तीन मंदिरों की बात: स्वयंसेवकों को RSS का बड़ा संदेश - काशी-मथुरा मामले में हो सकते हैं शामिल
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने महत्वपूर्ण बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि यदि आरएसएस के सदस्य मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद से जुड़े कामों में हिस्सा लेना चाहें, तो संगठन को कोई आपत्ति नहीं होगी.

होसबोले का यह बयान स्वयंसेवकों के लिए हरी झंडी माना जा रहा है. हालांकि, उन्होंने बड़े पैमाने पर मस्जिदों पर सवाल उठाने के खिलाफ चेतावनी दी है और सामाजिक मतभेद से बचने की बात कही है. उनका मानना है कि इससे समाज में झगड़ा हो सकता है, जिसे दोहराया नहीं जाना चाहिए.

होसबोले ने कन्नड़ में आरएसएस की एक पत्रिका विक्रमा से बातचीत में कहा कि 1984 में वी.एच.पी. और साधु-संतों ने तीन मंदिरों की बात की थी. उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि आरएसएस के स्वयंसेवक इन तीनों मंदिरों (अयोध्या में राम जन्मभूमि सहित) के लिए मिलकर काम करना चाहते हैं, तो उन्हें रोका नहीं जाएगा.

दत्तात्रेय होसबोले ने गोहत्या, लव जिहाद और धर्मांतरण से जुड़ी चिंताओं को भी स्वीकार किया और माना कि ये चिंताएं अभी भी समाज में मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि इसके अलावा कई और जरूरी चीजें हैं जिन पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने युवाओं को छुआछूत मिटाने और अपनी संस्कृति को बचाने में लगने की सलाह दी.

भाषा नीति पर होसबोले ने त्रिभाषी दृष्टिकोण का समर्थन किया, जिसे उन्होंने 95% भाषाई विवादों का समाधान बताया. उन्होंने भारतीय भाषाओं को संरक्षित करने और उनमें शिक्षित लोगों के लिए आर्थिक अवसर सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर दिया.

देश में चल रहे भाषा विवाद पर होसबोले ने चिंता व्यक्त की कि यदि आने वाली पीढ़ियां इन भाषाओं में नहीं पढ़ेंगी और लिखेंगी, तो वे कैसे जीवित रहेंगी. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के प्रति आकर्षण का मुख्य कारण व्यावहारिक है. उन्होंने एक ऐसे आर्थिक मॉडल की आवश्यकता बताई जहां भारतीय भाषाओं में शिक्षित लोगों को रोजगार के भरपूर अवसर मिलें.

होसबोले ने हिंदी के व्यापक रूप से अपनाए जाने का उल्लेख किया, लेकिन हिंदी थोपे जाने की बहस में राजनीतिक कारकों को भी स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि अगर इस विशाल देश में हर कोई संस्कृत सीखे तो यह बहुत अच्छा होगा. यहां तक कि डॉ. अंबेडकर ने भी इसकी वकालत की थी. उन्होंने कहा कि समस्या तब पैदा हुई जब राजनीति और विरोध के कारण इसे थोपे जाने का मुद्दा बना दिया गया, जिसके कारण भाषा एक समस्या बन गई है.

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