पीएम मोदी का मोसाद स्टाइल इशारा: आतंकियों को चुन-चुन कर मारेंगे?
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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद बिहार के मधुबनी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवादियों और उनके समर्थकों को कड़ी चेतावनी दी। उन्होंने कहा, मैं दुनिया से कहना चाहता हूं, भारत हर आतंकी और उनको समर्थन देने वालों की पहचान करेगा, पीछा करेगा और सजा देगा। हम धरती की छोर तक उनका पीछा करेंगे।

पीएम मोदी के इस बयान के बाद सुरक्षा एजेंसियों के सामने 1972 की एक घटना घूम गई, जब इजरायल ने अपने नागरिकों के हत्यारों को बीस साल तक ढूंढ-ढूंढकर मारा था, चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में छुपे रहे हों।

1970 में जॉर्डन के राजा हुसैन और पैलेस्टाइन लिबरैशन आर्मी (PLO) के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में बहुत सारे फिलिस्तीनी उग्रवादियों की जान चली गई। इससे टूटे हुए फिलिस्तीनी उग्रवादियों ने ब्लैक सेप्टेम्बर ऑर्गनाइज़ेशन (BSO) नामक एक नया ग्रुप बनाया। यह ग्रुप एक सीक्रेट ग्रुप था, जिसके मेम्बर सभी उग्रवादी नहीं बन सकते थे। इस ग्रुप के दो ही दुश्मन थे - जॉर्डन और इजरायल।

1972 में जर्मनी को ओलंपिक मेजबानी का मौका मिला। म्यूनिख में आयोजित इन खेलों में इजरायल से भी खिलाड़ियों का जत्था हिस्सा लेने पहुंचा हुआ था। 5 सितंबर 1972 को ब्लैक सेप्टेम्बर के उग्रवादियों ने ओलंपिक विलेज में इजरायली खिलाड़ियों के फ्लैट पर हमला किया, दो एथलीट्स को मौके पर मार डाला और 9 इजरायली और कुछ कोचों को बंधक बना लिया।

फ़लस्तीनी चरमपंथी बंधकों को शहर के एक एयरपोर्ट पर ले गए, और मांग की कि इजरायल उन 200 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करे, जो इजरायल की जेल में बंद हैं। इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मीर ने कह दिया - इजरायल आतंकियों की मांग नहीं मानता, चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े। जर्मन सुरक्षा बलों ने एक रेस्क्यू ऑपरेशन की कोशिश की, लेकिन चरमपंथियों ने सभी नौ खिलाड़ियों और एक जर्मन अधिकारी को मार डाला।

इजरायल की जनता में आक्रोश था। इज़रायली पीएम गोल्डा मीर ने तुरंत आला अधिकारियों की एक मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में तय हुआ कि ब्लैक सेप्टेम्बर के एक-एक व्यक्ति को ढूंढकर मारा जाएगा, चाहें वो जहां भी हों। इस काम को अंजाम देने के लिए एक ख़ुफ़िया कमिटी का गठन हुआ - कमिटी एक्स। इस कमिटी ने सबसे पहले एक लिस्ट बनाई जिसमें उन लोगों के नाम थे, जिनका काम लगाना था।

मोसाद के अधिकारियों को ब्रीफिंग दी गई और ऑपरेशन को नाम दिया गया - Wrath of God (ईश्वर का क्रोध)। मोसाद ने टीम बनाई, जिसके लीडर बने इजरायल के जाने-माने जासूस माइक हरारी।

16 अक्टूबर 1972 को रोम में वेल जेवेतर नामक शख्स की गोलियों से बिंधी हुई लाश मिली। जेवेतर फिलिस्तीनी अनुवादक थे और फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफ़ात के चचेरे भाई थे। इजरायल के लिए वो ब्लैक सेप्टेम्बर के रोम प्रमुख थे। इसके बाद महमूद हमशारी, बासिल-अल-कुबैसी, और कई अन्य को भी मार दिया गया।

इजरायल खुलेआम हत्याएं कर रहा था, लेकिन 21 जुलाई 1973 को नॉर्वे में एक व्यक्ति की हत्या में इजरायल की पोल खुल गई। मोसाद ने एक आम रेस्तरां वेटर को मार दिया, यह सोचकर कि वो उनका टारगेट अली हसन सलामेह है।

किरकिरी होने के बाद भी इजरायल ने रैथ ऑफ गॉड पर कोई रोक नहीं लगाई। मोसाद एजेंट्स ने काम जारी रखा और ब्लैक सेप्टेम्बर के लोगों की हत्याएं जारी रहीं।

20 सालों तक इजरायल का ये ऑपरेशन चला। कुछ ने कहा कि ये अपनी आत्मरक्षा और देशप्रेम का बेजोड़ उदाहरण है, अन्य ने कहा कि ये नियमों-कानूनों का उल्लंघन और इजरायल की मनमानी है। हालांकि, इस पूरे ऑपरेशन की सबसे बड़ी आलोचना इजरायल के भीतर से हुई। इज़रायली पत्रकार और लेखक एरन जे क्लेन ने कहा कि इस ऑपरेशन में मारे गए अधिकांश लोग म्यूनिख अटैक से नहीं जुड़े थे।

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