अखिलेश यादव ने मोहन यादव को देखा और फिर... संसद परिसर में हुई दिलचस्प मुलाकात!
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संसद भवन परिसर में विपक्षी नेताओं के प्रदर्शन के दौरान एक अप्रत्याशित घटना घटी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को पीछे से संसद भवन की ओर जाते हुए देखा गया।

अखिलेश यादव ने जैसे ही मोहन यादव को देखा, उन्हें आवाज लगाई। मोहन यादव ने मुड़कर अखिलेश यादव का अभिवादन किया। इस मुलाकात को राजनीतिक गलियारों में एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया और कुछ देर बातचीत की।

मानसून सत्र के दौरान संसद में राजनीतिक सरगर्मी तेज है। विपक्ष लगातार विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है। संसद के भीतर टकराव की स्थिति बनी हुई है, लेकिन बाहर राजनेता एक-दूसरे से मिलते-जुलते नजर आ रहे हैं।

विपक्षी सांसदों के प्रदर्शन और नारेबाजी के बीच मोहन यादव रुके और अखिलेश यादव को नमस्कार किया। अखिलेश यादव भी प्रदर्शन छोड़कर मोहन यादव की ओर बढ़े। दोनों नेताओं ने मुस्कुराते हुए हाथ मिलाया और कुछ पल बातचीत की। इसके बाद मोहन यादव संसद भवन की ओर चले गए, जबकि अखिलेश यादव वापस प्रदर्शन में शामिल हो गए।

भारतीय जनता पार्टी ने मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर एक बड़ा दांव खेला है। इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में यादव वोट बैंक को प्रभावित करना है। अखिलेश यादव यूपी में इस वोट बैंक को अपना मानते हैं। ऐसे में, मोहन यादव के जरिए इस वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश की जा रही है, हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में यह सफल नहीं हो पाई। इस मुलाकात के जरिए अखिलेश यादव 2027 के यूपी चुनाव से पहले प्रदेश के मतदाताओं को एक अलग संदेश देने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

इससे पहले संसद सत्र में विपक्षी सांसदों ने बिहार वोटर वेरिफिकेशन को लेकर जमकर नारेबाजी की। वोट चोर गद्दी छोड़ो और वी वॉन्ट जस्टिस जैसे नारे लगाए गए। अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग बीजेपी के इशारे पर काम करता है। उन्होंने कहा कि जानबूझकर पिछड़े वर्गों का वोट काटा जाता है और यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि पिछड़ा वर्ग बीजेपी के साथ है।

अखिलेश यादव ने बीएलओ की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जाति के आधार पर बीएलओ की नियुक्ति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि नोटिस मिलने के बाद समय की कमी के चलते वे केवल 18,000 हलफनामे ही जमा करवा पाए। उन्होंने सवाल उठाया कि इतने हलफनामे देने के बावजूद अगर कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो चुनाव आयोग पर कैसे भरोसा किया जाए।

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