मीडिएटर का ताज छीना! ट्रंप-जिनपिंग की सीजफायर पर टक्कर, जानी दुश्मनों में दोस्ती
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ट्रंप, बीजिंग से 11 हजार किलोमीटर दूर बैठे, शायद टीवी स्क्रीन पर ही नज़रें गड़ाए होंगे। बीजिंग में जो हो रहा है, उससे ट्रंप का बनाया भ्रमजाल टूट रहा है।

भारत और रूस के बीच तेल का समझौता और मजबूत हुआ है। ट्रंप के सिर से सबसे बड़े मध्यस्थ होने का ताज छिन गया है। जिनपिंग ने वो काम कर दिखाया, जो ट्रंप नहीं कर पाए।

उन्होंने उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया को एक मंच पर खड़ा ही नहीं किया, बल्कि दोनों के बीच हाथ भी मिलवा दिया। किम जोंग उन खुद चीन की विक्ट्री डे परेड में पहुंचे, तो दक्षिण कोरिया ने अपने स्पीकर वू वॉन-शिक को बीजिंग भेजा।

दक्षिण कोरिया के स्पीकर ऑफिस ने बताया कि दोनों नेताओं के बीच बीजिंग में बातचीत हुई। दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया, हालांकि हैंडशेक की तस्वीर नहीं आई है।

उत्तर और दक्षिण कोरिया के नेताओं के बीच हैंडशेक पूरी दुनिया के लिए किसी सरप्राइज से कम नहीं है। इसलिए अब ट्रंप के बजाय जिनपिंग को सबसे बड़ा मध्यस्थ कहा जा रहा है। अब नोबेल के लिए ट्रंप को जिनपिंग से टक्कर मिल रही है।

उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच दुश्मनी सात दशक पुरानी है। दोनों देशों के नेता पिछली बार सात साल पहले 2018 में मिले थे। वार्ताओं की कोशिशें कई बार असफल रहीं। अब विक्ट्री डे परेड में दोनों देशों के नेता एक मंच पर बैठे और बातचीत हुई।

नोबेल का सपना संजोए ट्रंप भी लंबे समय से इसी कोशिश में थे, पर जिनपिंग ने बाजी मार ली। 25 अगस्त को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ट्रंप से मिले और किम जोंग का जिक्र किया।

ट्रंप बातें करते रह गए, जिनपिंग ने किम जोंग और दक्षिण कोरिया के स्पीकर का हाथ मिलवा दिया और बन गए बड़े मध्यस्थ।

किम और वू की मुलाकात की तस्वीर सामने नहीं आई है, लेकिन वे 2018 में मिल चुके हैं। वू उस वक्त कोरियाई डेमोक्रेटिक पार्टी के फ्लोर लीडर थे। तनाव कम करने के लिए बैठक हुई थी, जिसमें वू ने किम जोंग को बताया था की नॉर्थ कोरिया में उनकी दो बहनें रहती हैं। किम जोंग ने उन्हें ढूंढने की कोशिश करने को कहा था।

बीजिंग में हुए इस हैंडशेक के बाद उम्मीद है कि चीन दोनों देशों के बीच तनाव कम करने में बड़ी भूमिका निभाएगा।

नोबेल शांति पुरस्कार की चाहत रखने वाले डोनाल्ड ट्रंप को बीजिंग में हुई घटनाएं चुभ रही होंगी। जिनपिंग की वजह से न सिर्फ दो प्रतिद्वंद्वी कोरियाई देश एक मंच पर आए, बल्कि कई ऐसे देशों के नेता भी मौजूद थे जिनके बीच रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं।

विक्ट्री डे परेड के मंच पर अजरबैजान के राष्ट्रपति और आर्मीनिया के प्रधानमंत्री मौजूद थे। ये दोनों देश तीन युद्ध लड़ चुके हैं। ट्रंप ने हाल ही में इन दोनों देशों के बीच सीजफायर करवाने का दावा किया था, लेकिन ये दोनों आज जिनपिंग के मंच पर दिखे।

इसी मंच पर वियतनाम, लाओस और इंडोनेशिया के राष्ट्राध्यक्ष भी मौजूद थे। इन तीनों देशों के बीच साउथ चाइना सी के कुछ हिस्सों को लेकर विवाद है। इसके अलावा कॉन्गो और जिम्बॉवे के राष्ट्राध्यक्ष भी मौजूद थे, जो पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी हैं।

ट्रंप सीजफायर और मध्यस्थता के दावे करते रह गए, और खुद को सबसे बड़ा शांतिदूत घोषित कर दिया। लेकिन दुनिया कह रही है कि जिनपिंग ने पुराने प्रतिद्वंद्वियों को एक साथ खड़ा करके मध्यस्थता का तमगा ट्रंप से छीन लिया है।

ट्रंप यूरोप में लामबंदी की कोशिशें कर रहे हैं, जो कामयाब होती नहीं दिखतीं, लेकिन जिनपिंग ने साबित कर दिया है कि वो ऐसी धुरी बन चुके हैं, जिसके इर्द गिर्द ग्लोबल साउथ खुद को स्थापित कर सकता है।

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