कंबल खत्म हो गए, जब आएंगे तब देंगे... अधिकारी का असंवेदनशील जवाब, वीडियो वायरल
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कौशांबी जिले की सिराथू तहसील में समाधान दिवस पर एक हृदयविदारक घटना सामने आई। एक नेत्रहीन बुजुर्ग, कड़ाके की ठंड से बचने के लिए कंबल की गुहार लगा रहा था।

लवकुश मौर्या और उनके साथी, दोनों ही नेत्रहीन हैं। अत्यधिक ठंड के कारण परेशान होकर वे कंबल पाने की उम्मीद लेकर तहसील कार्यालय पहुंचे थे।

उनकी आंखों में आस थी कि प्रशासन उन्हें कंबल देगा। लेकिन अधिकारी ने बिना किसी संवेदना के जवाब दिया कि कंबल खत्म हो गए हैं, जब आएंगे तब देंगे।

वीडियो में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि लवकुश मौर्या कंबल के लिए विनती कर रहे हैं और अधिकारियों से कह रहे हैं, हम अंधे हैं, कागज देख लीजिए, हमें कंबल चाहिए साहब।

हालांकि, अधिकारी ने बड़े आराम से कहा, कंबल अब तो बचे नहीं हैं, अब तो सब बंट गए हैं। इस दौरान वे अपने मोबाइल फोन में व्यस्त थे और फरियादी की परेशानी पर कोई ध्यान नहीं दे रहे थे।

यह जवाब न केवल लवकुश मौर्या बल्कि सभी नेत्रहीन और जरूरतमंद लोगों के लिए यह संदेश था कि उनकी तकलीफों का कोई मोल नहीं है।

वायरल वीडियो में लवकुश मौर्या और उनके साथी अधिकारी से अपनी तकलीफ साझा कर रहे हैं। अधिकारी ने केवल तात्कालिक जवाब देकर मामले को टालने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, अरे, अब होगा तब! जब कंबल आएंगे, तब आपको दिलवाएंगे।

यह जवाब उन लोगों की असहाय स्थिति को और भी खराब कर देता है, जो सर्दी से बचने के लिए सरकार से मदद की उम्मीद रखते हैं।

वायरल हुए इस वीडियो ने प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है। यह दृश्य एक गंभीर सवाल खड़ा करता है कि क्या सरकार और प्रशासन वास्तव में उन जरूरतमंदों के प्रति जिम्मेदार हैं जो ठंड जैसी परिस्थितियों में सहायता के लिए आते हैं।

क्या अधिकारियों का काम केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित रह गया है, जबकि उन लोगों के दर्द और संघर्ष को नजरअंदाज किया जा रहा है? अगर अधिकारियों में थोड़ी सी भी इंसानियत होती तो वे आसानी से बाजार से कंबल मंगवा कर इन जरूरतमंदों की मदद कर सकते थे।

समाधान दिवस का आयोजन अक्सर यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि लोगों को उनकी समस्याओं का शीघ्र समाधान मिले। इस वीडियो से यह स्पष्ट हो गया कि इस दिन का असली उद्देश्य कहीं खो गया है। सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और उपेक्षित व्यवहार ने उस उद्देश्य को विफल कर दिया है जिसके लिए समाधान दिवस का आयोजन किया जाता है। यह घटना दर्शाती है कि प्रशासनिक मशीनरी में मानवीय संवेदनाओं का अत्यधिक अभाव है, जो उन लोगों के लिए जो मदद की गुहार लगाते हैं।

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