नेपाल में जेन-ज़ी का विद्रोह: सुडान गुरूंग बने युवा आक्रोश का प्रतीक
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नेपाल में सोमवार को हाल के वर्षों का सबसे बड़ा युवा विद्रोह देखने को मिला. सरकार द्वारा 4 सितंबर को फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब और एक्स सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाने के बाद हजारों छात्र और युवा काठमांडू की सड़कों पर उतर आए.

प्रदर्शन तेजी से हिंसक हो गया. पुलिस की गोलीबारी में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई, जबकि 300 से अधिक लोग घायल हो गए. अस्पतालों में घायलों की भारी भीड़ के कारण काठमांडू के ट्रॉमा सेंटर और सिविल अस्पताल को मरीजों को दूसरे अस्पतालों में रेफर करना पड़ा.

स्थिति नियंत्रण से बाहर होते ही गृह मंत्री रामेश लेखक ने नैतिक आधार पर इस्तीफ़ा दे दिया. संसद परिसर और आसपास की सड़कों पर सेना ने नियंत्रण संभाल लिया.

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने हिंसा का कारण अवांछित तत्वों की घुसपैठ बताया. उन्होंने दावा किया कि सरकार का उद्देश्य सोशल मीडिया पर सेंसरशिप नहीं बल्कि रेगुलेशन था. लेकिन हालात और जनदबाव के बीच सरकार ने अपना निर्णय वापस ले लिया. आपातकालीन कैबिनेट बैठक के बाद संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरूंग ने घोषणा की कि सोशल मीडिया सेवाएं बहाल की जाएंगी.

इस पूरे आंदोलन की अगुवाई 36 वर्षीय सुडान गुरूंग कर रहे हैं, जो हमि नेपाल नामक यूथ NGO के अध्यक्ष हैं. 2015 के भूकंप में अपने बच्चे को खोने के बाद उन्होंने इवेंट आयोजन का काम छोड़कर सामाजिक सरोकारों को अपना लिया. गुरूंग ने पहले भूकंप राहत और फिर स्वास्थ्य सेवाओं की पारदर्शिता को लेकर कई आंदोलनों का नेतृत्व किया.

इंस्टाग्राम पर उन्होंने युवाओं से यूनिफॉर्म पहनकर और किताबें लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की अपील की थी. उनकी रणनीति ने आंदोलन को संगठित और प्रतीकात्मक रूप दिया.

सोमवार को हजारों छात्रों ने संसद भवन के बाहर विशाल रैली की. जैसे ही कुछ प्रदर्शनकारी संसद परिसर में घुस गए, पुलिस ने वाटर कैनन, आंसू गैस और यहां तक कि गोलियां भी चलाईं. देखते ही देखते विरोध काठमांडू से पोखरा, बुटवल, भरतपुर, विराटनगर और दमक तक फैल गया.

इस आंदोलन को और बल नेपो किड कैम्पेन से मिला. यह ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों स्तरों पर चला, जिसमें नेताओं और सत्ता के रसूखदार परिवारों के बच्चों पर भ्रष्टाचार से हासिल विशेषाधिकारों का आरोप लगाया गया. युवाओं का गुस्सा अब केवल सोशल मीडिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सड़कों पर संगठित विरोध में बदल गया.

नेपाल में यह विद्रोह दिखाता है कि जनरेशन Z अब डिजिटल आज़ादी और राजनीतिक पारदर्शिता के लिए खुलकर सड़कों पर उतरने को तैयार है. सरकार के लिए यह सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं, बल्कि भरोसा बहाल करने की बड़ी चुनौती भी है.

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