जलियांवाला बाग: ब्रिटिश सांसद की माफी की मांग, नायक शंकरन नायर की भूली यादें ताज़ा
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ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमैन ने ब्रिटिश सरकार से जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए औपचारिक माफी मांगने का आग्रह किया है। यह एक ऐसा नरसंहार था जो उपनिवेशवादी इतिहास के माथे पर हमेशा के लिए एक काला धब्बा बनकर रह गया।

ब्लैकमैन का यह कदम सराहनीय है, लेकिन यह हमें सर सी. शंकरन नायर के बारे में सोचने पर मजबूर करता है - एक ऐसे भारतीय नायक जिन्होंने इस हत्याकांड के बाद न्याय के लिए अथक संघर्ष किया, लेकिन उन्हें इतिहास में वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे।

ब्लैकमैन ने 27 मार्च को ब्रिटिश संसद में कहा कि ब्रिटिश सरकार को 13 अप्रैल से पहले, जलियांवाला बाग हत्याकांड की 106वीं बरसी से पहले, भारत के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने इस भाषण का एक वीडियो सोशल मीडिया पर भी साझा किया है।

ब्लैकमैन ने कहा, बैसाखी के दिन कई सारे लोग शांतिपूर्वक तरीके से अपने परिवार के साथ जलियांवाला बाग में शामिल हुए थे। जनरल डायर ने ब्रिटिश सेना की तरफ से अपने सैनिकों को भेजा और मासूम लोगों पर तब तक गोलियां चलाने का आदेश दिया था, जब तक उनकी गोलियां खत्म न हो जाएं।

11 जुलाई 1857 को मालाबार (केरल) में जन्मे शंकरन नायर एक प्रख्यात वकील और प्रखर राष्ट्रवादी थे। वे वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य थे और उन्होंने ब्रिटिश शासन की नीतियों को करीब से देखा। वे भारतीयों के अधिकारों के लिए लगातार लड़े।

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार ने नायर को झकझोर कर रख दिया। जनरल डायर के आदेश पर सैकड़ों निहत्थे भारतीयों को बेरहमी से मार डाला गया। नायर ने चुप रहने के बजाय इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया।

उन्होंने वायसराय परिषद से तत्काल इस्तीफा दे दिया, जो ब्रिटिश प्रशासन के प्रति उनके विरोध का एक ऐतिहासिक प्रमाण था। उनका संघर्ष यहीं नहीं रुका।

नायर ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता को दुनिया के सामने लाने के लिए गांधी एंड एनार्की नामक एक पुस्तक लिखी। इस किताब में उन्होंने ब्रिटिश नीतियों की कठोर आलोचना की और उनकी बर्बरता को उजागर किया।

ब्रिटिश सरकार ने उनके खिलाफ लंदन में मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसे नायर ने पूरी ताकत और साहस के साथ लड़ा।

हालांकि शंकरन नायर ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनकी विरासत को इतिहास के पन्नों में वह स्थान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था।

महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को भरपूर सम्मान मिला, लेकिन नायर की निडरता और ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके सशक्त संघर्ष को उतनी प्रमुखता नहीं मिली।

होम रूल के समर्थन में एनी बेसेंट के साथ उनके प्रयास और 1919 के मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों में उनकी भूमिका स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थे। फिर भी, इन योगदानों को मुख्यधारा के इतिहास में अपेक्षित पहचान नहीं मिली।

जैसे-जैसे दुनिया भर में औपनिवेशिक अत्याचारों पर माफी की मांग तेज हो रही है, भारत के गुमनाम नायकों को भी उचित सम्मान मिलना चाहिए। सी. शंकरन नायर द्वारा दिखाया गया साहस अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक है।

ब्रिटिश सरकार से माफी की मांग अतीत के अन्याय को स्वीकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सर सी. शंकरन नायर का दृढ़ संकल्प और ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनकी निडर लड़ाई भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य है।

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