मोदी-शी-पुतिन की एक मुस्कान से मचा हंगामा, आखिर क्या इशारा कर गए तीनों दिग्गज?
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चीन के उत्तरी शहर तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है. भारत, चीन और रूस के शक्तिशाली नेताओं के बीच की नज़दीकी ने दुनिया भर का ध्यान खींचा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात साल बाद चीन पहुंचे. उन्होंने SCO के एजेंडे पर भारत की प्राथमिकताएं रखीं. साथ ही, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलकर संबंधों में नई शुरुआत का संदेश दिया.

तियानजिन में मोदी ने चीनी और रूसी नेताओं को गले लगाकर एक कड़ा संदेश दिया कि मनमाने टैरिफ बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे.

शिखर सम्मेलन के पहले दिन मोदी, पुतिन और जिनपिंग की बातचीत अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छाई रही. खबरों के मुताबिक, मोदी ने पुतिन और जिनपिंग का हाथ पकड़कर उन्हें करीब खींचा. पुतिन ने बातचीत की शुरुआत हम तीन दोस्त... कहकर की. मोदी ने कई बार पुतिन का हाथ थामा और बातचीत के दौरान ठहाके लगाए.

प्रधानमंत्री मोदी ने SCO की 25वीं बैठक में कहा कि शांति, स्थिरता और सुरक्षा प्रगति और समृद्धि की कुंजी हैं. उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने की बात कही और आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ साझा प्रयास की जरूरत बताई.

मोदी ने चाबहार पोर्ट और अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर जैसे प्रोजेक्ट्स को भरोसे और विकास के लिए अहम बताया. उन्होंने SCO के तहत सिविलाइजेशनल डायलॉग फोरम की स्थापना का प्रस्ताव रखा, ताकि लोगों के बीच आपसी समझ बढ़ सके.

तियानजिन यात्रा के दौरान मोदी ने शी जिनपिंग से मुलाकात की. दोनों नेताओं ने सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने और आपसी विश्वास को बहाल करने की बात कही. मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुईज्जू से भी मोदी ने भेंट की.

अपने संबोधन में पुतिन ने भारत और चीन का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि रूस इन देशों के उन सुझावों की सराहना करता है, जो यूक्रेन संकट को सुलझाने में मददगार हो सकते हैं.

इस सम्मेलन में अमेरिका और भारत के रिश्ते भी चर्चा में रहे. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत से आयातित उत्पादों पर 50% टैरिफ लगा दिया है. रूस से भारत की लगातार कच्चे तेल की खरीद पर अमेरिका नाराज है.

तियानजिन में SCO शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से तियानजिन डिक्लेरेशन को अपनाया. अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव और चीन के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिशों के बीच यह दौरा भारत की विदेश नीति के लिए अहम रहा.

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