शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भारत, रूस और चीन के गठजोड़ की तस्वीरों ने एक बार फिर इस संभावना को जन्म दिया है कि रूस, भारत और चीन मिलकर एक गठबंधन बना सकते हैं.
आबादी के लिहाज से भारत, चीन और रूस तीनों दुनिया के टॉप 10 देशों में आते हैं. भारत की आबादी लगभग 146 करोड़, चीन की 141 करोड़ और रूस की 14 करोड़ 39 लाख है. यानी दुनिया की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा इन तीन देशों में रहता है. इस लिहाज से ये तीनों देश दुनिया के सबसे बड़े बाजार और कार्यशक्ति रखते हैं.
सॉफ्ट पावर के साथ ही साथ, हार्ड पावर यानी सामरिक तौर पर भी भारत, रूस और चीन दुनिया में बड़ी शक्तियां हैं. इसी वजह से चीन के तियानजिन से हजारों किलोमीटर दूर एससीओ बैठक में RIC के बीच बनी संभावनाओं को लेकर अमेरिकी मीडिया में बड़ी हलचल है.
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि ट्रंप को लेकर भारत के सब्र का बांध टूटता जा रहा है. एससीओ की हालिया बैठक के केंद्र में अब चीन अकेला नहीं, बल्कि भारत, रूस और चीन एक साथ नजर आ रहे हैं.
अमेरिका के न्यूज चैनल सीएनएन में कहा गया है कि रूस और भारत के लिए चीन ने रेड कार्पेट बिछा दिया है. ये एक नया वर्ल्ड ऑर्डर बनाने की कोशिश है, जिसका मौका खुद डॉनल्ड ट्रंप ने दिया है.
द इकोनॉमिस्ट मैगजीन में लिखा गया है कि भारत पर हद से ज्यादा टैरिफ लगाकर ट्रंप ने पिछले 25 सालों के अमेरिकी प्रयासों पर पानी फेर दिया है.
एससीओ के संयुक्त बयान में कहा गया है कि सभी सदस्य देश उन कदमों का विरोध करते हैं जो एकतरफा हैं और दूसरे देशों को दबाने के मकसद से उठाए गए हैं. ये कदम विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) जैसे मंचों के मुक्त व्यापार के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और ऐसे कदमों से दुनिया में आर्थिक अस्थिरता पैदा होने की संभावना कई गुना बढ़ गई है.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से रूस और चीन अपनी करेंसी में व्यापार कर रहे हैं. आज ये व्यापार 100 बिलियन डॉलर की वैल्यू जितना हो चुका है. हम आज भी चीन के साथ अपनी करेंसी में आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ा रहे हैं और ऐसा करके हम डॉलर पर निर्भरता से मुक्ति पा सकते हैं.
वर्ष 1999 तक दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडारों में डॉलर की हिस्सेदारी 71 प्रतिशत थी. लेकिन वर्ष 2025 तक ये आंकड़ा घटकर 57 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, जिसके मायने हैं कि दुनिया के देश विदेशी मुद्रा भंडार खड़ा करने के लिए डॉलर से दूरी बना रहे हैं.
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने रूस के साथ रूबल में व्यापार किया है, जबकि चीन और भारत भी खाद और उपकरणों के आयात निर्यात में रुपए और युआन का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसके चलते तीनों देशों की डॉलर पर निर्भरता कुछ हद तक कम हुई है.
अगर आर्थिक क्षेत्र आधारित आंकलन भी किया जाए, तो सामने आता है कि भारत, चीन और रूस का एक साथ आना तीनों देशों को आर्थिक तौर पर मजबूत कर सकता है और टैरिफ का मुकाबला भी किया जा सकता है.
ट्रंप के टैरिफ को नकारते हुए अगर रूस से तेल सीधे भारत और चीन को मिलता रहे, तो उससे रूस को तकरीबन 300 बिलियन डॉलर की आय होती रहेगी और उसके मुख्य निर्यात यानी तेल और गैस की सप्लाई बाधित नहीं होगी. चूंकि चीन के पास अपने ऊर्जा संसाधन नहीं हैं, तो वो रूस से तेल खरीद सकता है और मुक्त व्यापार समझौतों के जरिए उसे भारत से धातु, खनिज और केमिकल्स की सप्लाई मिल सकती है. भारत को सस्ते दाम पर तेल और रूस जैसे देशों से कम कीमत पर हथियार मिल सकते हैं, जो भारत की बड़ी आबादी की ऊर्जा आवश्यकताओं को आसानी से पूरा कर सकता है.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने ट्रंप के टैरिफ को पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा फैसला करार दिया है.
एससीओ सदस्य ठान चुके हैं कि ट्रंप के टैरिफ का वे ठोस जवाब देंगे, लेकिन अब तक टैरिफ को लेकर ट्रंप टस से मस नहीं हुए हैं.
#DNAWithRahulSinha | डॉलर के दबदबे का The End आ गया ! क्या भारत-रूस-चीन..अपना डॉलर बनाएंगे?
— Zee News (@ZeeNews) September 1, 2025
SCO बैठक का सरल और संपूर्ण विश्लेषण#DNA #Russia #China #India #UnitedStates #SCOSummit @RahulSinhaTV pic.twitter.com/gJhC2pepLG
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