उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह में न्यायपालिका पर तीखे सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि जज कानून बनाएंगे और कार्यपालिका की भूमिका निभाएंगे. उनके इस बयान से सियासी गलियारों में हलचल मच गई है और यह बहस छिड़ गई है कि क्या न्यायपालिका अपनी मर्यादा लांघ रही है.
धनखड़ ने उपराष्ट्रपति के तौर पर कहा, एक हालिया फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है. हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें इसे लेकर बेहद संवेदनशील होने की जरूरत है. हमने इस दिन की कल्पना नहीं की थी, जहां राष्ट्रपति को तय समय में फैसला लेने के लिए कहा जाएगा और अगर वे फैसला नहीं लेंगे तो कानून बन जाएगा.
उन्होंने आगे कहा, अब जज विधायी चीजों पर फैसला करेंगे. वे ही कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और सुपर संसद के रूप में काम करेंगे. उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होगी क्योंकि इस देश का कानून उन पर लागू ही नहीं होता.
धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 को न्यायपालिका के लिए 24 घंटे उपलब्ध परमाणु मिसाइल बताया. उन्होंने ज्यूडिशियल ओवररीच और ज्यूडिशियल एक्टिविज्म पर गहरी नाराजगी जताई और कहा कि न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक सीमाओं का पालन करना चाहिए और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वायत्तता का सम्मान करना चाहिए.
यह बयान सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल 2025 के तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में आए फैसले के बाद आया है. उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर उस पर फैसला लेना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि संविधान में इस प्रक्रिया के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है, लेकिन अनुच्छेद 201 के अनुसार, राष्ट्रपति को इस मामले में उचित समय के भीतर निर्णय लेना होगा. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना जरूरी है.
धनखड़ का बयान न्यायपालिका और लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच सीमाएं तय करने की बहस को आगे बढ़ाता है. यह केवल कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की मूलभूत संरचना से जुड़ा प्रश्न है. एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति जब सार्वजनिक मंच से न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल उठाता है, तो वह सिर्फ व्यक्तिगत राय नहीं होती, वह लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच शक्ति संतुलन की जमीन पर बहस का न्योता देने जैसी होती है.
धनखड़ की बातों से असहमति जताई जा सकती है, लेकिन उन्हें पूरी तरह से खारिज कर देना कठिन है. पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका की भूमिका पर यह सवाल जरूर उठने लगे हैं कि क्या वह अपने दायरे से बाहर जा रही है?
We cannot have a situation where you dictate to the President of India.
— BALA (@erbmjha) April 17, 2025
And for the second line:
Indian judiciary needed a reality check — & Jagdeep Dhankhar saab delivered it straight to their face! pic.twitter.com/RXCx0ELgyJ
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