डोनाल्ड ट्रंप को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. उनके दिमाग़ में क्या चल रहा है, ये बता पाना असंभव है. वो किस बात से ख़ुश हो जाते हैं और किस बात से नाराज़, इसकी भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है.
ट्रंप ने एक बार फिर अपने चिर-परिचित अंदाज़ में भारत को लेकर रुख़ में बदलाव किया है. कल तक जो ट्रंप भारत को रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहे थे, वही ट्रंप अब इस युद्ध को ख़त्म करने में भारत से उम्मीद कर रहे हैं.
ट्रंप, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका की सराहना कर रहे हैं, उन्हें शांति दूत बता रहे हैं. आख़िर कुछ ही हफ़्तों के भीतर ट्रंप की सोच में ये परिवर्तन क्यों आया है?
ट्रंप ने भारत के ख़िलाफ़ 25 प्रतिशत सेकेंडरी टैरिफ लगाया, दुनिया भर में भारत की शिकायत कर रहे थे, यूरोपीय देशों से भारत के ख़िलाफ़ 100 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने की अपील कर रहे थे, वो अब भारत को शांति का समर्थक क्यों बता रहे हैं.
ट्रंप ने पीएम मोदी को उनके 75वें जन्मदिन के मौक़े पर बधाई देते हुए ट्रूथ सोशल पर पोस्ट किया. ट्रंप ने पीएम मोदी के बारे में लिखा कि रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने में आपके समर्थन के लिए शुक्रिया!
अमेरिका की तरफ़ से भारत पर टैरिफ लगाने के बाद दोनों नेताओं के बीच फ़ोन पर ये पहली बातचीत थी लेकिन इसने पिछले 2-3 महीनों से दोनों देशों के बीच रिश्तों में आई कड़वाहट को दूर करने का काम किया है. इस बातचीत ने दोनों देशों के बीच आई दूरी को पाटने का काम किया है.
पिछले कुछ समय से ट्रंप लगातार भारत के ख़िलाफ़ तीखी बयानबाज़ी कर रहे थे. ट्रंप ने कहा था कि भारत न केवल भारी मात्रा में रूसी तेल ख़रीद रहा है, बल्कि इसे फिर से खुले बाज़ार में बेचकर बड़ा मुनाफ़ा कमा रहा है.
ट्रंप ने आरोप लगाया कि भारत यूक्रेन में रूसी युद्ध से मरने वालों की परवाह नहीं करता. इसके साथ ट्रंप ने ये भी जोड़ा कि वो भारत से आयात पर काफी ज़्यादा टैरिफ बढ़ाएंगे.
ट्रंप ने भारत को धमकी देते हुए कहा था कि अगर वो रूसी तेल की ख़रीद बंद नहीं करेगा तो उसे सज़ा मिलेगी. ट्रंप के मुताबिक रूसी तेल खरीदकर भारत यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के युद्ध की फंडिंग कर रहा है.
ट्रंप ने ये भी कहा था कि अगर रूस ने शांति समझौता नहीं किया तो रूस से तेल ख़रीदने वाले देशों पर 100 प्रतिशत तक टैरिफ लगाया जाएगा. यहां तक कि ट्रंप ने भारत को डेड इकोनॉमी तक बता दिया.
उधर ट्रंप के धमकी भरे लहज़े के बावजूद भारत ने शांति का रवैया बनाए रखा, अमेरिकी उकसावे के ख़िलाफ़ संयम से काम लिया और तर्कों के साथ अमेरिका के आरोपों का जवाब दिया. भारत ने साफ़ कर दिया कि वो रूस से तेल ख़रीदना बंद नहीं करेगा.
ट्रंप के बयानों पर भारत ने कहा कि हम बाज़ार की स्थिति के आधार पर तेल ख़रीदते हैं और इसका मक़सद 140 करोड़ भारतीयों की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना है.
लगातार भारत पर निशाना साधने के बाद अचानक ट्रंप के सुर बदल गए. पिछले 10-11 दिनों में ट्रंप ने भारत के ख़िलाफ़ कुछ बोलना या लिखना बंद कर दिया है.
