ममता ने क्यों बुलाया इमाम सम्मेलन? क्या मुस्लिम वोट बैंक में फंसी TMC अब बाहर नहीं निकल पाएगी?
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मुर्शिदाबाद में वक्फ विरोध के नाम पर हुई हिंसा में न सिर्फ हिंदुओं की जान गई, बल्कि सैकड़ों परिवार तबाह हो गए। ममता बनर्जी सरकार ने पहले तो इस पर आंखें मूंद लीं, लेकिन जब पानी सिर से ऊपर चला गया तो वे बीजेपी पर आरोप लगाने लगीं।

कोलकाता में हुए इमाम सम्मेलन में ममता बनर्जी के भाषण से साफ है कि वे मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति में पूरी तरह फंस चुकी हैं। क्या दंगा होने के बाद किसी एक पार्टी का पक्ष लेना मुख्यमंत्री को शोभा देता है? क्या गोधरा, मुजफ्फरनगर, दिल्ली या संभल में कभी ऐसा हुआ है कि हिंसा के बाद सरकार किसी एक पक्ष में खड़ी नजर आई हो?

ममता बनर्जी प्रदेश में रहने वाली 27% मुस्लिम आबादी के लिए हर हद तक जाने को तैयार दिखती थीं। लेकिन किसी खास समुदाय के लिए सहानुभूति दिखाते हुए अपराध को अनदेखा करना संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए उचित नहीं है। उन्हें उन लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए था जो अपना सब कुछ छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हो गए हैं, और उस परिवार के साथ खड़ा होना चाहिए था जिसने भीड़ की हिंसा में अपने पिता और पुत्र को खो दिया।

इमामों के सम्मेलन को संबोधित करके ममता बनर्जी क्या संदेश देना चाहती हैं, यह सब जानते हैं। लेकिन वह शायद भूल रही हैं कि राजनीति में कब बुरे दिन शुरू हो जाएं, कोई नहीं जानता। जनता देख रही है कि उनके इस कदम से करोड़ों लोग आहत हुए हैं।

ममता बनर्जी ने इमामों से मस्जिदों से शांति का संदेश देने की अपील की। क्या उन्हें लगता है कि इससे हिंसा रुक जाएगी? इसका मतलब है कि वे समझती हैं कि कहीं न कहीं इस हिंसा के लिए मस्जिदों के इमाम भी जिम्मेदार हैं। अगर इमामों को शांति का संदेश देने के लिए ममता बनर्जी की सलाह की जरूरत है, तो इसका मतलब है कि कहीं न कहीं वे भी हिंसा में शामिल हैं।

क्या ममता बनर्जी ने हिंदुओं से भी कोई अपील की? उनका हिंदुओं से अपील न करना स्पष्ट है। पहला, वे उन्हें अपना वोटर नहीं मानती हैं। दूसरा, वे समझती हैं कि हिंदुओं पर हुए अत्याचार के लिए वे दोषी नहीं हैं, इसलिए उनसे बात करने का कोई मतलब नहीं है।

बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने कहा कि ममता बनर्जी हिल गई हैं और झूठ का सहारा ले रही हैं। उन्होंने बीएसएफ को दोषी ठहराया, केंद्र सरकार को दोषी ठहराया और उन अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का बचाव किया जिन्होंने मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के घरों, जीवन और आजीविका को तबाह किया।

ममता बनर्जी के लिए आज सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बंगाल में शांति बनाए रखना होना चाहिए, लेकिन उन्हें सिर्फ राजनीति दिख रही है। इमामों के सम्मेलन में जाकर उन्हें और भड़काना न्यायसंगत नहीं है।

बनर्जी कहती हैं कि अगर बंगाल में शांति होगी तो सब अच्छा रहेगा। भाजपा बंगाल में ध्रुवीकरण करना चाहती है ताकि उनकी सरकार चली जाए और उनकी सरकार आए, जब वे आएंगे तो आपका खाना भी बंद कर देंगे। दिल्ली में देखिए कैसे उन्होंने बंगाली इलाकों में मछली और मांस बंद कर दिया है।

अगर यह आम सभा होती या हिंदू-मुसलमानों की कोई शांति समिति होती, तो ममता बनर्जी की यह बात सांप्रदायिकता के खिलाफ लगती। कल्पना कीजिए कि इमामों के सम्मेलन में ममता बनर्जी ने जो बातें कहीं, वैसी ही बातें योगी आदित्यनाथ संभल में मुसलमानों की मौत के बाद प्रदेश भर के पुजारियों को बुलाकर कहते तो यूपी की फिजां कैसी होती?

