बीजेपी सांसद का सिर फूटा, ममता बनर्जी का दिल नहीं पसीजा! क्या जख्म गंभीर नहीं?
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पश्चिम बंगाल में 24 घंटे पहले नागरकाटा में बीजेपी सांसद खगेन मुर्मू के साथ जो हुआ, वो राजनीतिक कट्टरपंथ और वैचारिक उन्माद का प्रमाण है. क्या नागरकाटा में हुई हिंसा के पीछे राजनीतिक कट्टरपंथ, धार्मिक कट्टरपंथ और घुसपैठ का देशविरोधी मिश्रण जिम्मेदार है? क्या पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा के पीछे घुसपैठियों का हाथ है? क्या सत्ता के लिए पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों को औजार बनाया जा रहा है?

सांसद खगेन मुर्मू और बीजेपी नेताओं पर हुए हमले के विरोध में कोलकाता से दिल्ली तक प्रदर्शन हुए. राजनीतिक शिष्टाचार दिखाते हुए ममता बनर्जी सांसद खगेन मुर्मू से मिलने अस्पताल पहुंचीं और उनका हाल जाना. लेकिन बाहर निकलते ही उन्होंने संवेदना को तिलांजलि देकर राजनीति शुरू कर दी. उन्होंने कहा कि सांसद को कोई गंभीर चोट नहीं लगी है.

एक सांसद का सिर फूट जाता है, बीजेपी विधायक पर चप्पलें चलती हैं, लेकिन मुख्यमंत्री कहती हैं कि उन्हें बस छोटी सी चोट लगी है. सीएम ये नहीं कहती कि ये कानून व्यवस्था से जुड़ा बड़ा मामला है, या पुलिस की लापरवाही और गंभीर अपराध है.

ममता बनर्जी को खून से लथपथ सांसद के जख्म अगर गंभीर नहीं लगते, तो बंगाल के लोगों को भी इस संवेदनहीनता को गंभीरता से सोचने की जरूरत है. सोचिए जिस राज्य में दो बार के सांसद सुरक्षित नहीं हैं, जहां विधायक सुरक्षित नहीं हैं, उस राज्य में आम आदमी का क्या हाल होगा.

सीएम इस गंभीर अपराध को मामूली घटना बताकर किसे बचाना चाहती हैं? बीजेपी नेताओं ने इस हिंसा के पीछे घुसपैठियों का हाथ होने का आरोप लगाया है. पश्चिम बंगाल में घुसपैठ को लेकर सवाल सिर्फ बीजेपी नहीं उठा रही है, बल्कि एजेंसियां भी इस पर सवाल उठा चुकी हैं.

पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना, मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, दार्जिलिंग, कूच बिहार और जलपाईगुड़ी में बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ से प्रभावित जिले हैं. वर्ष 1951 में पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी लगभग 20% थी, जो अब 27% हो गई है. जिन जिलों में मुस्लिम आबादी बढ़ी है, उनमें जलपाईगुड़ी भी शामिल है, जहां खगेन मुर्मू पर हमला हुआ था.

विशेषज्ञ चेतावनी देते रहे हैं कि आबादी के इस असंतुलन के पीछे घुसपैठ है और इन घुसपैठियों को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है. पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक की सियासत करने वाले सभी दलों को यह रोग लग गया है. ये बीमारी लोकतंत्र और देश की सुरक्षा के लिए संकट बन गई है.

अवैध घुसपैठियों को राजनीतिक संरक्षण देकर उन्हें वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. जब ये वोट बैंक मजबूत हो जाता है, तो ये घुसपैठिए अपनी ताकत दिखाकर राजनीति में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग करते हैं. पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों की हिमायत वाली सियासत तीसरे चरण में है.

सोचिए अगर कोई घुसपैठिया चुनाव जीतकर आता है, तो विधानसभा में वह किसकी वकालत करेगा? क्या वह भारत के संविधान के प्रति उतना ही सम्मान और समर्पण रखेगा जितना हम और आप रखते हैं?

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर में मुस्लिम आबादी 50% से ज्यादा है. इन जिलों में डेमोग्राफी में बदलाव कितना बड़ा संकट है, इसे समझने के लिए हमें लोकसभा में विपक्ष के नेता रह चुके अधीर रंजन चौधरी को सुनना चाहिए.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश और रोहिंग्या घुसपैठियों की संख्या 1 करोड़ से ज्यादा है. पश्चिम बंगाल की आबादी लगभग 10 करोड़ है. यानी राज्य की आबादी में घुसपैठियों की संख्या 10% तक पहुंच गई है. घुसपैठ का ये संकट न सिर्फ संसाधनों पर बोझ है, बल्कि ये हमारे राजनीतिक सिस्टम और देश की अखंडता के लिए भी खतरा है. इसलिए जरूरी है कि इस पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए और देशहित में राजनीतिक लाभ और हानि की गणना छोड़कर घुसपैठियों की समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए सख्त कार्रवाई की जाए.

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