारतीय दूतावास भी जल्द ही खुलने वाला है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि भारत ने हमेशा अफगानिस्तान का साथ दिया है। काबुल में भारत का तकनीकी मिशन अब पूर्ण दूतावास का दर्जा पाएगा। भारत ने अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक शासन के दौरान सैन्य प्रशिक्षण, स्कॉलरशिप्स और नए संसद भवन जैसी परियोजनाओं में निवेश किया था। 2021 में अशरफ गनी सरकार के पतन के बाद तालिबान के सत्ता में आने से ये परियोजनाएं पीछे छूट गईं थीं, जिससे पाकिस्तान और चीन जैसे देशों को वहां अपना प्रभाव बढ़ाने का मौका मिल गया था।
जनवरी महीने में ही भारत ने अफगानिस्तान से रिश्ते फिर से शुरू करने के लिए कदम बढ़ा दिए थे। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की थी। यह मुलाकात तालिबान सरकार के आने के बाद दोनों देशों के बीच सबसे उच्चस्तरीय वार्ता थी। तालिबान ने भारत के साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने में दिलचस्पी दिखाई थी। व्यापार बढ़ाना और ईरान के चाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल करना इस वार्ता का मुख्य मुद्दा था।
अमेरिका के थिंक-टैंक विल्सन सेंटर के माइकल कुगलमैन के अनुसार, भारत ने तालिबान के नेतृत्व को मान्यता दी है, जिसकी तालिबान सत्ता में वापस आने के बाद से अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग कर रहा था। भारत जैसे राष्ट्र का तालिबान के साथ सामान्य रिश्ते बनाना इसे और महत्वपूर्ण बनाता है।
चीन अपने सुरक्षा और आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर तालिबान के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा है और उसने अफगानिस्तान में अपना एक राजदूत भी नियुक्त किया है। रूस के अलावा अभी तक किसी और देश ने तालिबान को पूरी तरह से मान्यता नहीं दी है। हालांकि, 40 से ज्यादा देशों ने किसी न किसी रूप में अफगानिस्तान से कूटनीतिक या अनौपचारिक संबंध बनाए हुए हैं।
भारत का मकसद मध्य एशिया तक संपर्क को मजबूत करना है। मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए भारत को पाकिस्तान से ट्रांजिट अधिकार चाहिए, जो पाकिस्तान भारत को नहीं देता है। ऐसे में अफगानिस्तान बड़ी भूमिका निभा सकता है। ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह विकास पर सहयोग करना एक रणनीति है, जिससे अफगानिस्तान के जरिए मध्य एशिया तक पहुंचा जा सके।
चीन ने 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया था, लेकिन भारत यही काम अब कर रहा है। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना अफगानिस्तान में पैर पसार रही है। भारत नहीं चाहता कि अफगानिस्तान पूरी तरह चीन या पाकिस्तान के प्रभाव में आ जाए। तालिबान भी नहीं चाहता कि एक ही देश पर उसकी निर्भरता बढ़े।
2023 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत के अफ़ग़ानिस्तान के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। भारत ने अफगानिस्तान में 500 से अधिक परियोजनाओं पर 3 अलब डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस वापस लेना चाहते हैं। ट्रंप का कहना है कि अगर उन्हें यह एयरबेस वापस नहीं मिला तो इसका अंजाम बुरा होगा। ट्रंप ने इसके लिए सैन्य कार्रवाई के विकल्प को भी नहीं नकारा है। बगराम चीनी सीमा से लगभग 800 किमी दूर है।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठन तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (TTP) इन दिनों पाकिस्तान फौज के पीछे पड़ा है। पाकिस्तान की अफगानिस्तान से सीमा को लेकर लंबी लड़ाई है। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से दोनों देशों के बीच तनातनी है और दर्जनों हमले किए जा चुके हैं।
भारत के अफगानिस्तान के साथ संबंध हमेशा से दीर्घकालिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रहे हैं। तालिबान की वापसी के तुरंत बाद अल-कायदा को मौन समर्थन और सहायता और भारत के हितों के दुश्मनों की मौजूदगी ने नई दिल्ली की चिंताओं को बढ़ा दिया था। तालिबान भारत पर अपनी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को फिर से शुरू करने और दोनों देशों के बीच निवेश का स्वागत करने के लिए दबाव बना रहा है।
Highlights of EAM @DrSJaishankar’s remarks at meeting with Afghan FM Mawlawi Amir Khan Muttaqi in New Delhi. pic.twitter.com/JzEw8apD6L
— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) October 10, 2025
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