डीके शिवकुमार के संविधान वाले बयान पर संसद से सड़क तक हंगामा क्यों?
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कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार के एक बयान को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सोमवार को सड़क से लेकर संसद तक विरोध प्रदर्शन किया. डीके शिवकुमार ने कर्नाटक में सरकारी ठेकों में अल्पसंख्यकों के लिए प्रस्तावित आरक्षण के प्रावधान पर यह बयान दिया था.

बेंगलुरु की सड़कों पर बीजेपी कार्यकर्ताओं ने डीके शिवकुमार का पुतला फूंका. राज्यसभा में संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस मुद्दे को उठाया. इसके बाद राज्यसभा में ही केंद्रीय मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से इस पर जवाब मांगा.

रविवार को डीके शिवकुमार ने एक निजी चैनल के कार्यक्रम में कहा, हां, मैं सहमत हूं. देखते हैं, कोर्ट क्या कहता है. हमने एक शुरुआत की है. मुझे पता है कि लोग कोर्ट जाएंगे. हमें अच्छे दिनों का इंतज़ार करना चाहिए, अच्छे दिन आएंगे. बहुत सारे बदलाव हो रहे हैं, संविधान बदल रहा है. ऐसे फ़ैसले भी आ रहे हैं जो संविधान को भी बदल देंगे.

बीजेपी ने राज्यसभा में डीके शिवकुमार की टिप्पणी को मुद्दा बनाते हुए उनके इस्तीफ़े की मांग की है. सदन में किरेन रिजिजू ने कहा कि कांग्रेस के नेता भारत का संविधान बदलने जा रहे हैं ताकि मुस्लिम समुदाय को आरक्षण दिया जा सके. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष से इस मुद्दे पर पार्टी का रुख स्पष्ट करने को कहा.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने पलटवार करते हुए कहा कि संविधान कोई नहीं बदल सकता. उन्होंने कहा कि इसे बचाने के लिए उनकी पार्टी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी.

डीके शिवकुमार ने सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान को गलत ढंग से पेश किया जा रहा है और उन्होंने संविधान बदलने वाली बात नहीं कही है. उन्होंने कहा कि उन्होंने कैजुअली कहा था कि कई फैसलों के बाद कई बदलाव हो सकते हैं.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह मुद्दा जस्टिस यशवंत वर्मा और दूसरे मामलों से ध्यान हटाने के लिए उठाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि नड्डा और रिजिजू ने राज्यसभा में सही बात नहीं बोली है और कांग्रेस को बदनाम किया है. कांग्रेस ने नड्डा और रिजिजू के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है.

पिछले सप्ताह कर्नाटक विधानसभा में सरकारी ठेकों में अल्पसंख्यकों को चार प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक पारित हुआ था. इस प्रस्ताव में मुसलमान, ईसाई, जैन और सिख आदि अल्पसंख्यक समूहों को आरक्षण देने का प्रावधान है. बीजेपी विधायकों ने बिल का विरोध करते हुए कहा था कि इसका उद्देश्य समाजों का ध्रुवीकरण करना और धार्मिक समाजों के बीच सामाजिक ताने-बाने और सद्भाव को नष्ट करना है.

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