हिमंता सरकार का सख्त रुख: दंगाइयों का इलाज गोली , धुबरी में शूट एट साइट का आदेश!
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असम सरकार ने दुर्गा पूजा के दौरान शांति भंग करने वालों के खिलाफ शूट एट साइट का आदेश जारी किया है. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने यह आदेश विशेष रूप से धुबरी जिले के लिए दिया है, जिसके बाद देश भर में राजनीतिक और सांप्रदायिक बहस छिड़ गई है.

यह संभवतः पहली बार है कि किसी हिंदू त्योहार को ध्यान में रखते हुए ऐसा सख्त कदम उठाया गया है. सवाल यह है कि ऐसी परिस्थिति क्यों उत्पन्न हुई और क्या यह आदेश केवल धुबरी के लिए ही है?

जून में, धुबरी में सामुदायिक तनाव तब बढ़ गया जब एक हनुमान मंदिर में कथित तौर पर बीफ के टुकड़े पाए गए. इस घटना के बाद स्थानीय हिंदू समुदाय में आक्रोश फैल गया, जिसके चलते बाजार बंद हो गए और पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं. प्रशासन को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा.

धुबरी घुसपैठियों के खिलाफ चल रही मुहिम का केंद्र भी रहा है. जुलाई में, अवैध रूप से रह रहे लोगों ने अतिक्रमण हटाने गई टीम पर हमला कर दिया, जिससे कई पुलिसकर्मी और प्रशासनिक अधिकारी घायल हो गए.

आबादी के आंकड़ों पर गौर करें तो धुबरी में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है. 1951 में, हिंदू आबादी 43.5% थी, जो 2001 में घटकर 24.78% और 2011 में 19.92% रह गई. वहीं, मुस्लिम आबादी 74.3% से बढ़कर 79.67% हो गई. विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव जन्म दर में वृद्धि और बांग्लादेश से घुसपैठ के कारण हुआ है.

यह मुद्दा केवल धुबरी तक सीमित नहीं है. हाल के वर्षों में एक पैटर्न देखा गया है कि हिंदू त्योहारों के दौरान हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मुस्लिम आबादी बढ़ रही है या जहां आबादी का अनुपात लगभग समान है.

वाराणसी-विल्किंसन के एक शोध के अनुसार, जिन जिलों में मुस्लिम आबादी 20% से अधिक है, वहां दंगों की संभावना तीन गुना बढ़ जाती है. वर्तमान में, देश के 110 जिलों में मुस्लिम आबादी 20% से अधिक है.

शूट एट साइट का आदेश आमतौर पर तब दिया जाता है जब लूटपाट, हिंसा, नागरिकों और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो या भीड़तंत्र और हिंसा को रोकने में पुलिस विफल हो जाए. असम सरकार ने दुर्गा पूजा के दौरान शांति बनाए रखने के लिए इसी प्रावधान का उपयोग किया है.

हालांकि इस फैसले की राजनीतिक हलकों में आलोचना हो रही है, लेकिन यह भी सच है कि हाल के वर्षों में हिंदू त्योहारों और आयोजनों पर दंगों और तनाव की घटनाएं बढ़ी हैं.

2024 में, सबसे ज्यादा दंगे सरस्वती पूजा विसर्जन के दौरान हुए. राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी दंगों की चार बड़ी घटनाएं हुईं. इसके अतिरिक्त, गणेश उत्सव और रामनवमी पर भी हिंसा और सांप्रदायिक तनाव की खबरें आईं.

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेकुलरिज्म की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में देश में सांप्रदायिक तनाव की 59 घटनाएं हुईं, जिनमें से 26 त्योहारों या शोभा यात्राओं के दौरान हुईं.

हाल ही में, गुजरात के वडोदरा में गणेशोत्सव की शोभा यात्रा पर कुछ असामाजिक तत्वों ने अंडे फेंके, जबकि उत्तर प्रदेश के बहराइच में शोभा यात्रा पर पटाखे फेंके गए.

इन घटनाओं से हिंदू समुदाय में नाराजगी है और तनाव की स्थिति बनी हुई है. अब गणेशोत्सव की शोभायात्रा में भी तनाव बढ़ाने की कोशिश की जा रही है.

इन घटनाओं को देखते हुए, असम सरकार का शूट एट साइट का आदेश दंगाइयों को रोकने के लिए एक सख्त कदम है. हालांकि हिंदूवादी संगठन इसका समर्थन कर रहे हैं, कुछ मुस्लिम धर्मगुरु इसका विरोध कर रहे हैं. दंगों को रोकना जरूरी है, क्योंकि यह एक वायरस की तरह फैल सकता है और पूरे समाज को बीमार कर सकता है.

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