अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के मिलन बिंदु पर स्थित, भारत के लिए एक रणनीतिक संपत्ति है। इसके उत्तर और पश्चिम में बंगाल की खाड़ी में भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) है। पूर्व में अंडमान सागर स्थित है, जहां कई जलडमरूमध्य (चैनल) हैं जो दोनों को आगे के शिपिंग मार्गों से जोड़ते हैं।
भारत के EEZ के भीतर 10 डिग्री चैनल (ग्रेट या ग्रैंड चैनल) दुनिया का सबसे व्यस्त शिपिंग मार्ग है। यह मलक्का और सिंगापुर जलडमरूमध्य जैसे महत्वपूर्ण रास्तों से जुड़ा है। यह क्षेत्र हिंद महासागर का एक बड़ा हिस्सा है, जहां से दुनिया का 90% व्यापार गुजरता है।
इसी रणनीतिक महत्व को देखते हुए, केंद्र सरकार ग्रेट निकोबार में एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बना रही है। इस प्रोजेक्ट पर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने सवाल उठाए हैं और राहुल गांधी ने भी चिंता जताई है।
क्या है ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट?
यह एक 72,000 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट है, जो निकोबार द्वीप के सबसे दक्षिणी और बड़े हिस्से पर बनाया जा रहा है। यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि से लगभग 1,800 किलोमीटर दूर पूर्व में बंगाल की खाड़ी में 910 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। यहां इंदिरा पॉइंट भी है, जो इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप से सिर्फ 170 किलोमीटर दूर है।
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 2021 में हुई थी। इसमें मालवाहक जहाजों के लिए बंदरगाह, एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, स्मार्ट सिटी और 450 मेगावाट की गैस और सौर ऊर्जा परियोजना स्थापित की जानी है। नीति आयोग की रिपोर्ट के आधार पर तैयार इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य ग्रेट निकोबार द्वीप के सामरिक महत्व का उपयोग करना है।
यह इलाका श्रीलंका की राजधानी कोलंबो, मलेशिया के पोर्ट क्लांग और सिंगापुर से बराबर दूरी पर है।
सामरिक रूप से क्यों महत्वपूर्ण है?
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत को इस क्षेत्र में अतिरिक्त सैन्य बलों, जंगी जहाजों, जंगी विमानों और मिसाइलों को तैनात करने की क्षमता प्रदान करेगा। इससे भारत हिंद महासागर पर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहतर निगरानी रख सकेगा।
यह द्वीप मलक्का की खाड़ी के करीब है, जो हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच जहाजों के आवागमन का महत्वपूर्ण मार्ग है। इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी को देखते हुए, यह प्रोजेक्ट भारत को अपने प्रतिद्वंद्वी पर नज़र रखने में मदद करेगा।
चीन ने म्यांमार के कोको द्वीप में मिलिट्री फैसिलिटी बनाई है, जो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह से केवल 55 किलोमीटर दूर है।
पर्यावरण और जनजातीय चिंताएं
इस प्रोजेक्ट को लेकर पर्यावरणविदों और कांग्रेस की चिंता यह है कि इसके निर्माण से लगभग 10 लाख पेड़ों को काटा जाएगा, जिससे पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, लुप्तप्राय शौंपेन और निकोबारी जनजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाएगा। इन जनजातियों की संख्या बहुत कम है और वे आज भी शिकार पर निर्भर हैं।
यह प्रोजेक्ट फॉरेस्ट राइट्स एक्ट, 2006 का उल्लंघन भी माना जा रहा है, जिसके तहत शौंपेन जनजाति जंगलों की असली मालिक है। इस जनजाति की आबादी सिर्फ 300 है।
यह माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट से द्वीप के पर्यावरण को भारी नुकसान हो सकता है, कोरल रीफ नष्ट हो सकते हैं और निकोबार मेगापोड पक्षियों और लेदरबैक कछुओं के विलुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है। इसके अतिरिक्त, भूकंप आने की आशंका भी बढ़ सकती है।
The Great Nicobar Island Project is a misadventure, trampling on tribal rights and making a mockery of legal and deliberative processes.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 8, 2025
Through this article, Congress Parliamentary Party Chairperson Smt. Sonia Gandhi highlights the injustices inflicted on Nicobar’s people and… pic.twitter.com/3mM4xHKq04
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