भारत और अमेरिका के संबंधों को विशेष बताते हुए ट्रंप ने दोनों देशों की दोस्ती पर ज़ोर देना शुरू कर दिया और इसके बाद कल रात राष्ट्रपति ट्रंप ने पीएम मोदी को जन्मदिन के अवसर पर बधाई देने के लिए फ़ोन किया.
दोनों नेताओं के बीच फ़ोन पर ये बातचीत उस समय हुई, जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर वार्ता फिर से शुरू हुई है. कल ही अमेरिका की एक टीम ने व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली में भारतीय प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की.
7 घंटे की इस बातचीत को सकारात्मक बताया गया है और इसने दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते की एक बार फिर से उम्मीद जगाई है.
अमेरिका ने कृषि और डेयरी सेक्टर को लेकर अपने रुख़ में नरमी के संकेत दिए हैं. जो अमेरिका कुछ हफ़्ते पहले तक पूरे डेयरी क्षेत्र को खोलने की मांग भारत से कर रहा था, उसकी तरफ़ से ये इशारा किया गया है कि भारत को दूध या दही का निर्यात करने का कोई तुक नहीं है.
कृषि क्षेत्र की बात करें तो अमेरिका अपना मक्का भारत को बेचना चाहता है. अमेरिका का ये रुख़ संवेदनशील डेयरी क्षेत्र पर बातचीत की संभावना के रास्ते खोल सकता है लेकिन भारत को ये मंज़ूर है कि नहीं, ये अभी भी साफ नहीं है.
सूत्रों का कहना है कि अमेरिका के नए रवैये के कारण भले ही व्यापार वार्ता पटरी पर लौटी है और दोनों देशों के बीच छठे चरण की बातचीत की जमीन तैयार हुई है लेकिन अंतिम नतीजे पर पहुंचने में अभी समय लगेगा.
अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल नहीं ख़रीदने के लिए काफ़ी दबाव डाला, यहां तक कि रूसी तेल के नाम पर 25 प्रतिशत टैरिफ भी लगा दिया लेकिन इसके बावजूद अमेरिका के आगे भारत नहीं झुका है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ सितंबर के पहले 16 दिनों में रूस से भारत का औसत तेल आयात 1.73 मिलियन BPD यानी बैरल प्रति दिन रहा. जबकि अगस्त में रूस से तेल का आयात 1.66 मिलियन BPD था और जुलाई में 1.59 मिलियन BPD.
ये आंकड़े बताते हैं कि रूस से तेल आयात के मुद्दे पर भारत के ख़िलाफ़ ट्रंप या उनके सहयोगियों की बयानबाज़ी का भारत पर कोई असर नहीं हुआ है. अमेरिकी दबाव की परवाह किए बिना भारत ने रूस से तेल ख़रीदना जारी रखा है.
ट्रंप अभी भी इस मुद्दे पर पीछे हटने के लिए तैयार नहीं दिख रहे. वैसे इन दिनों इस मुद्दे पर वो यूरोपीय देशों पर निशाना साध रहे हैं और उनसे रूसी तेल नहीं ख़रीदने की अपील कर रहे हैं.
ट्रंप के इस हृदय परिवर्तन के पीछे भारत से छिपा कोई प्यार नहीं है बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक मजबूरियां हैं. महंगाई, घरेलू दबाव और चीन से मिल रही चुनौती की वजह से वो अब नरम रुख़ अपनाने के लिए मजबूर हो गए हैं.
ट्रंप के बारे में कोई भी बात यकीनी तौर पर बताना बेहद मुश्किल है. आज ट्रंप भले ही भारत के बारे में अच्छी बातें कर रहे हैं, व्यापार समझौते को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं, उनका भाषाई बदलाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है लेकिन हो सकता है कि कल वो फिर भारत विरोधी बयानबाज़ी शुरू कर दें.
इन्हीं वजहों से ट्रंप को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. वैसे भी भाषा में मधुरता का कोई ख़ास मतलब नहीं है, जब तक ट्रंप की नीति में बदलाव नहीं दिखे.
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— Zee News (@ZeeNews) September 17, 2025
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