वक्फ संशोधन बिल से पहले भी ममता बनर्जी ने राज्य की जनता को सीएए के नाम पर भड़काया था। पर आज तक एक भी मुसलमान की नागरिकता पूरे देश में नहीं गई है। ममता बनर्जी ने योगी के बयानों को आधार बनाकर भी इमामों को भड़काने की कोशिश की। यह तो अच्छा रहा कि इमाम ये बातें समझ रहे थे कि ममता बनर्जी वोट के लिए उन्हें भड़का रही हैं। पर अगर पश्चिम बंगाल में फिर कहीं हिंसा होती है तो इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार ममता बनर्जी ही होंगी।

यदि वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम के चलते मुस्लिम समुदाय में नाराजगी है, तो नाराजगी और जगहों पर क्यों नहीं दिख रही है? यूपी और बिहार में भी मुसलमान हैं, वहां क्यों नहीं दिख रही है? आसाम में मुसलमान 34% के करीब हैं, जबकि कश्मीर में 68% मुसलमान हैं। पर कहीं से भी इस तरह की हिंसक खबरें आई हैं क्या?

जाहिर है कि मुर्शिदाबाद में बंगाल सरकार खुद चाहती रही होगी कि हिंसा हो। आज इमामों के सम्मेलन में जिस तरह एक शब्द भी हिंसा करने वालों के खिलाफ ममता ने नहीं बोला, इसका साफ मतलब है कि वो आरोपियों को बचा रही हैं। जिस प्रदेश में इतनी खुली छूट मिलने का संदेश आम लोगों के बीच जाएगा, जाहिर है कि वहां के कुछ लोग हिंसक हो ही जाएंगे। और जब राजनीतिक फायदा होता नजर आएगा तो यह काम उत्साह के साथ किया जाएगा।

मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के पीछे बांग्लादेशियों का हाथ होने की बात करके प्रदेश की मुख्यमंत्री ने उन सैकड़ों गुंडों को क्लीन चिट दे दी है जो जुमे की नमाज के बाद दुकानों और मॉल्स को लूट रहे थे, गाड़ियां फूंक रहे थे। किसी भी घटना या समस्या को हल्का करना हो तो उसे जनरलाइज करना सबसे बड़ी पॉलिसी होती है। पहले भारत में हर घटना के पीछे पाकिस्तान का हाथ बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता था। अब वो दौर आ गया है कि सारी समस्या का जड़ बांग्लादेश को बताकर उपद्रवियों को बचाया जा रहा है।

ममता बनर्जी ये कहकर नहीं बच सकतीं कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या केंद्र की है। रोजमर्रा का हर काम राज्य के जिम्मे ही होता है। आधार कार्ड बनाने के लिए, राशन कार्ड और बैंक खातों के लिए राज्य सरकार ही एड्रेस प्रूफ जारी करती है।

इमाम सम्मेलन को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी कहती हैं कि इंडिया गुट के सभी दलों को बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति का विरोध करने के लिए उनका साथ देना चाहिये। पिछले कुछ महीनों से इंडिया गुट के दलों में मुसलमानों का रहनुमा बनने के लिए हर लक्ष्मण रेखा पार करने के लिए नेता तैयार दिख रहे हैं। ऐसे में ममता पीछे नहीं दिखना चाहती हैं। जिस तरह पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और ममता बनर्जी ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे अपना सिर झुकाया है, वो कुछ तो कहता ही है।

क्या कांग्रेस के उभार के चलते ऐसा हो रहा है? क्या 2024 में कांग्रेस को मिली सफलता के चलते क्षेत्रीय दलों में कांग्रेस के उभार का डर समा गया है? क्या इन लोगों को लगता है कि उनका कोर वोट बैंक मुसलमान कभी भी अपने पुराने घर वापस जा सकता है? शायद यह सही भी है। मुसलमान जिस तरह कांग्रेस के साथ जुड़ रहे हैं, वह दिन दूर नहीं है कि क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो जाएगा।

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