वो चमत्कारी नहीं, संस्कृत के एक श्लोक को समझा दें तो... प्रेमानंद महाराज को रामभद्राचार्य की खुली चुनौती
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जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने एक विशेष शो में विभिन्न मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय रखी है. दृष्टिहीन होने के बावजूद संस्कृत और वेदों के प्रकांड विद्वान माने जाने वाले रामभद्राचार्य ने अपने बचपन, शिक्षा, संन्यास की यात्रा और राम मंदिर आंदोलन में अपनी भूमिका पर कई बातें साझा कीं.

उन्होंने कहा कि आज कथावाचन विद्या विद्वानों के बजाय लोकप्रियता की होड़ में फंस चुकी है. उनका मानना है कि आरक्षण केवल आर्थिक आधार पर होना चाहिए, मनुस्मृति भारत का शाश्वत संविधान है और हिंदू राष्ट्र के लिए संसद में बहुमत जरूरी है.

राम मंदिर आंदोलन में अपनी गवाही और पीओके की मुक्ति के संकल्प पर बोलते हुए उन्होंने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट तक का विरोध किया.

प्रेमानंद जी की लोकप्रियता पर उन्होंने कहा कि चमत्कार वही है जो शास्त्रों में पारंगत हो. उन्होंने गांधी जी की गलतियों से लेकर आज के शंकराचार्यों की योग्यता और राजनीति में धर्म की भूमिका तक, हर सवाल का सीधा जवाब दिया. उनके अनुसार सफलता वही है जो निष्ठा और मर्यादा से अपने कर्म को निभाए, न कि भीड़ और प्रचार पर.

रामभद्राचार्य ने उपाध्याय, चौबे, पाठक पर सफाई देते हुए कहा कि उनके वक्तव्य को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि पुराने समय में इन वर्णों को निम्न श्रेणी में इसलिए रखा गया था क्योंकि वे विद्यार्थियों से धन लेकर पढ़ाते थे, जबकि शिक्षा को सेवा माना जाता था, व्यवसाय नहीं. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह बात आज के संदर्भ में नहीं कही जानी चाहिए.

रामभद्राचार्य ने बताया कि उनका जन्म 14 जनवरी 1950 को जौनपुर में हुआ था और दो महीने बाद ही वे दृष्टिहीन हो गए थे. बचपन का नाम गिरधर मिश्रा था. पाँच वर्ष की उम्र तक गीता और सात वर्ष की उम्र तक संपूर्ण रामायण उन्हें कंठस्थ हो गई थी. उन्होंने ब्रेल नहीं सीखी और सामान्य विद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की, जिसमें हमेशा 99% से ऊपर अंक लाए. उनका कहना है कि जिसके पास शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वही वास्तव में अंधा है.

राम मंदिर आंदोलन पर उन्होंने कहा कि वे शुरुआती लोगों में से थे जिन्होंने आंदोलन शुरू किया. उन्होंने न्यायालय में 441 प्रमाण दिए, जिनमें से 437 तत्काल स्वीकार हुए. उन्होंने यह भी कहा कि वे मथुरा के मुद्दे पर आंदोलन का हिस्सा नहीं बनेंगे, लेकिन अदालत बुलाएगी तो शास्त्रीय साक्ष्य देंगे.

जातिवाद और आरक्षण के मुद्दे पर रामभद्राचार्य ने कहा कि चारों वर्ण पवित्र हैं, ऊंच-नीच का भेद गलत है और आरक्षण केवल आर्थिक आधार पर होना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि आज के अधिकांश शंकराचार्य पारंपरिक कसौटी पर खरे नहीं उतरते क्योंकि उन्होंने गीता, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र पर भाष्य नहीं लिखा. कथावाचकों पर उन्होंने कहा कि अब विद्वान की जगह मूर्ख कथा कहते हैं.

प्रेमानंद जी महाराज पर उन्होंने कहा कि वे उनसे द्वेष नहीं रखते, पर चमत्कार वही है जो शास्त्रों में पारंगत हो. भीड़ जुटा लेना या सेलिब्रिटीज का आना चमत्कार नहीं है, यह लोकप्रियता क्षणभंगुर है. उन्होंने प्रेमानंद जी को संस्कृत के एक श्लोक को समझाने की चुनौती दी.

रामभद्राचार्य ने कहा कि आजादी की लड़ाई में गांधी जी का योगदान सीमित था. असली योगदान भगत सिंह, आज़ाद, सुभाष बोस जैसे क्रांतिकारियों का था. गांधी जी की गलतियों से ही देश का विभाजन हुआ.

उन्होंने कहा कि धर्म और राजनीति का संबंध पति-पत्नी जैसा है. हिंदू राष्ट्र के लिए संसद में बहुमत जरूरी है. दलितों और धर्मांतरण कर चुके लोगों को पुनः हिंदू धर्म में लाने की आवश्यकता है. जब तक विवाद हल न हो, पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं होना चाहिए. वे हनुमान जी के यज्ञ द्वारा पीओके की मुक्ति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.

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