सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे स्क्रीनशॉट्स में मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया गया है। आरोप है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण को लेकर एक हलफनामा दायर किया है, जिसमें हिंदू सभ्यता को निशाना बनाने वाले विवादित दावे किए गए हैं।
वायरल स्क्रीनशॉट्स में दावा किया गया है कि रामायण में ऋषि शंबूक की हत्या जाति उत्पीड़न का उदाहरण है। हालांकि, सच्चाई यह है कि श्रीराम ने शंबूक को उसकी जाति के कारण नहीं मारा था, बल्कि माता पार्वती के प्रति उसके गलत इरादों के कारण दंड दिया था।
एक अन्य दावे में कहा गया है कि मनुस्मृति में शूद्रों की तुलना जानवरों से करके उन्हें अपमानित किया गया है। इसमें यह भी लिखा था कि अंग्रेजों के सुधारों और पेरियार के आत्मसम्मान आंदोलन की वजह से जाति व्यवस्था में भेदभाव कम हुआ। दस्तावेज में यह भी दावा किया गया कि हिंदू समाज को जानबूझकर सदियों तक विभाजित रखा गया ताकि ऊंची जातियों का वर्चस्व बना रहे।
इन दावों के बाद सोशल मीडिया पर आक्रोश फैल गया। हिंदू संगठनों ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि उसने अदालत के हलफनामे में वामपंथी प्रोपेगेंडा का समर्थन करके अपनी वैचारिक जड़ों से गद्दारी की है।
मध्य प्रदेश सरकार ने हिंदू-विरोधी आरोपों पर फैक्ट-चेक जारी करते हुए स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियाँ उनके हलफनामे का हिस्सा नहीं हैं। सरकार ने बताया कि विवादित कंटेंट रामजी महाजन की अध्यक्षता वाले मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग की अंतिम रिपोर्ट से लिया गया है, जिसका गठन 17 नवंबर 1980 को कॉन्ग्रेस के शासनकाल में हुआ था।
सरकार ने जोर देकर कहा कि ऐसी रिपोर्टों को न्यायिक फाइल में शामिल करने का मतलब यह नहीं है कि वर्तमान सरकार उनके निष्कर्षों का समर्थन करती है। बल्कि, यह एक प्रक्रियात्मक जरूरत है क्योंकि आरक्षण से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान सभी प्रासंगिक पुरानी रिपोर्टें अदालत के समक्ष रखी जाती हैं।
सरकार ने यह भी बताया कि महाजन आयोग ने ओबीसी के लिए 35% आरक्षण की सिफारिश की थी, जबकि वर्तमान राज्य सरकार 27% आरक्षण की मांग पर कायम है। सरकार के अनुसार, यह दर्शाता है कि बीजेपी महाजन रिपोर्ट को अंतिम सत्य नहीं मानती।
सरकार ने वायरल स्क्रीनशॉट्स को झूठा, मनगढ़ंत, भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण इरादे से प्रेरित बताया है। सरकार ने यह भी चेतावनी दी है कि यह जांच की जाएगी कि भ्रामक स्क्रीनशॉट्स कैसे प्रसारित हुए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
इस विवाद ने राजनीतिक क्षेत्र में काफी नुकसान पहुंचाया है। बीजेपी के आलोचकों ने पार्टी पर लापरवाही का आरोप लगाया है। कुछ लोगों ने कहा है कि इन दस्तावेजों का आधिकारिक रिकॉर्ड्स में मौजूद होना इस बात का संकेत है कि कॉन्ग्रेस शासनकाल का प्रोपेगेंडा सरकारी तंत्र में गहराई तक समा चुका है।
यह चिंता का विषय है कि सरकार बदलने के बावजूद वामपंथी प्रोपेगेंडा से प्रेरित दस्तावेज सिस्टम और रिकॉर्ड्स का हिस्सा कैसे बने हुए हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई की अगली तारीख 08 अक्टूबर 2025 तय की गई है। यह देखना बाकी है कि क्या यह विवाद कोर्ट की बहस का हिस्सा बनेगा।
फिलहाल, मध्य प्रदेश सरकार ने जोर देकर कहा है कि उनके हलफनामे में किसी भी प्रकार का हिंदू विरोधी बयान नहीं दिया गया है और जो लोग मनगढ़ंत सामग्री फैला रहे हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सोशल मीडिया पर ओबीसी आरक्षण से जुड़े कुछ भ्रामक कथन मध्यप्रदेश सरकार के हलफनामे से जोड़कर प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जो असत्य हैं।
— Jansampark Fact Check (@JansamparkFC) September 30, 2025
वस्तुस्थिति इस प्रकार है…@JansamparkMP#FactCheck pic.twitter.com/G8uKCGhXwl
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