ओडिशा के आदिवासी युवक शुभम सबर का डॉक्टर बनने का सपना हकीकत में बदल गया है। आर्थिक तंगी से जूझ रहे शुभम ने NEET जैसी कठिन परीक्षा पास कर यह मुकाम हासिल किया है।
14 जून का दिन शुभम के लिए अविस्मरणीय था। बेंगलुरु में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते हुए, उन्हें अपने शिक्षक बासुदेव मोहराणा का फोन आया। उन्होंने बताया कि शुभम ने NEET-UG पास कर लिया है। शुभम ने बताया कि वह खुशी के आंसू नहीं रोक पाए और तुरंत अपने माता-पिता को यह खबर दी।
शुभम को ओडिशा के बरहामपुर में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में दाखिला मिल गया है। उन्होंने अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणी में 18,212वीं रैंक हासिल की।
शुभम ओडिशा के खुर्दा जिले के मुदुलिधिया गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता एक छोटे किसान हैं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़े शुभम ने अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि उनके माता-पिता दिन-रात मेहनत करते हैं ताकि उनका पालन-पोषण हो सके। उन्होंने पढ़ाई पूरी करने और जीवन में कुछ बड़ा करने का निश्चय किया था।
शुभम ने दसवीं कक्षा में 84% अंक हासिल किए। उनके शिक्षकों ने उन्हें भुवनेश्वर के बीजेबी कॉलेज में ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई करने की सलाह दी। बारहवीं के बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का फैसला किया और बरहामपुर के एक कोचिंग सेंटर में NEET की तैयारी शुरू की।
एग्जाम देने के बाद, शुभम बेंगलुरु चले गए जहाँ उन्होंने तीन महीने तक कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी की। इस दौरान उन्होंने 45,000 रुपये कमाए और 25,000 रुपये बचाए। यह पैसा उनके मेडिकल कॉलेज में दाखिले की शुरुआती फीस के लिए बहुत जरूरी था।
शुभम के माता-पिता, सहदेव और रंगी, अपने बेटे की उपलब्धि पर गर्व महसूस कर रहे हैं, लेकिन वे आगे की पढ़ाई के लिए आर्थिक चुनौतियों को लेकर चिंतित हैं। उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनके बेटे को MBBS पूरा करने के लिए आर्थिक मदद देगी।
शुभम की सफलता ने पूरे ओडिशा में हलचल मचा दी है। उनके संघर्ष और दृढ़ संकल्प को प्रेरणादायक बताया जा रहा है। चार साल बाद, जब शुभम अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे, तो वह अपनी पंचायत के पहले डॉक्टर होंगे।
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— Santrupt Misra (@DrSantruptMisra) August 31, 2025
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