बांग्लादेश के दिनाजपुर में एक हिन्दू महिला पर जानलेवा हमला हुआ है। पीड़ित निला रानी को पहले पीटा गया, फिर सिर पर पैर रखकर बेरहमी से कुचला गया।
इस घटना के बाद से स्थानीय हिंदू समुदाय में भय और आक्रोश का माहौल है। पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार किया है, जबकि दूसरा अभी भी फरार है।
यह घटना 1947 में विभाजन के समय हुए निर्णयों पर फिर से बहस को जन्म दे रही है।
निला रानी, 40 वर्षीय एक स्थानीय हिंदू महिला, पर दो इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हमला किया जब वह अपने खेत की देखरेख कर रही थीं।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, न केवल उन्हें पीटा गया, बल्कि हमलावरों ने उनके सिर पर पैर रखकर उन्हें बुरी तरह से कुचला।
निला रानी दिनाजपुर जिले के बिरगंज उपजिला में रहती थीं। वह अपने खेत में नियमित रूप से काम करती थीं और स्थानीय धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय थीं।
घटना 20 जुलाई को दोपहर के समय हुई। निला रानी खेत में थीं तभी दो युवक, जिनकी पहचान शहाबुद्दीन और मुन्ताज के रूप में हुई है, मोटरसाइकिल पर आए और उनके साथ झगड़ा करने लगे।
झगड़े की वजह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हमलावरों ने धार्मिक गालियाँ दीं और उन्हें काफिर कहकर संबोधित किया।
हमलावरों ने निला रानी को लाठी और पत्थर से पीटा। जब वह ज़मीन पर गिर गईं, तो उनमें से एक ने उनके सिर पर पैर रखकर दबाया। यह दृश्य इतना वीभत्स था कि वहां मौजूद कुछ ग्रामीणों को हस्तक्षेप करने में भी डर लग रहा था।
इस घटना ने पूरे दिनाजपुर क्षेत्र के हिंदू समुदाय में दहशत भर दी है। एक स्थानीय निवासी रमाकांत मिश्रा ने कहा, आज निला बहन के साथ हुआ है, कल किसी और हिंदू बहन के साथ होगा। हमारी बेटियां अब खेत या स्कूल जाने से डर रही हैं।
दिनाजपुर पुलिस अधीक्षक ने कहा कि मामला संवेदनशील है और त्वरित कार्रवाई की जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई निला रानी को न्याय दिला पाएगी?
इस बर्बर हमले ने एक बार फिर विभाजन के समय किए गए निर्णयों पर बहस छेड़ दी है। कई सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि पूरी जनसंख्या का स्थानांतरण 1947 में हुआ होता, तो इस तरह की घटनाएं टाली जा सकती थीं।
भारतीय इतिहासकार संजय चक्रवर्ती कहते हैं: हमने एक सेकुलर राष्ट्र की उम्मीद में लाखों हिंदू और मुस्लिमों को वहीं छोड़ दिया, लेकिन अब हिंदू महिला के साथ हो रही हिंसा यह बताती है कि वह फैसला शायद सबसे बड़ा ऐतिहासिक भ्रम था।
यह पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश में किसी हिंदू महिला पर हमला हुआ हो। पिछले 5 वर्षों में ऐसे दर्जनों मामले सामने आए हैं जहां या तो बलात्कार हुआ, या धर्मांतरण के लिए प्रताड़ना दी गई, या फिर घरों को जला दिया गया।
प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने बार-बार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का दावा किया है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। पीड़ितों को न तो न्याय मिलता है और न ही स्थायी सुरक्षा।
शेख हसीना का बयान हम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर चलते हैं। किसी भी अल्पसंख्यक के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। पर सवाल यह है कि हिंदू महिला पर हुए इस बर्बर हमले को क्या यह बयान बदल सकता है?
Human Rights और Amnesty International जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन पहले भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर चिंता जता चुके हैं। अब उन्होंने इस घटना की स्वतंत्र जांच की मांग की है।
निला रानी की दर्दनाक कहानी केवल एक हिंदू महिला की त्रासदी नहीं है, यह पूरी मानवता के लिए आईना है। क्या हम इस युग में भी धार्मिक कट्टरता के नाम पर किसी महिला को इस कदर कुचले जाने को चुपचाप देखेंगे?
A Hindu woman, Nila Rani, is beaten senseless and then stomped on by 2 Islamist radicals in Dinajpur district of Bangladesh
— HinduPost (@hindupost) July 24, 2025
Not doing a total population transfer was the worst mistake committed by the Indian leadership in 1947.pic.twitter.com/SMeZRMjfbI
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