कन्हैया कुमार का बिहार में नई सड़कों और औद्योगीकरण का विरोध: क्या है मामला?
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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से लौटे कांग्रेसी नेता और पूर्व वामपंथी कन्हैया कुमार के हालिया विचारों ने सबको चौंका दिया है. उन्होंने बिहार में नई सड़कों और औद्योगीकरण का विरोध किया है, जिससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे बिहार को विकास से दूर रखना चाहते हैं.

कन्हैया कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि भारतमाला परियोजना के तहत बन रही सड़कें बिहार का पानी लूटने के लिए बनाई जा रही हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि बिहार में पहले उद्योग क्यों नहीं आए और अब क्यों निवेश आ रहा है. उनका कहना है कि सड़कों की कोई जरूरत नहीं है और वे इसे एक साजिश मानते हैं, क्योंकि बिहार के पास बहुत पानी है.

सोशल मीडिया पर ताऊ के नाम से मशहूर कमलेश सिंह ने कन्हैया पर व्यंग्य करते हुए कहा कि 40 साल पहले जब सड़कें नहीं थीं, तब दुर्घटनाएं कम होती थीं, बिजली नहीं थी तो करंट से मौतें नहीं होती थीं. लोग खुशहाल थे, भले ही इलाज की कमी से मरते थे या नरसंहार में बच जाते थे.

कन्हैया कुमार के दर्शन में प्रकृति की ओर लौटने की झलक मिलती है, जहां न विकास होगा, न बुराइयां, न धन होगा, न चोरी-डकैती. सवाल उठता है कि क्या कन्हैया बिहार को फिर से लालटेन युग में ले जाना चाहते हैं.

कन्हैया कुमार को शायद बिहार में मुद्दों की कमी लग रही है, इसलिए उन्हें पलायन का दर्शन बेहतर लग रहा है. आरजेडी भी उनके साथ नहीं है और बीजेपी-जेडीयू एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में कन्हैया विकास को गलत साबित करने की कोशिश कर रहे हैं और उन्होंने पानी की लूट की थ्योरी गढ़ दी है.

देश के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 44% भूजल का दोहन हो चुका है, जबकि कोई बड़ा औद्योगिक आधार भी नहीं है. 2023 में जल शक्ति मंत्रालय की एक रिपोर्ट यह जानकारी देती है.

सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार में किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि राज्य में पानी का संकट है. नदियां हर साल सुनामी लेकर आती हैं, लेकिन किसी भी नदी का उद्गम स्थल बिहार में नहीं है.

कन्हैया कुमार को बिहार का विकास पसंद नहीं आ रहा है और उनकी पार्टी को यह पच नहीं रहा है कि राज्य में इतनी तेजी से सड़कें और उद्योग धंधे लग रहे हैं.

कांग्रेस को हमेशा से अल्पसंख्यक, दलित और सवर्ण वोटों का सहारा रहा है, लेकिन अब उसके पास इनमें से कोई नहीं है. आरजेडी ने मुस्लिम वोटों पर पकड़ बना ली है और सवर्ण वोट बीजेपी के साथ हैं. दलित भी बीजेपी या आरजेडी के साथ हैं.

ऐसी स्थिति में कन्हैया कुमार को समझ नहीं आ रहा कि जनता के बीच क्या बोलें. वह हर दिन अपने वामपंथी दर्शन को सुधार कर जनता के सामने लाना चाहते हैं.

प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाह देने वाली एक कमिटी की रिपोर्ट बताती है कि बिहार का देश की जीडीपी में हिस्सा 1960-61 में 7.8% था, जो आज 2.8% पर पहुंच चुका है. यह स्थिति कांग्रेस शासन में हुई थी.

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