बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान और निकोबार द्वीप समूह दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों, मलक्का जलडमरूमध्य के पास है. यह जलडमरूमध्य वैश्विक व्यापार का 40% से अधिक हिस्सा संभालता है.
भारत के 572 द्वीपों वाली संरचना इसे एक आदर्श ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, नौसेना बेस और लॉजिस्टिक्स हब के रूप में बदल सकती थी, पर आजादी के बाद इस पर काम नहीं हुआ. अब सरकार ने इस कार्य का श्रीगणेश किया है, तो पर्यावरण के नाम पर इसका विरोध शुरू हो गया है.
सोनिया गांधी ने एक लेख लिखकर सरकार के कई लाख करोड़ के प्रोजेक्ट को पर्यावरण पर हमला बताया है. राहुल गांधी ने भी सोनिया के लेख को ट्वीट करके उनकी तर्कों से सहमति जताई है.
ग्रेट निकोबार परियोजना में ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, डिफेंस बेस, टाउनशिप और पावर प्लांट शामिल हैं. सोनिया गांधी इस प्रोजेक्ट को पर्यावरण और आदिवासियों के लिए अस्तित्व का खतरा मान रही हैं.
ग्रेट निकोबार दो आदिवासी समुदायों निकोबारीज और शोम्पेन का घर है. सोनिया गांधी शोम्पेन पॉलिसी का हवाला दे रही हैं, जो विकास परियोजनाओं में उनके कल्याण को प्राथमिकता देती है.
2001 में शोम्पेन की आबादी लगभग 300 थी. 2004 में आई सुनामी के बाद उनकी संख्या बहुत कम हो गई. सवाल यह है कि क्या उन्हें उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए? अगर निकोबार में भौतिक विकास होता, तो वहां जापान की तरह बंकर बन चुके होते, जो उन्हें सुनामी से बचा सकते थे.
सोनिया गांधी ने ग्रेट निकोबार को भूकंप संभावित क्षेत्र बताया है. अगर इस तर्क को माना जाए, तो जापान में कोई विकास नहीं होना चाहिए था. वहां हर रोज भूकंप आता है, पर जापानियों ने वहां इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया है और सर्वाइव कर रहे हैं.
आजादी के बाद भारत ने पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए अंडमान निकोबार में निवेश किया होता, तो यह क्षेत्र सिंगापुर और दुबई की तरह एक वैश्विक हब बन सकता था, बिना आदिवासी समुदायों को खतरे में डाले.
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संसाधनों की कमी, तकनीकी सीमाएं और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ने इस क्षेत्र को उपेक्षित रखा.
सिंगापुर ने 1960-70 के दशक में ली कुआन यू की नीतियों से अपना बंदरगाह विकसित किया. दुबई पोर्ट भी तेल आधारित अर्थव्यवस्था से मुक्त पोर्ट हब बनने के चलते लोकप्रिय हुआ.
सोनिया गांधी की तरह पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारें भी पारिस्थितिक चिंताओं के नाम पर विकास को रोकती रहीं. कांग्रेस शासित काल में एयरस्ट्रिप्स, रडार सुविधाओं और पोर्ट विस्तार को नाजुक पारिस्थितिकी के कारण रोका गया.
अंडमान को पोर्ट हब बनाने से भारत वैश्विक व्यापार का एक प्रमुख केंद्र बन सकता था. यह सिंगापुर और कोलंबो जैसे बंदरगाहों पर भारत की निर्भरता को कम करता, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होती.
अंडमान का पोर्ट हब हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की नौसैनिक और रणनीतिक स्थिति को मजबूत करता. यह चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति का जवाब देता.
पोर्ट हब के विकास से अंडमान में बुनियादी ढांचा बेहतर होता, जिससे स्थानीय समुदायों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर मिलते.
1970 के दशक में ग्रेट निकोबार में ट्रांसशिपमेंट पोर्ट का पहला प्रस्ताव आया था. 2021 में नीति आयोग की 72,000 करोड़ की ग्रेट निकोबार परियोजना में कंटेनर टर्मिनल, हवाई अड्डा और टाउनशिप शामिल हैं.
2022 में पर्यावरण मंजूरी मिली, 2028 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य है. पर जिस तरह सोनिया-राहुल गांधी जैसी हस्तियां इसके विरोध में उतर आईं हैं उससे लगता नहीं है कि डेडलाइन पर यह काम पूरा हो पाएगा.
The Great Nicobar Island Project is a misadventure, trampling on tribal rights and making a mockery of legal and deliberative processes.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 8, 2025
Through this article, Congress Parliamentary Party Chairperson Smt. Sonia Gandhi highlights the injustices inflicted on Nicobar’s people and… pic.twitter.com/3mM4xHKq04
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