चिराग पासवान, बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण नाम, इन दिनों चर्चा में हैं. उनके पिता, रामविलास पासवान की पुण्यतिथि पर किए गए एक सोशल मीडिया पोस्ट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. चिराग ने लिखा, पापा हमेशा कहते थे- जुर्म करो मत, जुर्म सहो मत. जीना है तो मरना सीखो. कदम-कदम पर लड़ना सीखो.
यह पोस्ट ऐसे समय में आया है जब बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक हैं और एनडीए गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर विवाद चल रहा है. चिराग पासवान अपनी पार्टी लोजपा (रामविलास) के लिए 40 से अधिक सीटें मांग रहे हैं, जिसके चलते बातचीत अटकी हुई है.
चिराग का ट्वीट राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है. यह एक अप्रत्यक्ष इशारा है कि वे अन्याय (कम सीटें मिलना) नहीं सहेंगे और हर कदम पर लड़ेंगे. कई मीडिया रिपोर्ट्स में इसे एनडीए के लिए चेतावनी के रूप में विश्लेषित किया गया है.
लेकिन सवाल उठता है कि क्या चिराग ऐसा करेंगे? क्या चिराग अपने पिता को फॉलो नहीं कर रहे हैं? रामविलास पासवान को उनकी राजनीतिक चतुराई के लिए मौसम विज्ञानी माना जाता था. वे 6 अलग-अलग प्रधानमंत्रियों के साथ सरकार में रहे और हमेशा सत्ता के करीब रहे.
चिराग अपने पिता की तुलना में अधिक भावनात्मक और सिद्धांतवादी दिखते हैं. 2020 में नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत और 2025 में सीट शेयरिंग पर अड़ियल रुख दिखाता है कि वे अपने पिता की तरह लचीले नहीं हैं.
2020 विधानसभा चुनाव में चिराग ने NDA छोड़कर अकेले लड़ा, लेकिन केवल 1 सीट जीती, हालांकि 5.3% वोट शेयर था. यह दिखाता है कि उनकी रणनीति गठबंधन के बिना कमजोर रही.
चिराग के लिए एनडीए छोड़ना आसान नहीं है. वे केंद्रीय मंत्री हैं. गठबंधन छोड़ने पर उन्हें न केवल मंत्री पद से हाथ धोना पड़ेगा, बल्कि राजनीतिक रूप से भी कई चुनौतियां सामने आएंगी.
कहा जा रहा है कि अगर एनडीए से बात बिगड़ती है, तो चिराग प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से हाथ मिला सकते हैं. लेकिन जन सुराज नई पार्टी है, और इसका कोई सिद्ध प्रदर्शन नहीं.
चिराग ने खुद कहा है कि जब तक पीएम मोदी हैं, वे एनडीए नहीं छोड़ेंगे. एनडीए में रहकर वे बिहार में युवा लीडर के रूप में उभर रहे हैं. एनडीए छोड़ने से उनकी छवि गद्दार की बन सकती है, जो लंबे समय तक उन्हें नुकसान पहुंचाएगी.
8 अक्टूबर को पटना में एनडीए की अहम बैठक हो रही है, जहां फैसला हो सकता है.
चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण फैक्टर हैं. खासकर दलित-पासवान वोट बैंक के कारण। अगर वे एनडीए से अलग होकर अकेले लड़ते हैं या प्रशांत किशोर की जन सुराज से गठजोड़ करते हैं, तो वोट बंटवारा हो सकता है.
2020 में चिराग की बगावत ने नीतीश कुमार की पार्टी को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया था. पिछले विधानसभा चुनावों में लोजपा को सिर्फ 1 सीट मिली, लेकिन 5.3% वोट शेयर के साथ उन्होंने करीब 20-25 सीटों पर एनडीए के वोट काटे. इस बार यह संख्या ज्यादा हो सकती है, क्योंकि इस बार अगर चिराग एनडीए छोड़ते हैं तो बीजेपी को भी टार्गेट करेंगे.
*पापा हमेशा कहा करते थे —
— युवा बिहारी चिराग पासवान (@iChiragPaswan) October 8, 2025
जुर्म करो मत, जुर्म सहो मत।
जीना है तो मरना सीखो,
कदम-कदम पर लड़ना सीखो। #ramvilaspaswan pic.twitter.com/9kcc2VswAo
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