राजीव गांधी ने उस रात महिला SI को न रोका होता तो... धमाके से पहले क्या हुआ था?
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21 मई 1991 की तपती धूप में, तमिलनाडु के चुनावी दौरे पर श्रीपेरंबदूर पहुंचे राजीव गांधी को रात के 10 बज चुके थे। सुरक्षा के नाम पर वहां नाममात्र का इंतजाम था। राजीव गांधी की लोकप्रियता ऐसी थी कि हर कोई उन्हें करीब से देखना और माला पहनाना चाहता था, और वे किसी को निराश नहीं कर रहे थे।

एक महिला सब-इंस्पेक्टर (SI) ने कुछ लोगों को राजीव के करीब जाने से रोका, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था। रिटायर हो चुकीं अनुसूया डेजी अर्नेस्ट, उन पुलिस अधिकारियों में से एक हैं जो उस रात राजीव गांधी के करीब थीं और विस्फोट में जीवित बच गईं।

अनुसूया बताती हैं कि उन्हें वायरलेस पर श्रीपेरंबदूर में सिक्योरिटी में जाने के लिए सूचना मिली थी। वह कुछ महिला गार्ड के साथ शाम 6 बजे पहुंचीं। नलिनी और सूबा (जिनके नाम बाद में पता चले) पहले दिखे। अनुसूया ने उन्हें स्टेज के सामने जाकर बैठने को कहा, लेकिन वे पीछे बैठ गए और लगातार स्टेज की तरफ देख रहे थे।

अनुसूया का कहना है कि उनके एसपी ने उन्हें मंच के पास खड़ी महिलाओं के एक समूह के बारे में बताया जो उस जगह से दूर नहीं जा रही थीं। उस समय धनु (आत्मघाती हमलावर), फोटोग्राफर हरिबाबू और शिवरासन (जो मंच के पीछे थे) आगे आ गए। धनु के हाथ में चंदन की माला थी।

शिवरासन पत्रकार जैसा दिख रहा था और चुपचाप था। वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ घुलमिल गए, लेकिन हरिबाबू कहीं और चला गया। अनुसूया को उनके DSP ने महिला गार्ड चंद्रा के साथ महिलाओं के समूह को नियंत्रण में रखने का आदेश दिया।

राजीव गांधी जब वहां पहुंचे तो पुरुषों के समूह ने शॉल से उनका स्वागत किया। फिर वह महिलाओं के इलाके में पहुंचे तो भीड़ ने उन्हें घेर लिया। अनुसूया भीड़ को पीछे धकेल रही थीं, लेकिन राजीव गांधी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि लोगों को पीछे मत धकेलिए।

अगले ही पल, राजीव गांधी ने कदम बढ़ाया और जोरदार धमाका हो गया। अनुसूया को होश ही नहीं रहा। उन्हें लगा कि वह मर चुकी हैं। कुछ सेकंड बाद जब उन्होंने आंखें खोलीं, तो हर तरफ लाशें बिखरी हुई थीं। उनकी वर्दी जल गई थी।

अनुसूया तीन महीने तक अस्पताल में रहीं। उनके शरीर में आज भी कई जगह छर्रे के निशान हैं। उन्होंने उस आत्मघाती हमले में अपनी तीन अंगुलियां गंवा दी थीं। उन्हें हमेशा इस बात का मलाल रहता है कि काश राजीव गांधी ने उन्हें उस रात उन महिलाओं को पीछे करने से न रोका होता, तो शायद वह जीवित होते।

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