ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के खिलाफ नफरत का उबाल, कौन भड़का रहा है प्रदर्शन?
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ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख शहरों सिडनी, मेलबर्न और कैनबरा में रविवार को हजारों लोग सड़कों पर उतरे और आव्रजन विरोधी रैलियों में भाग लिया। इन आयोजनों को मार्च फॉर ऑस्ट्रेलिया नाम दिया गया।

इन रैलियों में मुख्य रूप से भारतीय प्रवासियों को निशाना बनाया गया। 2013 से 2023 तक ऑस्ट्रेलिया में भारतीय प्रवासियों की संख्या दोगुनी होकर लगभग 845,800 पहुंच गई है, जो अब देश की कुल जनसंख्या का लगभग 3% है।

आयोजकों का दावा है कि प्रवासियों के आने से संसाधनों का दोहन हो रहा है। सरकार ने इन प्रदर्शनों को नफरत फैलाने वाला और नियो-नाज़ियों से जुड़ा बताया है।

प्रदर्शन से पहले फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर प्रचारित सामग्री ने भारतीयों के खिलाफ माहौल को बढ़ावा दिया। पोस्टरों में भारतीय प्रवासियों को विशेष रूप से दिखाया गया और सामूहिक प्रवासन को रोकने की मांग की गई।

सिडनी में 5,000 से 8,000 लोगों ने मैराथन मैदान के पास मार्च निकाला। पास ही एक जवाबी रैली रिफ्यूजी एक्शन कोएलिशन द्वारा आयोजित की गई, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए।

पुलिस ने कहा कि सैकड़ों अधिकारियों की तैनाती के बावजूद कोई बड़ी हिंसक घटना नहीं हुई, लेकिन मिर्च स्प्रे, लाठियों और अन्य उपकरणों का इस्तेमाल झड़पों को रोकने के लिए किया गया। मेलबर्न में भी 5,000 लोगों ने प्रदर्शन किया, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक सेवाओं पर अपनी नाराजगी जताई।

संघीय श्रम मंत्री मरे वाट और गृह मंत्री टोनी बर्क ने इन रैलियों की निंदा की। उन्होंने कहा कि यह न केवल सामाजिक सद्भाव को तोड़ने वाला प्रयास है बल्कि नियो-नाज़ी विचारधारा को बढ़ावा देने वाला भी है।

विपक्षी नेता सुज़ैन ले और अटॉर्नी जनरल जूलियन लीसर ने भी कहा कि हिंसा, नस्लवाद और धमकी के लिए इन रैलियों का कोई स्थान नहीं है और यह ऑस्ट्रेलिया की सामाजिक एकता को कमजोर कर सकती हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि दक्षिणपंथी गतिविधियों में हाल के वर्षों में वृद्धि हुई है। अक्टूबर 2023 में इजरायल-गाज़ा युद्ध के बाद यहूदी विरोधी हमलों की घटनाओं की श्रृंखला ने ऑस्ट्रेलिया में सामाजिक तनाव और भी बढ़ा दिया है। नए कानूनों के बावजूद चरमपंथी प्रतीकों और प्रदर्शनों पर निगरानी लगातार जारी है।

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