भाजपा का ब्रह्मास्त्र सबको पता है, कांग्रेस हिंदू-हिंदू कब बोलेगी!
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भारत एक सेक्युलर देश है, और कई मुस्लिम विद्वानों, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, और संतों ने भी कहा है कि हिंदुओं का अंतर्मन ही सेक्युलर है. क्या ऐसे देश में किसी राजनीतिक दल का बहुसंख्यक हिंदुओं की बात करना गलत है?

भाजपा 11 साल से केंद्र की सत्ता में है, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस एक दशक से भ्रमित दिखाई दे रही है. भाजपा लगातार अपने एजेंडे पर काम करते हुए हिंदू बहुसंख्यकों के साथ-साथ गरीब और पिछड़े मुसलमानों को भी साध रही है, लेकिन कांग्रेस दुविधा में है.

एक समय मुस्लिम हितैषी का चोला ओढ़ने के बावजूद, कांग्रेस खुलकर न तो मुसलमानों से जुड़ पा रही है और न ही खुलकर हिंदुओं की बातें कर रही है. अहमदाबाद में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हो रहा है, और विपक्ष को इस सवाल का जवाब सबसे पहले ढूंढना होगा.

हाल ही में वक्फ संशोधन बिल 2025 संसद से पारित हुआ. तीन तलाक, आर्टिकल 370, लव जिहाद, कक्षा में हिजाब बैन, सड़क पर नमाज नहीं जैसे कई फैसले लोगों की जुबान पर हैं. सरकार का कहना है कि वह देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी की चिंताओं को लेकर आंख नहीं मूंद सकती.

मुस्लिम समुदाय के नेता भले ही नाराज दिख रहे हों, लेकिन भाजपा ने अल्पसंख्यक समुदाय में भी अपना एक सपोर्ट बेस तैयार कर लिया है जो सरकारी योजनाओं का लाभ पा रहे हैं. यह भाजपा की सफलता है, लेकिन कांग्रेस का क्या?

अल्पसंख्यक हितैषी का दावा करने वाली कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ही संसद में वक्फ बिल पर आधी रात तक चली बहस में नहीं बोले. प्रियंका भी संसद में नहीं थीं. भाजपा ने 11 साल के भीतर हिंदुओं का काफी हद तक एकजुट समर्थन हासिल करने में सफलता हासिल की है, तो कांग्रेस हिंदुओं से उतनी ही दूर होती गई है.

कांग्रेस मुस्लिमों की आवाज भी जोरशोर से नहीं उठाती. शायद वह बदले माहौल में सोच रही हो कि उस पर एकतरफा होने का आरोप न लगे, लेकिन इस चाहत में वह हिंदुओं को मानो भूल ही गई है. कांग्रेस को समझना होगा कि पहले का दौर अब वापस नहीं आ सकता.

भाजपा से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को अपनी पिच मजबूत करनी होगी. 11 साल पहले हिंदू वोटर कई जातियों में बंटकर वोट देते थे, लेकिन अब उनका एकतरफा मोबिलाइजेशन देखा जा रहा है, कम से कम नॉर्थ इंडिया में तो ऐसा ही है.

अगर कांग्रेस अपने शब्दकोष में हिंदुओं को नहीं लाती है तो वही होगा जो तीन लोकसभा चुनावों और तमाम राज्यों के चुनाव में होता आया है. चुनाव प्रचार का आखिरी दौर आते-आते भाजपा अपना ब्रह्मास्त्र चलेगी और हिंदू खतरे में की बातें होने लगेंगी.

इसके बाद कांग्रेस फंसती दिखेगी. वह अल्पसंख्यकों पर बोलना भी बंद कर देगी क्योंकि उसे लगेगा कि ऐसा करने से भाजप का ब्रह्मास्त्र बहुसंख्यकों को एकजुट करेगा. अब वक्त आ गया है कि कांग्रेस इस सच्चाई को स्वीकार करे कि आज के समय में हिंदुओं की बात किए बगैर कम से कम चुनाव तो नहीं जीते जा सकते.

कांग्रेस संविधान खतरे में, निष्पक्ष चुनाव खतरे में, लोकतंत्र खतरे में, महागठबंधन राजनीति में जातियों पर जोर, महंगाई-भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी जैसे मुद्दों पर भाजपा को घेरने के बाद भी कोई बड़ा फायदा नहीं हुआ.

वह दौर बीत चुका है जब इफ्तार पार्टी में टोपी पहनने से जनता मुस्लिम हितैषी मान लेती थी. भाजपा ने रणनीति के तहत सीन को पलटा है और जो डर दिखाया गया था, उस नरैटिव को तोड़ते हुए मुस्लिमों को जोड़ा जा रहा है. सवाल यह है कि कांग्रेस हिंदुओं से कब जुड़ेगी?

कांग्रेस को ऐसे हालात बनाने चाहिए कि फिर किसी कांग्रेसी को जनेऊ न दिखाना पड़े और न ही चुनाव के समय मंदिर की तरफ भागना पड़े. यह चीज आम होनी चाहिए तभी भाजपा को चुनौती दी जा सकती है.

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