गृहयुद्ध की आग में पाकिस्तान: लाहौर-कराची सुलग रहे, 30 से अधिक की मौत!
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पाकिस्तान एक बार फिर धार्मिक कट्टरता की आग में जल रहा है। तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के उग्र प्रदर्शन ने पूरे देश को हिंसा, आगजनी और अराजकता में धकेल दिया है। जिस संगठन को कभी राजनीतिक हथियार बनाया गया, वही अब सड़कों पर उतर आया है।

लाहौर, कराची और इस्लामाबाद में हालात गृहयुद्ध जैसे हैं। पुलिस और TLP समर्थकों के बीच हिंसक झड़पें हो रही हैं, जिसमें कम से कम 30 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हैं।

TLP के राष्ट्रव्यापी विरोध ने भयानक रूप ले लिया है। कट्टरपंथी कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए हैं और पुलिस चौकियों, सरकारी वाहनों और सार्वजनिक संपत्ति को आग के हवाले कर रहे हैं।

लाहौर और कराची में कई बैंकों और दुकानों में तोड़फोड़ की गई है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों से भागते देखा जा सकता है।

TLP समर्थक सरकार से ईशनिंदा कानूनों पर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि शहबाज शरीफ सरकार इस्लामी सिद्धांतों से समझौता कर रही है।

यह वही संगठन है जिसने पहले भी फ्रांस के राजदूत को निष्कासित करने जैसी मांगों को लेकर हिंसक प्रदर्शन किए थे। सरकार ने TLP को रोकने के बजाय राजनीतिक समझौते कर अपनी कमजोरी उजागर की थी।

इन प्रदर्शनों ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की नींद उड़ा दी है। लोग दोनों के खिलाफ नारे लगा रहे हैं। सोशल मीडिया पर Go Munir Go! और Shahbaz Resign Now! जैसे ट्रेंड चल रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान की सत्ता दोहरी विफलता की गिरफ्त में है: कट्टरपंथी ताकतों का उभार और सिविल-आर्मी रिश्तों का टूटना।

पंजाब, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा के कई हिस्सों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। सेना को सड़कों पर उतारा गया है, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने उन्हें भी निशाने पर ले लिया है। कई शहरों में सेना की गाड़ियां जल चुकी हैं।

स्वास्थ्य विभाग ने इसे राष्ट्रीय आपात स्थिति घोषित कर दिया है। लाहौर, कराची और इस्लामाबाद के अस्पतालों में भीड़ उमड़ आई है।

भारतीय रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की यह अराजक स्थिति दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा है। एक पूर्व राजनयिक ने कहा, जब कोई देश अपने ही कट्टरपंथियों को पालता है, तो एक दिन वही ताकतें उस पर टूट पड़ती हैं। पाकिस्तान आज उसी आत्मघाती राजनीति का शिकार है।

पाकिस्तान एक बार फिर वही पुरानी गलती दोहरा रहा है: धार्मिक संगठनों को हथियार बनाना, और फिर उन्हीं से डरकर झुक जाना। अब सवाल यह नहीं कि हिंसा कब थमेगी, बल्कि यह है कि शहबाज और मुनीर बचेंगे या नहीं। पाकिस्तान की सड़कों पर अब सिर्फ एक ही आवाज गूंज रही है: नया पाकिस्तान नहीं, खत्म पाकिस्तान!

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