देश में जब अंग्रेजी हुकूमत थी, 1923 में विनायक दामोदर सावरकर का एक पंफलेट एसेंशियल्स ऑफ हिंदुत्व छपा। इसने एक 34 वर्षीय युवक, केशव बलिराम हेडगेवार को प्रभावित किया। हेडगेवार रत्नागिरी जेल में बंद सावरकर से मिलने गए, और उनके मन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का बीज पड़ गया।
27 सितंबर, 1925 को नागपुर में हेडगेवार ने 40 लाख सदस्यों वाले दुनिया के सबसे बड़े संगठन RSS की स्थापना की। मकसद था हिंदू समाज को एकजुट करना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आरएसएस के शताब्दी समारोह पर हेडगेवार की तारीफ की।
हेडगेवार महाराष्ट्र के नेता बाल गंगाधर तिलक के विचारों से प्रभावित थे। वह नागपुर के हिंदू महासभा के नेता बीएस मुंजे के शिष्य थे। मुंजे ने उन्हें डॉक्टरी करने और बंगालियों की गुप्त क्रांतिकारी समितियों से युद्ध तकनीक सीखने के लिए कलकत्ता भेजा।
कलकत्ता में हेडगेवार ब्रिटिश-विरोधी क्रांतिकारी समूह अनुशीलन समिति के सदस्य बने और उन्होंने RSS के संगठन में इन समितियों के गुप्त तरीकों का इस्तेमाल किया।
नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान वंदे मातरम गाने पर हेडगेवार को स्कूल से निकाल दिया गया था। उन्होंने यवतमाल के राष्ट्रीय विद्यालय और पुणे में हाईस्कूल की पढ़ाई की। 1916 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से एलएमएस की परीक्षा पास करने के बाद 1917 में वह नागपुर लौट आए।
सुनील आंबेकर की किताब के अनुसार, कलकत्ता में पढ़ाई के दौरान हेडगेवार बंगाल में अनुशीलन समिति में शामिल हो गए थे। हेडगेवार विनायक दामोदर सावरकर के हिंदुत्व से उतने ही प्रभावित थे, जितने कि इटली के माजिनी, जर्मनी के नीत्शे और फ्रांस के वोल्टेयर से।
हेडगेवार 1920 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन जल्द ही उनका मोहभंग हो गया। वे कांग्रेस सेवा दल के सक्रिय सदस्य थे। वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, विनायक दामोदर सावरकर, श्री अरबिंदो घोष और बीएस मुंजे के लेखन से प्रभावित थे।
1912 और 1922 के बीच हेडगेवार ने हिंदू समाज की आलोचना की और जाति, वर्ग और पंथ के कारण भारत के विखंडित समाज को समस्या बताया। वे भारतीय समाज से जाति को पूरी तरह से मिटाना चाहते थे। उनका मानना था कि हिंदुओं की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत भारतीय राष्ट्रवाद का आधार होनी चाहिए।
हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की, जिसका मकसद हिंदू समाज को उसके सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए संगठित करना और इसे अखंड भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने का एक हथियार बनाना था। उन्होंने 1936 में राष्ट्र सेविका समिति नामक महिला शाखा का समर्थन किया।
1925 में आरएसएस की स्थापना के बाद हेडगेवार ने गांधीजी के नेतृत्व वाले भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से दूरी बनाए रखी। उन्होंने स्थानीय स्वयंसेवकों को स्वेच्छा से संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। गांधीजी के तुर्की में खिलाफत आंदोलन के समर्थन पर भी उन्होंने विरोध जताया।
हेडगेवार अकसर पीठ दर्द से पीड़ित रहते थे। उन्होंने अपनी जिम्मेदारियां एमएस गोलवलकर को सौंपनी शुरू कर दीं, जो बाद में आरएसएस के सरसंघचालक बने। 21 जून 1940 को नागपुर में उनका निधन हो गया।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें महान देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रवादी बताया था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें भारत माता का महान सपूत बताया था।
फ्रांसीसी पॉलिटिकल साइंटिस्ट क्रिस्टोफ जैफरलॉट ने लिखा कि सावरकर और गोलवलकर जैसे हिंदू राष्ट्रवादियों ने इजरायल के निर्माण की प्रशंसा की और मातृभूमि के अधिकार का समर्थन किया। आरएसएस से जुड़े कई स्वयंसेवकों ने कहा कि जैसे यहूदियों ने इजरायल को बनाया, वैसे ही एक दिन भारत भी हिंदू राष्ट्र होकर रहेगा।
*As the RSS marks its centenary, highlighted the rich contribution of the RSS to our nation. #MannKiBaat pic.twitter.com/DBlURIv7uK
— Narendra Modi (@narendramodi) September 28, 2025
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